लाक्षाग्रह का सत्य : Yogesh Mishra

प्रयागराज इलाहबाद से 50 किलोमीटर दूर हंडिया के तथाकथित लाक्षागृह के निकट गंगा घाट पर बरसात के कारण टीला की मिट्टी ढह जाने के कारण करीब छह फीट चौड़ा सुरंग दिखाई देने लगी ! क्षेत्र में सुरंग की बात चर्चा में आने पर ग्रामीण वहां पहुंचने लगे !

साथ ही लाक्षागृह पर्यटन स्थल विकास समिति के ओंकार नाथ त्रिपाठी ने इस संबंध में बताया कि यहाँ पर महाभारत काल के समय के कई अवशेष मिले हैं, जिसे संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है ! केंद्र व राज्य सरकार से कई बार इसे पर्यटल स्थल बनाए जाने की जनता द्वारा मांग भी की जा चुकी है !

लेकिन यह सत्य नहीं है. अत: मुझे लेखनी उठानी पड़ी !

महाभारत मे दुर्योधन द्वारा पांडवों को लाक्षाग्रह में जलाकर मारने का षड्यंत्र रचा गया था ! दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए अपने राज मिस्त्री शिल्पकार “त्रिलोचन” से लाख के भवन का निर्माण कराया था और उसे पांडवों को भेंट स्वरूप देने के बाद महल का दरवाजा बंद कर बाहर से आग लगाने की योजना बनाई गई थी !

विदुर को गुप्तचरों द्वारा इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने इसकी सूचना पांडव को गुप्त रूप से भेजी तब पांडव लोगों ने भवन से हिंडनी नदी के किनारे उस पार तक सुरंग बना डाली थी ! क्योंकि यदि मुख्य द्वार से भागते तो वहां उनकी हत्या कर दी जाती !

खुद आग लगाकर महल छोड़ कर कुंती और द्रौपदी के साथ सुरंग द्वारा जान बचा कर निकल गए थे ! विदुर द्वारा भेजी गई एक नौका में सवार होकर वह नदी के उस पार पहुंच गये !

लेकिन बहुतों को पता भी नहीं होगा महाभारत में वर्णित वर्णावृत कहां है जहां लाक्षाग्रह कांड हुआ था ? यह लाक्षाग्रह आज भी अवशेष रूप में बागपत जिले में बरनावा गांव में मौजूद हैं !

वर्तमान में बागपत के बरनावा का पुराना नाम वर्णाव्रत माना जाता है ! साथ ही यह भी कहा जाता है कि ये उन 5 गावों में शुमार था, जिनको पांडवों ने कौरवों से मांगा था ! बरनावा हिंडनी (हिण्डन) और कृष्णा नदी के संगम पर बागपत जिले की सरधना तहसील में मेरठ (हस्तिनापुर) से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी स्थित है !

यह प्राचीन गांव ‘वारणावत’ या ‘वारणावर्त’ है, जो उन 5 ग्रामों में से था ! जिनकी मांग पांडवों ने दुर्योधन स महाभारत युद्ध के पूर्व की थी ! यह 5 गांव वर्तमान नाम अनुसार पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत और वरुपत बरनावा !

बरनावा गांव में महाभारतकाल का लाक्षागृह_टीला है ! यहीं पर एक सुरंग भी है जिससे होकर पांडव लाक्षाग्रह से बाहर निकले थे ! यह सुरंग हिंडनी नदी के किनारे पर खुलती है ! टीले के पिलर तो कुछ असामाजिक_तत्वों ने तोड़ दिए और उसे वे मजार बताते थे ! यहीं पर पांडव किला भी है जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं !

लाक्षागृह की सुरंग से निकलकर पांडवजन हिंडनी नदी किनारे पहुंच गए थे, जहां पर विदुर द्वारा भेजी गई एक नौका में सवार होकर वे नदी के उस पार पहुंच गए।

गांव के दक्षिण में लगभग 100 फुट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ यह टीला लाक्षागृह का अवशेष है ! इस टीले के नीचे दो सुरंगें स्थित हैं ! जिससे पांडव द्वारा भागा जाना बतलाया जाता है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter