राजनीति में तंत्र का प्रयोग क्या उचित है ? Yogesh Mishra

2019 में बनारस लोकसभा का चुनाव बड़ा दिलचस्प है ! बनारस संसदीय सीट ने नामांकन दाखिला की अंतिम तिथि को भी दो रिकार्ड बनाये हैं ! पहला वाराणसी संसदीय सीट से इस बार 102 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है और दूसरा रात 11.15 तक नामांकन होता रहा है ! लोग बतलाते हैं कि इमरजेंसी के समय भी इतने लोग किसी भी चुनावी मैदान में नहीं थे !

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट से नामांकन पत्र दाख़िल कर दिया है ! मोदी सुबह लगभग 11 बजकर 40 मिनट पर कलेक्ट्रेट भवन पहुंचे और अपना चुनाव अधिकारी के समक्ष नामांकन पत्र पेश किया !

इस प्रतिष्ठित राजनीति दल के मुखिया के विरुद्ध फौज का पूर्व जवान भी लड़ रहा है, तो दूसरी तरफ एक ऐसा संत की लड़ रहा है, जो सनातन धर्मी बच्चों को सनातन ज्ञान के लिये प्रशिक्षित करने हेतु विधिवत गुरुकुल चलाता है !

मजे की बात यह है कि राष्ट्र रक्षा और हिंदू धर्म का हवाला देकर वोट बटोरने वाले राजनैतिक दल ने अब बनारस के लोकसभा चुनाव में न तो फौज के जवान की मर्यादा को बनाये रखा और न ही धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले गुरुकुल के प्रमुख की ही मर्यादा का सम्मान किया ! आज बनारस में खुल कर विशुद्ध राजनीति हो रही है ! साम, दाम, दण्ड, भेद, राजनीति, कूट नीति, आदि का खुला खेल चल रहा है !

दूसरी तरफ केंद्रीय चुनाव आयोग (केंचुआ) भी निष्पक्ष नहीं है ! वह भी खुलकर राजनीतिज्ञों का साथ दे रही है ! तकनीक को आधार बनाते हुये पूरे देश में अनेकों नामांकन रद्द किये जा रहे हैं ! जबकि नामांकन रद्द किये जाने का आधार गलत या अधूरी सूचना होता है तकनीकि नहीं !

केंचुआ द्वारा नामांकन रद्द किये जाने के दौर में जिस सनातन धर्मगुरु का नामांकन तकनीक आधार पर रद्द कर दिया है ! उस पर सनातन धर्मगुरु ने कल केंचुआ के पदाधिकारियों के समक्ष भारी विरोध प्रगट किया है ! किन्तु एक न सुनी गई ! न्यायलय का विकल्प भी चुनाव के पूर्ण हो जाने के उपरांत ही खुलेगा ! अत: अब विरोध के अलावा कुछ नहीं बचा !

राजनीतिज्ञ यदि खुल कर राजनीति कर रहे हैं तो सनातन धर्म के प्रतिष्ठित धर्मगुरु को काशी की प्राचीनतम विधा ‘तंत्र’ का सहारा क्यों नहीं लेना चाहिये ! शैव सम्प्रदाय में तंत्र के छ: स्वरूप हैं ! मारण, मोहन, वशीकरण, स्तंभन, उच्चाटन, विद्वेषण यह छहों षट्कर्म ही तंत्र के अंग हैं ! इसका विस्तृत वर्णन अग्नि पुराण में मिलता है ! जिसका राजनीति में अनादि काल से प्रयोग होता रहा है ! इसी से बचने के लिये अनेकों कवच, रक्षा सूत्र, मन्त्र, अनुष्ठान आदि का विधान रहा है !

वर्तमान परिस्थिति में शास्त्रों के अनुसार स्तंभन, उच्चाटन, विद्वेषण का प्रयोग किया जा सकता है ! अर्थात स्तंभन के अंर्तगत मतदाताओं को विशेष राजनैतिक दल को मत न देने के लिये ‘स्तंभित’ किया जा सकता है ! दूसरा उच्चाटन के अंतर्गत विशेष राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं को उच्चाटित कर उस राजनैतिक दल में कार्यकर्ताओं का आभाव पैदा किया जा सकता है ! तीसरा विद्वेषण द्वारा विशेष राजनैतिक दल के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के मध्य विद्वेषण करवा कर विशेष राजनैतिक दल की छवि को जनता के मध्य ख़राब किया जा सकता है !

यह सभी प्रयोग अग्नि पुराण में विस्तार से दिये गये हैं ! जिनकी जानकारी सनातन धर्मगुरु और गुरुकुल प्रमुख होने के नाते इन्हें होनी चाहिये ! और यदि यह इतना सक्षम नहीं हैं तो या तो घोषित करें कि पुराणों में लिखा यह सब गलत है या फिर इनमें यह समर्थ नहीं कि इस तरह की तंत्र विधाओं का यह प्रयोग कर सकें ! फिर गुरुकुल के छात्रों को तंत्र की शिक्षा दे कर उनका जीवन व् समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं ! जब कि इस तरह के प्रयोग राजनीति में अनेक बार पूर्व में किये जाने का दावा इन्हीं धर्माचार्यों द्वारा किया जाता रहा है !

इसी काशी के एक पूर्व बड़े संत ने देश की प्राचीनतम राजनैतिक दल के प्रमुख को गोपाष्टमी के दिन संसद पर गौ हत्या के विरुद्ध में विरोध में प्रदर्शन कर रहे संतों पर गोली चलवाने के विरुद्ध शापित किया था ! जिसका परिणाम था कि उस राजनीतिक दल के मुखिया की हत्या उसी के आवास पर गोपाष्टमी को ही हुई थी ! यह है एक दिव्य संत की ऊर्जा !

कानपुर के फूलबाग में करवाई गई घटना के विरोध में इसी राजनैतिक दल के मुखिया को एक संत के शाप के कारण सत्ता छोड़नी पड़ी थी ! जिसका प्रायश्चित इस राजनैतिक दल के मुखिया ने उसी संत की कुटिया में जाकर किया था ! ऐसे अनेकों उदहारण हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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