मोक्ष के पीछे का पूरा विज्ञान समझे : Yogesh Mishra

कारण शरीर जीव की प्रकृति का नाम है ! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, इन तीनों समुदाय से परे कारण शरीर होता है ! यह जीव का सूक्ष्मतम कण हैं ! इसीलिये इसे ‘कारण-शरीर’ कहते हैं ! इसमें आकाश तत्व की प्रधानता होती है !

अब उस प्रकृति रूपी कारण शरीर से दूसरा जो शरीर उत्पन्न हुआ ! उसका नाम ‘सूक्ष्म शरीर’ है ! जिसने वायु तत्व के प्रभाव से आपने शरीर पर सूती कुर्ता कपड़ा पहन रखा है ! ऐसा प्रतीत होता है ! इसका कारण है आकाश और वायु तत्व की सघनता है ! जिसे हम आत्मा भी कह सकते हैं ! जो हमारे शरीर में जन्म से पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक स्थिर रहती है ! इसी की ऊर्जा से शरीर क्रियान्वित रहता है !

और इसके बाद तीसरा शरीर स्थूल शरीर होता है ! जिसे हम भौतिक शरीर भी कह सकते हैं ! कभी भी सूक्ष्म शरीर के बिना स्थूल शरीर नहीं बनेगा ! कहा गया है कि शरीर प्रकृति के सत्त्व, रज और तम सहित अठारह चीजें से मिल कर बना है ! सृष्टि के आरंभ में जब भगवान ने यह सारी दुनिया बनायी तो शरीर की प्रकृति के लिये अठारह पदार्थ उत्पन्न किये !

उनके नाम हैं- बुद्दि, अहंकार, मन, पाँच ज्ञान- इन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच तन्मात्रा ! इनसे सूक्ष्म शरीर बना है ! यह सारे पदार्थ प्रकृति से बनते हैं ! रूप,रस, गंध आदि पाँच तन्मात्राओं से पाँच महाभूत बनते हैं ! जब यह जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, पाँच महाभूतों के पर्याय माँ के गर्भ में पिण्ड में प्रवेश करता है ! तब इन्हीं पाँच पदार्थों के सहयोग से स्थूल शरीर का निर्माण होता है !

जो आपको आँख से दिखता है, वह स्थूल शरीर है ! इन तीनों शरीरों का आपस में संबंध होता है ! जब यह सम्बन्ध टूटता है तो व्यक्ति अस्वस्थ्य हो जाता है !

जब तक जीवात्मा पुर्नजन्म धारण करेगा ! अर्थात एक शरीर छोड़ दिया, दूसरा शरीर धारण कर लिया, तो स्थूल शरीर छूट जायेगा ! किन्तु सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर यह दोनों आपस में जुड़े रहेंगे ! पुर्नजन्म हुआ तो फिर नया स्थूल शरीर मिल गया ! यही निरंतर का जीवन चक्र है !

जब तक जीव आत्मा में भोग की वासना है तब तक मुक्ति नहीं होगी ! यही प्रकृति की व्यवस्था है ! जब आत्मा में भोग की वासना समाप्त होगी तब मुक्ति अर्थात मोक्ष मिल जायेगा और सूक्ष्म-शरीर स्थूल शरीर धारण न करके कारण-शरीर में समाहित हो जायेगा ! तब पुर्नजन्म नहीं होगा ! कालांतर में सूक्ष्म-शरीर भी कारण-शरीर में समाहित होकर ईश्वर के आधीन हो जाता है !

अर्थात किसी पूजा, पाठ, अनुष्ठान, जप, तप, व्रत आदि से व्यक्ति को कभी मोक्ष नहीं मिलता है ! मोक्ष के लिये अपने इंद्रियों को नियंत्रित करना पड़ता है और रसास्वादन की प्रवृत्ति छोड़कर सभी कामनाओं और वासनाओं का परित्याग कर अपने को इंद्रिय सुख विहीन जीवन का अभ्यासी बनाना पड़ता है ! इसी से इंद्रियां सुसुप्त होती हैं ! और व्यक्ति की कामना और वासना का परित्याग होता है ! रसास्वादन की प्रवृत्ति शांत होती है तब व्यक्ति आत्मास्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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