सनातन ज्ञान ही सभी संस्कृतियों का मूल है ! : Yogesh Mishra

कुछ लोग हिन्दू संस्कृति की शुरुआत को मात्र सिंधु घाटी की सभ्यता से जोड़कर देखते हैं ! जो गलत है ! वास्तव में संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के उपलब्ध इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत में सनातन धर्म के इतिहास की शुरुआत ईसा से लगभग 13 हजार पूर्व हुई थी अर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व ! इस पर विज्ञान ने भी शोध किया और वह भी इसे सच मानता है ! जीवन का विकास भी सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है ! यहां पूरे विश्व में डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं !

संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है ! ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’ ! संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था !

भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ ! भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा ! ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ ! ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिसे देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है ! हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे ! तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था !

जैसा कि जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता कोमानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था ! उसी ने इस लेखन की खोज की ! प्राचीन दुनिया में सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी ! इसके कई प्रमाण मौजूद हैं ! यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी ! प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कहीं ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी ! दुनिया का पहला धर्मग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था !

पुरातत्त्वविदों के अनुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी, 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण यह लुप्त हो गया ! एक ओर जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया !

हजारों वर्ष पहले के हिन्दू लोग – सैकड़ों हजार वर्ष पूर्व पूरी दुनियाँ के लोग कबीले, समुदाय, घुमंतू वनवासी आदि में रहकर जीवन-यापन करते थे ! उनके पास न तो कोई स्पष्ट शासन व्यवस्था थी और न ही कोई सामाजिक व्यवस्था ! परिवार, संस्कार और धर्म की समझ तो बिलकुल नहीं थी ! ऐसे में केवल भारतीय हिमालयन क्षेत्र में कुछ मुट्ठीभर लोग थे, जो इस संबंध में सोचते थे ! उन्होंने ही वहद को सुना और उसे मानव समाज को सुनाया ! उल्लेखनीय है कि प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज कबीले में नहीं रहा ! वह एक वृहत्तर और विशेष समुदाय में ही रहा !

पूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो ! क्योंकि ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं !

परन्तु इन सभी से भी पूर्व अर्थात आज से 5000 वर्ष पहले महाभारत का युद्ध लड़ा गया था ! महाभारत से भी पहले 7300 ईसापूर्व अर्थात आज से 7300+2000=9300 साल पहले रामायण का रचनाकाल प्रमाणित हो चुका है !

मनुस्मृति अब चूँकि महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में उससे भी पहले लिखी गई मनुस्मृति का उल्लेख आया है तो आइये अब जानते हैं रामायण से भी प्राचीन मनुस्मृति कब लिखी गई ! किष्किन्धा काण्ड में श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उन्हें दंड देने के लिए मनुस्मृति के श्लोकों का उल्लेख करते हुये उसे अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बताते हुए कहते हैं- मैं तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता !

श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ! !
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ ! !
वाल्मीकि 4-18-30
राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः !
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ! !
वाल्मीकि4-18-31

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते !
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् !
वाल्मीकि 4-18-32

उपरोक्त श्लोक 30 में मनु का नाम आया है और श्लोक 31 , 32 भी मनुस्मृति के ही हैं एवं उपरोक्त सभी श्लोक मनु अध्याय 8 के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टीकावली में 318 व 319 है ! यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनुस्मृति जो महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में अनेकों स्थान पर आयी है

मनुस्मृति रामायणकाल (9300 साल) के भी पहले विधमान थी ! अब आईये विदेशी प्रमाणों के आधार पर जानते हैं कि रामायण से भी पहले की मनुस्मृति कितनी प्राचीन है.सन 1332 में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार को तोड़ा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा की प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी ! वह हस्तलेख सर ऑगस्टस फ्रिट्ज जॉर्ज के हाथ लग गयीं ! वो उन्हें लंदन ले गये और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया ! उन हस्तलेखों को प्रो एंथनी ग्रीम ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया !

मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है’ तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है ! यही विवरण मोटवानी कि पुस्तक ‘मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज’ पेज 232 पर भी दिया है ! इसके अतिरिक्त आर.पी. पाठक कि एजुकेशन ऑफ़ इमर्जिंग इंडिया में भी पेज 148 पर है !

अब देखें चीन की दीवार के बनने का समय लगभग 220-206 BC है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा 220+10000 =10220 ईसा पूर्व यानी आज से कम से कम 12,220 वर्ष पूर्व तक भारत में मनुस्मृति पढ़ने के लिए उपलब्ध थी !मनुस्मृति में सैकड़ों स्थानों पर वहदों का उल्लेख आया है ! अर्थात वहद मनुस्मृति से भी पहले लिखे गये ! अब हिन्दू धर्म के आधार वहदों की प्राचीनता जानते हैं-

वहदों का रचनाकाल इतना प्राचीन है कि इसके बारे में सही-सही किसी को ज्ञात नहीं है ! पाश्चात्य विद्वान वहदों के सबसे प्राचीन मिले पांडुलिपियों के हिसाब से वहदों के रचनाकाल के बारे में अनुमान लगाते हैं ! जो अत्यंत हास्यास्पद है ! क्योंकि वहद लिखे जाने से पहले हजारों सालों तक पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए जाते थे ! इसीलिए वहदों को “श्रुति” भी कहा जाता है ! उस काल में भोजपत्रों पर लिखा जाता था अत: यदि उस कालखण्ड में वहदों को हस्तलिखित भी किया गया होगा तब भी आज हजारों साल बाद उन भोजपत्रों का मिलना असम्भव है !

फिर भी वहदों पर सबसे अधिक शोध करने वाले स्वामी दयानंद जी ने भी अपने ग्रंथों में ईश्वर द्वारा वहदों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया हैं. ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवहद के पुरुष सूक्त (ऋक 10.90, यजु 31 , अथर्व 19.6 ) में सृष्टी उत्पत्ति का वर्णन है कि परम पुरुष परमात्मा ने भूमि उत्पन्न की, चंद्रमा और सूर्य उत्पन्न किये, भूमि पर भांति भांति के अन्न उत्पन्न किये,पशु पक्षी आदि उत्पन्न किये ! उन्ही अनंत शक्तिशाली परम पुरुष ने मनुष्यों को उत्पन्न किया और उनके कल्याण के लिए वहदों का उपदेश दिया !

उन्होंने शतपथ ब्राह्मण से एक उद्धरण दिया और बताया-
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेदः सूर्यात्सामवहदः
शत. !!

प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा इन तीनों ऋषियों की आत्मा में एक एक वहद का प्रकाश किया !’ (सत्यार्थप्रकाश, सप्तमसमुल्लास, पृष्ठ 135 इसलिए वहदों की उत्पत्ति का काल मनुष्य जाति की उत्पत्ति के साथ ही माना जाता है !स्वामी दयानंद की इस मान्यता का समर्थन ऋषि मनु और ऋषि वहदव्यास भी करते हैं ! परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वहदों के शब्दों से ही सब वस्तुओं और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिक व्यवस्थाओं की रचना की हैं. (मनुस्मृति 1.21) स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वहद रूप नित्य दिव्यवाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं (वहद व्यास,महाभारत शांति पर्व 232/24)

कुल मिलाकर वहदों, सनातन धर्म एवं सनातनी परम्परा की शुरूआत कब हुई ! ये अभी भी एक शोध का विषय है ! इसका मतलब कि हजारों वर्ष ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी ! और यहाँ के लोग पढ़ना-लिखना भी जानते थे ! इसके बाद भारतीय संस्कृति का प्रकाश धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलने लगा ! तब भारत का ‘धर्म’ ‍दुनियाभर में अलग-अलग नामों से प्रचलित था !

अरब और अफ्रीका में जहां सामी, सबाईन, ‍मुशरिक, यजीदी, अश्शूर, तुर्क, हित्ती, कुर्द, पैगन आदि इस धर्म के मानने वाले समाज थे तो रोम, रूस, चीन व यूनान के प्राचीन समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म का पालन करते थे ! फिर ईसाई और बाद में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को नष्ट करने वाले धर्म इस्लाम ने इन्हें विलुप्त सा कर दिया !

मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है ! जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था ! अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात का सबूत है कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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