विभीषण भ्रातद्रोही या राष्ट्रद्रोही नहीं था ! पढ़े पूरा सत्य | Yogesh Mishra

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस नाट्य ग्रंथ के प्रचलन के साथ एक यह अवधारणा भी फैली कि विभीषण भ्रातद्रोही व राष्ट्रद्रोही था ! रावण के मृत्यु का मूल कारण विभीषण का भगवान श्री राम से मिल जाना था ! इस विषय पर गहन अध्ययन और शोध किया गया !

शोध के दौरान यह तथ्य निकलकर आया के विभीषण भ्रातद्रोही या राष्ट्र द्रोही होने के कारण राम से नहीं मिला था ! बल्कि रावण की धार्मिक संस्कारगत योजना के अंतर्गत रावण ने स्वत: विभीषण को भगवान श्री राम के शरण में भेजा था !

रावण व विभीषण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और महर्षि विश्रवा के पुत्र थे ! यह रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। उसी तरह विभीषण भी अति बुद्धिमान, सात्विक, वैष्णव भक्त व राजनीति का परम ज्ञानी था !

जब कभी भी रावण विश्व विजय अभियान या राष्ट्र के प्रशासनिक कार्यों से लंका के बाहर जाता था तो उसके अनुपस्थिति में विभीषण ही राज्य सत्ता का पूरा कार्यभार संभालते थे ! विभीषण रावण के अति प्रिय और विश्वसनीय सलाहकार भी थे ! इनका स्थान रावण के दरबार में सर्वोच्चय था !

रावण का लंका दहन के समय जब हनुमान से विवाद हुआ और हनुमान के वध के लिए रावण में आदेश दिया, तो उस समय मात्र विभीषण में ही वह साहस था कि उसने रावण को सही राय देकर रावण के निर्णय को बदलवा दिया और हनुमान जी की जीवन रक्षा की !

रावण धर्म-कर्म को मानने वाला एक प्रखंड प्रकांड कर्मकांडी विद्वान था ! रावण के इसी गुण के कारण रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के लिए भगवान श्रीराम को भी रावण को अपना पुरोहित मानने के लिए बाध्य होना पड़ा !

खर और दूषण के मृत्यु के उपरांत जब रावण के गुप्त चारों ने रावण को यह सूचना दी इस पूरे के पूरे विवाद के पीछे इंद्र और वैष्णव ऋषियों मुनियों का षड्यंत्र है तो रावण समझ गया कि अब महा युद्ध अवश्य होगा !
क्योंकि इंद्र के साथ पृथ्वी के समस्त क्षत्रिय वैष्णव राजा, ऋषि, मुनि और दूसरे लोग जो भी रावण का पतन चाहते थे, वह सभी योद्धा रावण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए राम के पक्ष में आने लगे थे, तो रावण यह समझ गया कि अब इस महा युद्ध के परिणाम कुल वंश का सम्पूर्ण विनाश भी हो सकता है !

रावण एक प्रकांड कर्मकांड का ज्ञानता था इसलिए कुल वंश के विनाश हो जाने पर अंतिम संस्कार व पित्र तर्पण आदि क्रिया कौन करेगा ? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न रावण के समक्ष खड़ा हो गया !

रावण कुशल राजनीतिज्ञ भी था उसे मालूम था के विभीषण शांत व धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति है ! अतः वह रणभूमि में किसी भी तरह हमारी सहायता नहीं कर सकता ! शांत और धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण रावण को सर्वथा यह उचित लगा कि इस महायुद्ध में कुल वंश के समाप्त हो जाने के बाद अपने परिवार के लोगों के अंत्येष्टि व पित्र तर्पण आदि के लिए अपने ही कुल गोत्र का एक सदस्य जीवित रहना परम आवश्यक है !

अतः रावण ने विभीषण को राम के शरण में जाने के लिए प्रेरित किया ! किंतु विभीषण का रावण के प्रति जो अगाध प्रेम था, उस कारण विभीषण ने अपनी सहमति नहीं दी ! किंतु रावण भविष्य दृष्टा था ! उसे मालूम था कि निकट भविष्य में क्या होने वाला है !

अतः उसने विभीषण को राम के शरण में भेजने के लिए भरे दरबार में अपमानित किया ! जिससे विभीषण भगवान श्री राम की शरण में चला गया और ऐसा नहीं है कि रावण ने विभीषण को कोई अकेले भगवान श्री राम की शरण में भेज दिया हो बल्कि विभीषण के हितों की रक्षा के लिये विभीषण के साथ अपने 4 प्रबल कूटनीतिक विचारक चिंतक योद्धा मंत्री अनल,पनस,संपाती और प्रभाती को भी विभीषण के साथ राम के शरण में भेजा था ! साथ ही विभीषण का कुशल क्षेम जानने के लिये मधुमक्खी और दर्पण यंत्रों को भी भेजा था जिससे कि विभीषण का जीवन वहां भी सुरक्षित रह सके !

यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम के शरण में जाने के बाद विभीषण ने रावण के वध का उपाय भगवान श्रीराम को सुझाया था ! जबकि बाल्मीकि रामायण में स्पष्ट रुप से लिखा है कि जब राम रावण का अंतिम महा युद्ध हो रहा था तो उस समय इंद्र ने अपने दिव्य रथ को अपने अति विश्वसनीय सारथी मिताली के साथ राम के लिए भेजा था !

और राम जब बार-बार रावण से युद्ध में परास्त हो रहे थे ! तब उस समय इंद्र के सारथी मिताली ने ही राम को रावण के नाभि पर वार करने के लिए प्रेरित किया था ! क्योंकि रावण ने खेचरी साधना के द्वारा अपने नाभि में अमृत कुंड को विकसित कर लिया था !

इस वजह से राम के अथक प्रयास के बाद भी रावण का वध नहीं हो पा रहा था ! तब इंद्र के सारथी मिताली के सुझाव पर जब राम ने रावण के नाभि का भेदन किया तो रावण के नाभि में स्थापित अमृत नष्ट हो गया और रावण की प्राण ऊर्जा के निष्क्रिय होने से शीघ्र ही रावण की मृत्यु हो गई !

प्राय: कहा जाता है कि रावण के अपमान से अपमानित होकर विभीषण भगवान राम की शरण में गया था और विभीषण ने अपने भाई के साथ विश्वासघात करके रावण का वध करवाया था ! यह सारे तथ्य नितांत ही गलत और भ्रामक हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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