भगवान शिव के सिर की गंगा का अपहरण : Yogesh Mishra

पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली जल देवी गंगा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर और वैष्णव के सूर्यवंशी महाराजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष देने हेतु उन्हीं के कुल के सूर्यवंशी राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से पृथ्वी पर मुक्त कर दिया ! इसीलिये गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है ! इस प्रकार गंगा स्वर्ग को जल देवी हैं, जो लोक कल्याण के लिये पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं !

अब हम इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं !

नासा के खगोलविदों ने अंतरिक्ष में तैरते हुए एक विशाल महासागर की खोज की है ! जो पृथ्वी के सभी महासागरों से करोड़ो गुणा बड़ा है ! जिसमें पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी से 140 ट्रिलियन गुणा अधिक जल है !

इसको इस तरह समझ सकते हैं कि 1 ट्रिलियन अर्थात 1 लाख करोड़ गुना !

वर्तमान में अंतरिक्ष में पानी का यह असीमित महासागर हमारी पृथ्वी से लगभग 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर है ! जहाँ यह सैकड़ों प्रकाश-वर्ष क्षेत्र में फैला हुआ है ! जिस अनन्त सागर में कभी हमारी पृथ्वी लगभग 6 लाख वर्ष तक रही थी ! इसके बाद ही पृथ्वी ने अपनी गर्मी को त्यागा और वायु तथा जल तत्व के साथ इस पृथ्वी पर जीवन का निर्माण शुरू हुआ !

कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि आज पृथ्वी पर जो जीवन है ! वह मूलत: उसी अंतरिक्ष के अनन्य सागर में उपलब्ध जीव तत्वों का ही विकसित रूप है !

इस सन्दर्भ में अंतरिक्ष में खोज करने वाले खगोलविदों ने अपनी राय दी है कि इस महासागर को क्वासर के गैसीय क्षेत्र में खोजा गया है ! जो एक ब्लैक होल द्वारा संचालित आकाशगंगा के केंद्र में कॉम्पैक्ट क्षेत्र में है !
क्वासर से प्रकाश विशेष रूप से लिंक्स नक्षत्र में एपीएम 08279 + 5255 क्वासर को पृथ्वी तक पहुंचने में 12 अरब वर्ष लगते हैं ! जिसका अर्थ यह हुआ कि पानी का यह द्रव्यमान उस समय से अस्तित्व में है ! जब ब्रह्मांड अपने शुरूआती दौर में केवल 1.6 अरब वर्ष पुराना था !

इस खोज के लिए अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक टीम ने अंतरिक्ष में एक कैल्टेक सबमिलिमीटर वेधशाला में जेड-स्पेक उपकरण का इस्तेमाल किया था ! जबकि दूसरी ओर फ्रांसीसी आल्प्स ने पृथ्वी पर ही पठार क्षेत्र में डी ब्यूर इंटरफेरोमीटर तकनीकी का इस्तेमाल किया था !

यह सेंसर मिलीमीटर और सबमिलीमीटर तक के तरंग द्रव्य का पता लगाते हैं ! जिससे, प्रारंभिक ब्रह्मांड में मौजूद गैसों, जल, वाष्प के विशाल जलाशय का पता लगाया जा सकता है !

क्वासर में पानी के कई वर्ण क्रमीय सूचनाओं ने शोधकर्ताओं को जलाशय के विशाल परिमाण की गणना करने के लिए आवश्यक डेटा प्रदान किया है ! अगर इतने सारे टेक्निकल पॉइंट को छोड़ दिया जाये तो हम एक लाइन में कह सकते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित अंतरिक्ष में मौजूद इस तरह के जलाशय का वर्णन ठीक उस समय का है जब ब्रह्माण्ड का आरंभिक निर्माण हो रहा था !

अर्थात किसी दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जब भगवान शिव के शिव ऊर्जा से जब इस ब्रह्मांड का निर्माण हो रहा था ! उसी समय भगवान शिव की कृपा से इस ब्रह्मांड में अनंत सागर का भी निर्माण हुआ था !

जो ब्रह्मांड के मध्य शीर्ष स्थल पर आज भी स्थित है ! यहीं से भगवान शिव के सर से गंगा के स्थित होने की कल्पना हमारे शैव साधकों ने की गई थी !

जिसका कालांतर में वैष्णव ग्रंथ कारों ने अपने वैष्णव राजाओं की चाटुकारिता में इसे सूर्यवंशी वैष्णव राजा भागीरथ से जोड़ दिया ! जिन्होंने मात्र कैलाश मानसरोवर से एक जल स्रोत गंगोत्री तक लाने का प्रयास किया था जिसकी दूरी मात्र 226 किलोमीटर है ! जिसमें भी अधिकांश जल मार्ग प्रकृति द्वारा निर्मित था !

इससे यह सिद्ध है कि भगवान शिव के जटाओं में स्थापित गंगा अर्थात ब्रह्मांड जल तत्व की सूचना जो कि वैष्णव ग्रंथकारों को शैव साधकों से मिली थी ! उस सूचना को वैष्णव ग्रंथकारों ने अपने धर्म ग्रंथों में विकृत तरह से लिख कर इस दुर्लभ सूचना का अपने वैष्णव राजा को महिमामंडित करने के लिये उसका अपहरण कर लिया है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter