अद्भुत खगोल विज्ञानी थे वराहमिहिर : Yogesh Mishra

भारत में ज्योतिष के विद्वानों की लम्बी परम्परा में वराहमिहिर का स्थान आकाश में उदित होने वाले ज्योतिष्मान् नक्षत्र की भांति है ! उन्होंने प्राचीन विद्वानों के ज्योतिर्विज्ञान को समेटते हुए अनेक नए अन्वेषण किये तथा बहुमूल्य जानकारियां प्रदान की !

दिल्ली के क़ुतुब मीनार अर्थात विष्णु स्तम्भ के महाराजा विक्रमादित्य के सहयोग से निर्माता तथा निकट महरौली में ज्योतिष शोध केन्द्र तथा गुरुकुल चलाने वाले वराहमिहिर अद्भुत खगोल विज्ञानी ही नहीं उद्भट भविष्य वक्ता भी थे ! जिसके हजारों साक्ष्य आज भी क़ुतुब मीनार की दीवालों पर चित्रित हैं !

वराहमिहिर ने पृथ्वी सहित ग्रहों का सही परिभ्रमण काल की सटीक गणना प्रस्तुत की है ! इस देश में प्राचीन काल से ज्योतिष के विद्वानों का अत्यधिक सम्मान रहा है !

वेद की एक सूक्ति में कहा है- प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्शम् (यजुर्वेद 30.10) अर्थात् सबसे बढिय़ा विज्ञान, सबसे अच्छी प्रतिभा प्राप्त करनी हो तो ‘नक्षत्रदर्श’ के पास जाओ ! सचमुच, इस तथ्य की तो कोई गणना ही नहीं कि ग्रहों, नक्षत्रों की गति काल आदि को जानने के लिये ज्योतिष के विद्वानों ने नक्षत्रों की ओर अपलक आँखों से कितनी हजार रात्रियाँ बिताई थी !

आज उपलब्ध परम्परा में वराहमिहिर ने सर्वप्रथम पृथ्वी की परिधि की सही माप बताई थी तथा उसका अपनी कक्षा में परिभ्रमण काल अर्थात् वर्ष का भी सबसे शुद्ध निरूपण किया था ! वराहमिहिर ने पृथ्वी की परिधि को कैसे नापा, इसका हम अन्य लेखों में निरूपण करेंगे ! यहाँ उनके इस अन्वेषण प्रयोग का परिणाम प्रस्तुत है ! उन्होंने पृथ्वी का वर्णन करते हुए 1600 योजन इसका व्यास तथा 1600 ग10 का वर्गमूल अथवा 1600 गपाई इसकी भूपरिधि बताया है ! श्लोक इस प्रकार है !

योजनानि शतान्यष्टौ भूकर्णो द्विगुणानि तु !
तद् वर्गतो दशगुणात् पदं भूपरिधिर्भवेत् !!
– सूर्यसिद्धान्त मध्यमाधिकार, श्लोक 59

प्राचीन काल में योजन का मान अनिश्चित रहा है ! पर सूर्यसिद्धांत की टीका में बर्गीज ने लिखा है कि ह्वेनसांग के एक विवरण के अनुसार 16000 क्यूबिट या हस्त का एक योजन होता है ! डेढ़ फीट का एक हस्त सर्वत्र मान्य है ! इस प्रकार 24,000 फीट का एक योजन होगा ! इंग्लिश माप के अनुसार 4854 फीट का एक मील होता है ! इस प्रकार 4.94 मील का एक योजन सिद्ध होता है ! इस गणना के अनुसार 7904 मील पृथ्वी का व्यास तथा 24994 मील भूपरिधि बनती है ! इसे आठ बटे पांच से गुणित करने पर 39991 कि.मी. भूपरिधि सिद्ध होती है ! यह आधुनिक मान्यता के लगभग बराबर है ! इस प्रकार वराहमिहिर ने अपनी रीति से भूपरिधि का सही माप प्राप्त करने में सफलता पाई थी !

पृथ्वी के अपनी कक्षा में एक बार परिभ्रमण का काल अर्थात् वर्षमान को भी उन्होंने अपनी रीति से प्रकट किया है ! इसके लिये श्लोक इस प्रकार है-

मानामष्टाक्षिवस्वद्रित्रिद्विद्व्यष्टशेरन्दव: !
भोदया भगणै: स्वै स्वैहनी स्वस्वोदया युगे !!
सूर्यसिद्धान्त, मध्यमाधिकार, श्लोक 34

इसके अनुसार एक महायुग के नाक्षत्र दिवसों 1582237828 में से उसके सौर वर्ष को घटाने पर सौर दिवस ज्ञात होते हैं ! अतएव – 1582237828-4320000 = 1577917828 सौर दिवस इस प्रकार 4320000 महायुग के सौर वर्षों में 1577917828 सौर दिवस अत: 1 सौर वर्ष में 1577917828/4320000 = 365.2587564 सौर दिवस अर्थात् 365 दिन 6 घण्टा 12 मिनट, 36 सेकेंड होता है !

आधुनिक खगोल विज्ञान की गणना के अनुसार भी एक वर्ष में 365 दिन 6 घण्टा, 9 मिनट 10 सेकेंड होता है ! इस प्रकार पूर्वोन्त गणना में केवल 3 मिनट का अन्तर है ! इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि प्राचीन ज्योतिष के विद्वान वर्ष के सामान्य परिमाप अनुसार 360 दिन तथा सर्वशुद्ध परिमाप अनुसार 365 दिन से भी सर्वथा परिचित थे !

ज्योतिष के विद्वान् इस तथ्य को इस प्रकार कहते हैं कि पृथ्वी एक भगण चक्र में अर्थात् अपनी कक्षा में एक परिभ्रमण चक्र को पूरा करने में 365 दिन लेती है ! यह एक परिभ्रमण चक्र पृथ्वी का एक वर्ष है ! अत: यह कहना आसान है कि एक वर्ष में 365 दिन होते हैं ! बुध आदि ग्रह अपने एक परिभ्रमण चक्र को पूरा करने जितने दिन लेते हैं, वह बुध का वर्ष कहा जायेगा !

वराहमिहिर ने महायुग के पूर्वोक्त सौर दिवसों में बनने वाले बुध आदि ग्रहों के कुल वर्षों का भी निर्देश किया है ! अर्थात् उन्होंने यह भी बताया है कि बुध आदि के कितने पूर्वोक्त सौर दिवसों के समतुल्य होते है ! इससे अनुपात विधि से बुध के एक वर्ष में पृथ्वी के सौर दिवसों की संख्या ज्ञात होती है !

एक महायुग में पृथ्वी के सौर दिवसों की संख्या 1577917828 नियत है ! निम्र श्लोक में इस नियत सौर दिवसों में बुध आदि ग्रहों की संख्या बताई गई है !

इन्दो रसाग्रित्रित्रीषु सप्तभूघरमार्गणा: !
दस्रत्र्याष्टरसांकाक्षिलोचनानि कुजस्य तु !
बुधशीघ्रस्य शून्यर्तुखाद्रित्र्यंकनगेन्दन: !
बुहस्पते: खदस्राक्षि वेद षड् वह्नयस्तथा !
सितशीघ्रस्य षट्सप्त त्रियमाश्विखभूघरा !
शनेर्भुजंगषट्पंचरसवेद निशाकरा: !!
– सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार 30/3

अर्थात् महायुग में पृथ्वी के सौर दिवसों 1577917828 के मध्य

बुध की अपनी कक्षा में परिभ्रमण संख्या अर्थात् बुध का वर्ष – 17937060

शुक्र की अपनी कक्षा में परिभ्रमण संख्या अर्थात् शुक्र का वर्ष – 7022376

मंगल की अपनी कक्षा में परिभ्रमण संख्या अर्थात् मंगल का वर्ष – 2296832

बृहस्पति की अपनी कक्षा में परिभ्रमण संख्या अर्थात् बृहस्पति का वर्ष – 364220

शनि की अपनी कक्षा में परिभ्रमण संख्या अर्थात् शनि का वर्ष – 146568
इन सूचनाओं के आधार पर बुध आदि के एक परिभ्रमण को पूरा करने में कितने दिन लगते है, इसे आसानी से जान सकते हैं !

बुध के 17937060 वर्षों में पृथ्वी के सौर दिवस 1577917828 ! अत: बुध के 17937060 वर्षो में पृथ्वी का सौर दिवस 1577917828/17937060 !

यह उल्लेख बहुत सुखद है कि इस विधि से जो परिणाम प्राप्त होते हैं ! आधुनिक खगोल विज्ञान की गणना भी उसके निकटतम समतुल्य ही है !

यह उल्लेख कितना सुखद एवं रोचक है कि प्राचीन ज्योतिष के विद्वानों ने विविध ग्रहों के वर्षमान को अतिसूक्ष्मता से ज्ञात करने में सफलता प्राप्त कर ली थी ! उनके इन मानों में आधुनिक विज्ञान से केवल कुछ मिनटों का अन्तर है !

उन्होंने इन मानों को प्रतिदिन के वेध के आधार पर प्राप्त किया था ! कोई ग्रह जब किसी नक्षत्र के सापेक्ष पुन: जब उसी स्थिति में दृष्टिगोचर होता है ! तब उस ग्रह का एक वर्ष पूरा होता है ! इस कार्य के लिये विद्वानों को कई पीढियों तक वेध करना पड़ा होगा ! उनका यह परिश्रम अकल्पनीय है !

हम आज के नवीन उपकरणों के युग में उस संसाधन विहीन विद्वानों के उस महान परिश्रम के विषय में जल्दी सोच भी नहीं सकते हैं !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter