वैष्णव द्वारा केदारनाथ हड़पने का असफल प्रयास : Yogesh Mishra

बद्रीनाथ को वैष्णव ने कैसे हड़पा इस पर मैं पहले ही अपना शोध लेख लिख चुका हूँ जो मेरी वेबसाईट पर मौजूद है ! आज बात करता हूँ वैष्णव द्वारा केदार नाथ हड़पने के असफल प्रयास की !

महाभारत के युद्ध में कृष्ण द्वारा एक एक शैव परम्परा के पोषक राजाओं की हत्या करवा देने के बाद केदारनाथ नाथ को हड़पने के लिये वैष्णव ने आरोप लगाया कि केदारनाथ में स्वर्ग से सीधे पवित्र हवा आती है ! अत: केदारनाथ क्षेत्र के भूखण्ड पर वैष्णव का ईश्वरीय अधिकार है !

क्योंकि कभी हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के तथाकथित अवतार नर और नारायण ने कठोर तपस्या की थी ! अत: यह क्षेत्र वैष्णव के आधीन है !

यहाँ से शैव साधकों को खदेड़ने के लिये महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण ने पांडवों को भी भेजा था ! जिस पर दिन भर शैव साधकों से मौखिक संवाद चला सायंकाल आते आते संवाद विवाद में बदल गया और शैवों ने अपनी आत्म रक्षा के लिये पांडवों पर वहां सहज उपलब्ध पत्थरों से हमला कर दिया ! जिस अप्रत्याशित हमले से बचने के लिये पांडव ने वर्तमान केदारनाथ नाथ शिव लिंग के पीछे छिप पर अपनी जान बचाई और रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर वहां से भाग खड़े हुये !

कालांतर में उस पांडव की जीवन रक्षक शिला को केदारनाथ नाम दे दिया गया ! पाण्डव वंश के जनमेजय ने उस शिला पर भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया ! बाद में आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया !

जबकि राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12-13वीं शताब्दी का निर्मित है ! इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ तप आदि करते रहे हैं ! ग्वालियर से मिली एक राजा भोज की स्तुति के अनुसार इस वर्तमान मन्दिर का निर्माण 1076 से 1099 के मध्य हुआ है !

जबकि वैष्णव कथा वाचकों के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे ! इसके लिए वह भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वह उन लोगों से रुष्ट थे !

भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वह उन्हें वहां नहीं मिले ! वह लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे ! भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे ! दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वह उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए ! भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वह अन्य पशुओं में जा मिले !

पांडवों को संदेह हो गया था ! अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया ! अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए ! भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा ! तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया ! भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए ! उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया ! उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं !

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ ! अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है ! शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए ! इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है ! यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं !

जबकि केदारनाथ के अलावा अन्य पंचकेदार भी शैवों के अधीन तप स्थली हो थे इससे इतर अन्य कुछ भी नहीं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter