भगवान राम की सेना में नहीं था कोई जानवर ! उनके साथ 300 से अधिक राजा लड़ें थे रावण से ! Yogesh Mishra

वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के अनुसार भगवान राम के जन्म की तारीख महर्षि वाल्मीकि द्वारा बताए गए ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर से गणना के अनुसार प्रोफेसर तोबयस ने ग्रहों के विन्यास के आधार पर 7130 वर्ष पूर्व अर्थात 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व बतलाया है ! उनके अनुसार ऐसी आका‍शीय ग्रह स्थिति तब भी बनी थी ! तब दिन में 12 बजकर 25 मिनट पर आकाश में ग्रहों का ऐसा ही दृष्य था जो कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित है !

5114 ईसा पूर्व इसी दिन चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी थी ! वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे तब हुआ था ! इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर थे तब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था ! (बाल कांड 18/श्लोक 8, 9) !

तब मिस्र की सभ्यता की शुरुआत हो रही थी ! पूरा का पूरा यूरोप बर्फ से ढका हुआ था ! वहां कृषि नाम की कोई चीज नहीं थी और न ही कोई उद्योग, व्यापार था ! वहां के मूल निवासी भूखे, नंगे, वहशी, दरिंदों की तरह एक दूसरे को लूट कर अपना जीवन यापन करते थे ! कमोवेश यही स्थिती वर्तमान अमेरिका की भी थी !

उस समय में सर्वाधिक संपन्न और विज्ञान में सर्वाधिक विकासित क्षेत्र लंका थी ! जिसका राजा लंकेश्वर रावण था ! रावण के भाई कुंभकरण उस समय तकनीक और विज्ञान के जनक थे ! यह छह छह माह तक अपनी गुप्त प्रयोगशालाओं शोध करते रहते थे समाज में निकलते ही नहीं थे ! जिससे सुरक्षा कारणों से यह प्रचार किया जाता था कि कुंभकर्ण को सोने का रोग है वह सदैव गुप्त स्थानों पर सोता रहता है !

कुंभकर्ण ने विश्व के सभी वैज्ञानिकों को लंका में अपनी प्रयोगशालाओं में स्थान दे रखा था ! जैसे आजकल अमेरिका दे रहा है ! यही कारण था की लंका के अंदर निर्माण किये गये उन्नत किस्म के वैज्ञानिक हथियार व यंत्र संयंत्र पूरे विश्व में बेचकर पूरे विश्व से धन संग्रह किया जाता था ! लंका का प्रभाव इतना अधिक था की लंका के उन्नत अस्त्र शस्त्रों के बिना विश्व का कोई भी राष्ट्र अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करता था ! जैसे आजकल इजरायल के सुरक्षा उपकरणों और हथियारों को मांग बढ़ी है ! यह लंका का विज्ञान ही था जो पूरे विश्व से सोना खींचकर लंका को लाता था और लंका मैं उस समय इतना सोना हो गया था कि संपन्न लोग स्वर्ण भवनों में रहा करते थे !

किंतु दुर्भाग्य के इंद्र के भोग विलासी व्यक्तित्व के कारण इंद्र द्वारा जब रावण की पत्नी मंदोदरी की मां “हेमा” का अपहरण कर लिया गया और उसे अप्सरा बना दिया गया ! तब अपने ससुर असुरराज “मायासुर” में के सम्मान के लिए रावण ने मेघनाथ को भेजकर इंद्र को बंदी बनाया और अपनी सास “हेमा” को इंद्र के कैद से आजाद करवाया !
वहीं से इंद्र के अहंकार को चोट लगने के कारण इंद्र ने वैष्णव उपासक महर्षि वशिष्ठ, भरद्वाज और अगस्त मुनि आदि के सहयोग से भगवान श्री राम के द्वारा छल करके रावण की वंश मूल सहित हत्या करवा दी
!

और उससे ज्यादा हास्यास्पद बात यह है कि इस पूरे के पूरी योजना में इन्द्र द्वारा मात्र भगवान राम को ही नहीं छला गया बल्कि उस समय दक्षिण भारत के सशक्त प्रांतों के अनेक राजाओं को रावण का भय दिखाकर राम के साथ युद्ध करने के लिए राजी किया गया ! इन अनेक राजाओं में जिस पर यह शक था कि वह इंद्र और राम का साथ नहीं देंगे ! उसकी पहले राम द्वारा हत्या करवा दी गई जैसे राजा बाली आदि !

और तत्पश्चात उस परिस्थिति में रावण के विरुद्ध दुषप्रचार करके ऐसा राजनीतिक वातावरण दक्षिण भारत में तैयार किया गया कि रावण का अहंकार व लोभ सम्पूर्ण विश्व को निगल जायेगा ! इस भय का लाभ उठाते हुए राम को एक बड़ी सेना उपलब्ध करवाई गई और उस सेना को इस युद्ध के लिये सभी जरुरी संसाधन व हथियार इन्द्र आदि देवताओं (उत्तर योरोप के प्रजाति के मनुष्य ) के द्वारा उपलब्ध करवाये गये ! इसी प्रायोजित सेना की मदद से राम और लक्ष्मण ने लंका पर आक्रमण किया और रावण का समूल नाश किया !

राम के काल में रावण ने प्रायः सभी देवों को पराजित कर दिया था ! उसके इन्द्र के आग्रह पर रावण के विरुद्ध लगभग 300 वैष्णव राजाओं ने राम की सहायता की थी ! जिसके लिये बाल्मीकि रामायण के अनुसार राम ने अपने राज्याभिषेक के बाद उनको धन्यवाद दिया था ! (रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ३८)

राम की ओर से रूस की ऋक्ष सेना, चीनी की वानर सेना, तिब्बती की तंवण सेना, कुबेर की यक्ष सेना, विष्णु की गरुड़ सेना, वरुण की गृध्र सेना, काशी की वासुकि सेना, यम की महिष सेना, अयोध्या की सेना, केकय आनव सेना, मिथिला जनक सेना, ब्रह्मा की सारस्वत सेना, इन्द्र की अमोघ सेना, सुषा सेना आदि ने राम का साथ दिया था !

बतलाया जाता है कि राम की सेना में तरह-तरह के बंदर, भालू, रिच, गिद्ध आदि थे जबकि इन पर गहन शोध किया गया तो यह पाया गया कि भगवान श्री राम की सेना में कोई भी जानवर अर्थात बंदर, भालू, रिच, गिद्ध आदि नहीं थे बल्कि यह वह लोग थे जो पूरी तरह से मानसिक व शाररिक रूप से विकसित थे और इनके विवाह सम्बन्ध आदि भी सामान्य मनुष्यों के साथ हुआ करते थे ! यह वन निवासी ग्रामीण छोटे-छोटे कबीले बनाकर दक्षिण भारत के जंगलों में रहा करते थे और अपने कार्य और प्रवृत्ति के अनुसार अलग-अलग देवी-देवता, पशु-पक्षियों की आराधना किया करते थे और उन्हीं के नाम व कार्यों से इनके काबिले विख्यात थे !

रामायण काल में जिन्हें हम बंदर, भालू, रिच, गिद्ध आदि जानवर समझते हैं उनमें से कई श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे ! नल, नील, मय दानव, विश्वकर्मा, अग्निवेश, सुबाहू, आदि कई वैज्ञानिक थे ! रामायण काल में भी आज के युग जैसे अविष्कार हुए थे ! रामायण काल में नाव, समुद्र जलपोत, विमान, शतरंज, रथ, धनुष-बाण और कई तरह के अस्त्र शस्त्रों के नाम तो आपने सुने ही होंगे, उनका विकास और प्रयोग होता था ! उस काल में भी मोबाइल, सेटेलाईट, जी.पी.एस., राडार लेज़र हथियार, तरह-तरह के विकसित बम, लड़ाकू विमान आदि थे !

रामायण काल में विभीषण के पास ‘दूर नियंत्रण यंत्र’ था जिसे ‘मधुमक्‍खी’ कहा और जो मोबाइल की तरह उपयोग होता था ! वि‍भीषण के पास दर्णन यंत्र (टी.वी.)था जिससे दूर की चीजें देखी जा सकती थी ! लंका के 10,000 सैनिकों के पास ‘त्रिशूल’ (वायर लेस सेट) नाम के यंत्र थे, जो दूर-दूर तक संदेश का आदान-प्रदान करते थे ! इसके अलावा विशेष दर्पण यंत्र जो अंधकार में देखने के काम आता था !

लड़ाकू विमानों को नष्‍ट करने के लिए रावण के पास भस्‍मलोचन जैसा वैज्ञानिक था ! जिसने एक विशाल ‘दर्पण यंत्र’ का निर्माण किया था ! इससे प्रकाश पुंज वायुयान पर छोड़ने से यान आकाश में ही जल कर नष्‍ट हो जाते थे ! लंका में यांत्रिक सेतु, यांत्रिक कपाट और ऐसे चबूतरे भी थे, जो बटन दबाने से ऊपर-नीचे (लिफ्ट) होते थे ! संभवत: संचालित होने वाले विमान व चबूतरे (आटोमेटिक वाहन) थे !

रामायण काल में भवन, पूल और अन्य निर्माण कार्यों का भी जिक्र मिलता है ! इससे पता चलता है कि उस काल में भव्य रूप से निर्माण कार्य किए जाते थे और उस काल की वास्तु एवं स्थापत्य कला आज के काल से कई गुना आगे थी ! उस युग में विश्वामित्र और मयासुर नामक दो प्रमुख वास्तु और ज्योतिष शास्‍त्री थे ! दोनों ने ही कई बड़े बड़े नगर, महल और भवनों का निर्माण किया था और रावण के कारण “संस्कृत” विश्व की सम्पर्क भाषा थी ! लंका का प्रत्येक व्यक्ति नित्य वेद पाठी था !

गीता प्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक ‘श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर’ में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा ! इसका यह कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र में निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था ! महाभारत ग्रन्थ में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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