आम जनता की पहुँच के बाहर क्यों हो रहा है, सूचना का अधिकार : Yogesh Mishra

सूचना का अधिकार कानून संभवत: आम जनता द्वारा सबसे ज्यादा बार प्रयोग किया जाने वाले कानूनों में से एक है ! अगर यहां से भी 45 दिनों के भीतर जवाब नहीं मिलता है तो आवेदक केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना के आयोग की शरण लेता है ! लेकिन देश भर के सूचना आयोग की हालात बेहद खराब है !

आलम ये है कि अगर आज के दिन सूचना आयोग में अपील डाली जाती है तो कई सालों बाद सुनवाई का नंबर आता है ! इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इन आयोगों में कई सारे पद खाली पड़े हैं !

भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दों पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005-2016 के बीच देश भर में कुल दो करोड़ 43 लाख से ज्यादा आरटीआई आवेदन दायर किए गए ! इस बीच सबसे ज्यादा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 57 लाख 43 हजार आरटीआई आवेदन दायर किए गए !

वहीं महाराष्ट्र में 54 लाख 95 हजार, कर्नाटक में 22 लाख 78 हजार, केरल में 21 लाख 92 हजार, तमिलनाडु में 19 लाख 23 हजार आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं ! ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों द्वारा मुहैया कराई कई जानकारी के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार किया है !

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार आरटीआई संशोधन विधेयक लेकर आई है जिसमें केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन और उनके कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा तय करने का प्रावधान रखा गया है ! आरटीआई कानून के मुताबिक एक सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र, जो भी पहले पूरा हो, का होता है !

अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता था ! वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता था !

आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 13 और 15 में केंद्रीय सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं निर्धारित करने की व्यवस्था दी गई है ! केंद्र की मोदी सरकार इसी में संशोधन करने के लिए बिल लेकर आई है !

आरटीआई की दिशा में काम करने वाले लोग और संगठन इस संशोधन का कड़ा विरोध कर रहे हैं ! इसे लेकर नागरिक समाज और पूर्व आयुक्तों ने कड़ी आपत्ति जताई है ! बीते बुधवार को दिल्ली में केंद्र द्वारा प्रस्तावित आरटीआई संशोधन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था जहां पर 12 राज्यों से लोग आये थे !
सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना आयोग सूचना पाने संबंधी मामलों के लिए सबसे बड़ा और आखिरी संस्थान है, हालांकि सूचना आयोग के फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है ! सबसे पहले आवेदक सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन करता है ! अगर 30 दिनों में वहां से जवाब नहीं मिलता है तो आवेदक प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपना आवेदन भेजता है !

देश में राज्य सूचना आयोगों की स्थिती निम्न है !
1 ! आंध्र प्रदेश के राज्य सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है ! ये संस्थान इस समय पूरी तरह से निष्क्रिय है !

2 ! महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग में इस समय 40,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं लेकिन यहां पर अभी भी चार पद खाली पड़े हैं !

3 ! केरल राज्य सूचना आयोग में सिर्फ एक सूचना आयुक्त है ! यहां पर 14,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं !

4 ! कर्नाटक राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के 6 पद खाली पड़े हैं जबकि यहां पर 33,000 अपील और शिकायतें लंबित हैं !

5 ! ओडिशा सूचना आयोग सिर्फ तीन सूचना आयुक्तों के भरोसे चल रहा है जबकि यहां पर 10,000 से अपील/शिकायतें लंबित हैं ! इसी तरह तेलंगाना के सूचना आयोग में सिर्फ 2 सूचना आयुक्त हैं और यहां पर 15,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं !

6 ! पश्चिम बंगाल की स्थिति बहुत ज्यादा भयावह है ! यहां स्थिति ये है कि अगर आज वहां पर कोई अपील फाइल की जाती है तो उसकी सुनवाई 10 साल बाद हो पाएगी ! यहां पर सिर्फ 2 सूचना आयुक्त हैं !

7 ! वहीं गुजरात, महाराष्ट्र और नगालैंड जैसी जगहों पर मुख्य सूचना आयुक्त ही नहीं हैं ! यहां पर सूचना आयुक्त मुख्य सूचना आयुक्त के बिना काम कर रहे हैं !

वर्तमान सरकार पर आरोप है कि वो संशोधन के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर कर रही है और सूचना आयुक्तों पर दवाब डालना चाहती है ताकि वे ऐसे फैसले न दे सकें जो सरकार के खिलाफ हो !

यह लेख 19/12/2018 के आंकड़ों पर आधारित लेख है क्यों कि इसके बाद कोई अधिकारिक आंकड़े दिये ही नहीं गये हैं !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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