घुटन और डिप्रेशन का कारण तो नहीं है थायराइड रोग : Yogesh Mishra

दिन प्रतिदिन के क्रियाकलापों में बच्चे को सफलता एवं असफलता का अनुभव होता रहता है ! इसका सीधा प्रभाव उसके आत्म प्रत्यय के विकास पर पड़ता है ! कभी-कभी बच्चे को समाज तो सफल मानता है, लेकिन बच्चा स्वयं को सफल नहीं मानता अतः वह अपनी सफलता और असफलता के प्रति द्वन्द की स्थिति में रहता है ! बालक अपनी सफलता तथा असफलता के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करता है यह भी उसके व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करता है तथा इससे व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन भी प्रभावित होता है !

यद्यपि बच्चे सफलता और असफलता के प्रति भिन्न-भिन्न तरह से प्रतिक्रिया करते हैं तथापि इन प्रतिक्रियाओं का कुछ रूप सभी बच्चों में समान रूप से पाया जाता है ! असफलता न केवल ‘आत्म प्रत्यय’ को प्रभावित करती है बल्कि व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन पर भी इसका प्रभाव हानिकारक होता है ! इसके विपरीत सफलता का प्रभाव ‘आत्म प्रत्यय’ के विकास पर अनुकूल पड़ता है ! ऐसे बच्चे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अत्यधिक समायोजित होते हैं !

बच्चों की सांवेगिक दशायें उतनी परिपक्व नहीं होती हैं ! तीव्र एवं अनुपुक्त सांवेगिक उदगार बच्चे की अपरिपक्वता का सूचक होता है ! यदि सांवेगिक अभिव्यक्तियों को अधिक नियंत्रित किया जाये तो बच्चे में मनमानापन आ जाता है जिसके परिणामस्वरूप इनका व्यवहार कठोर, असहयोगपूर्ण तथा अभिनतिपूर्ण हो जाता है ! इसके अतिरिक्त संवेगों के अतिनियंत्रण की स्थिति में बच्चा अनेक प्रकार के सांवेगिक एवं मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाता है ! सांवेगिक दशाओं में विभिन्न आयु के चरणों में परिलक्षित होता है !

प्रायः लोग उन बच्चों को ज्यादा समझते हैं जो सांवेगिक रूप से नियंत्रित होते हैं तथा अपने संवेगों की अभिव्यक्ति उनके वयस्कों में मानदंडों के अनुरूप करते हैं ! बच्चों का संवेग किस रूप में उनके आत्म प्रत्यय को प्रभावित करता है, यह इस पर निर्भर करता है कि वयस्क उनके संवेगों का मूल्यांकन किस ढंग के कर रहे हैं ! इस प्रकार संवेग अप्रत्यक्ष रूप से आत्मप्रत्यय तथा व्यक्तित्व को प्रभावित करता है ! अति तीव्र सांवेगिक दशा का व्यक्तित्व पर परिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे इन बच्चों का सामाजिक समायोजन उपयुक्त नहीं होता है !

अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ सीधे रक्त धारा में जटिल रासायनिक पदार्थ का स्राव करती हैं, जिन्हें हारमोन्स कहा जाता है ! हारमोन्स की समुचित मात्र व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावी बनाती हैं ! लेकिन इसकी अधिकता या कमी प्रायः व्यक्ति के व्यवहार में प्रभाविशाली परिवर्तन लाते हैं ! पीयुष ग्रंथि’ को ‘मास्टर ग्रंथि’ कहा जाता है, जो पूरे शरीर के विकास को निर्धारित करती है ! पीयुष ग्रंथि से निकलने वाले हारमोन्स (वृद्धि हारमोन्स) की अधिकता से शरीर का आकार बड़ा तथा बेडौल हो जाता है तथा इस ग्रंथि की अल्पसक्रियता व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि को अवरुद्ध करता है ! अतः व्यक्ति कायर, संकोची व झगड़ालू प्रवृत्ति का हो जाता है !

थायराइड ग्रंथि से निकलने वाला थायरारिक्सन हारमोन्स शरीर के उपापचयी क्रिया को नियत्रिंत करती है ! इसकी अधिकता उपापचय दर को तीव्र करती है जिसके कारण शरीर के भार में कमी आ जाती है ! थायरारिक्सन की शरीर में कमी, व्यक्ति के वजन में वृद्धि क्र उसमें निष्क्रियता पैदा करती है ! निम्न थायरारिक्सन स्तर में बौनापन होता है ! एड्रिनल ग्रंथि से निकलने वाले एड्रिनल हारमोन्स बालक को सुखवादी, सक्रिय और चंचल बनाते हैं, जबकि इसकी अल्पसक्रियता बालक को चिढ़चिड़ा, कमजोर व कुसमायोजित बना देती है !

अतः इस तरह से सिद्ध होता है कि जिन परिवारों में तनाव और घुटन का वातावरण होता है वहां पर बच्चों थायराइड ग्रंथि से निकलने वाला थायरारिक्सन हारमोन्स का रिसाराव सही तरह नहीं हो पाता है और उसका असर व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व पर पड़ता है !

इसी को दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि थायराइड की प्रॉब्लम चाहे वह बचपन के कम उम्र की हो या अधिक उम्र की ! यह परिवार के तनाव और घुटन के वातावरण का परिणाम है ! जिसे पारिवारिक परिवेश में सुधार कर के ठीक किया जा सकता है ! साथ ही सामान्य नमक के स्थान पर सेंधा नमक प्रयोग करने से भी थायराइड की समस्या शीघ्र ही ठीक हो जाती है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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