अंतरिक्ष वैज्ञानिक कुंभकर्ण : Yogesh Mishra

रावण तीन सगे भाई तथा एक बहन थे और रावण का एक भाई दूसरी मां से था ! दूसरी मां से उत्पन्न भाई का नाम कुबेर था ! कुबेर की मां हविर्भूवा महर्षि भारद्वाज की पुत्री थी ! इस तरह महर्षि भरद्वाज कुबेर के नाना तथा रावण के सौतेली माँ के पिता थे ! कुबेर देवताओं के धन रक्षक थे !

रावण अपने भाइयों में सबसे बड़ा था ! उससे छोटा भाई कुंभकर्ण था और सबसे छोटा भाई विभीषण था ! उस समय पृथ्वी पर तीन ही जीवन शैली प्रमुख रूप से विद्यमान थी और यह तीनों भाई एक-एक जीवन शैली के अनुयायी थे !

रावण अनादि देव भगवान शिव द्वारा स्थापित की गई शैव जीवन शैली का अनुयायी था तो कुंभकर्ण दूसरे लोक से आए हुए भगवान ब्रह्मा का वंशज होने के नाते वह “ब्रह्म जीवन शैली” का अनुपालन करता था और विभीषण उस युग की के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक जीवन शैली जो कि विकृत ब्रह्म शैली का ही अंश थी “वैष्णव जीवन शैली” का अनुपालन करता था !

इस तरह कुंभकर्ण आदि तीनों भाई सारस्वत कुल के ब्राह्मण थे ! यह लोग ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा ऋषि की संतान थे ! बचपन से ही कुंभकर्ण के कान कुंभ अर्थात घड़े के समान बड़े-बड़े थे ! इसलिये उसका नाम कुंभकर्ण रखा गया था ! वैसे सामुद्रिक शास्त्र में बड़े कान अति विद्वान होने की निशानी है !

कुंभकर्ण का विवाह विरोचन की बेटी व्रज ज्वाला से हुआ था ! इसके अलावा करकटी भी उसकी दूसरी पत्नी थी ! इन दोनों से उसे तीन बच्चे हुये थे ! करकटी सह्याद्री राज्य की राजकुमारी थी ! कुंभकर्ण का तीसरा विवाह कुंभपुर के राजा महोदर की बेटी तडित् माला से भी हुआ था ! मुख्य पत्नी व्रज ज्वाला से दो बेटे थे ! उनके नाम कुंभ और निकुंभ था ! जो काफी शक्तिशाली थे !

कुंभकर्ण ब्रह्म संस्कृति को मानने वाला, वेदों का ज्ञाता, धर्म अधर्म को जानने वाला, भूत और भविष्य का ज्ञाता तथा महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक था ! उसने वर्तमान लंका से दक्षिण दिशा की ओर रावण के विशाल साम्राज्य में भूमध्य रेखा पर अपनी विशाल प्रयोगशाला स्थापित कर रखी थी !

जिस कारण वह रावण के राज महल वर्तमान लंका में नहीं रहा करता था वह वर्ष में दो बार अपने बड़े भाई रावण से मिलने आया करता था अति दूरी होने के कारण वर्ष में दो बार ही वह राज महल आता था ! अतः धूर्त वैष्णव लोगों ने यह अवधारणा विकसित की की कुंभकर्ण छ: महीने तक सोता था और जब एक दिन के लिये जागता था, तब वह रावण से मिलने आता था !

जबकि कुंभकर्ण भूमध्य रेखा पर स्थापित अपनी प्रयोगशाला में निरंतर ज्योतिष के सिद्धांतों पर तथा दूसरे ग्रहों पर रहने वाले परग्रही व्यक्तियों के साथ संपर्क बनाए रखता था उसका सीधा संपर्क ब्रह्म लोक से था क्योंकि वह ब्रह्मा जी का वंशज था ! इसी ब्रह्मलोक को वर्तमान आधुनिक विज्ञान में “नेव्रो ग्रह तारा समूह” कहा गया है !

कुंभकर्ण नहीं तरह-तरह के अंतरिक्ष यानों का निर्माण किया था ! जिसकी शिक्षा उसने अपने सौतेले भाई कुबेर के नाना महर्षि भरद्वाज से ली थी ! जो कि उस समय के सर्वश्रेष्ठ वायुयान निर्माता एवं अंतरिक्ष यान निर्माता थे ! जिनकी प्रयोगशाला वर्तमान इलाहाबाद के गंगा और यमुना नदी के मध्य दुवाबा में स्थिति थी !

कुंभकर्ण अनेक दूसरे ग्रहों की भाषाओं का भी जानकार था इसी वजह से उसे अन्य ग्रहों के निवासियों से संपर्क करने में कोई दुविधा नहीं होती थी उसने ऐसे यंत्र विकसित कर लिए थे जो दूसरे ग्रहों के निवासियों से उसका सीधा संवाद स्थापित करवाते थे

उसने कृत्रिम उपग्रह का भी निर्माण किया था जिसे आज हम विज्ञान की भाषा में सेटेलाइट कहते हैं आज भी वह सैटेलाइट अंतरिक्ष में घूम रहा है जिसके द्वारा भेजे जाने वाले सिग्नल का परीक्षा वर्तमान नासा के वैज्ञानिक कर रहे हैं !

राम रावण युद्ध में रावण की मदद के लिए जो दूसरे ग्रहों से सेना बुलाई गई थी ! उस सेना को बुलाने के लिए जिन यंत्रों और संसाधनों का प्रयोग किया गया था वह सभी कुछ कुंभकर्ण द्वारा निर्मित किया गया था !

उसने संचार व्यवस्था के लिए “चलभाष यंत्र” जिसे हम आधुनिक भाषा में “वॉकी टॉकी” कहते हैं ! उस का आविष्कार किया था ! जिसके द्वारा रावण पूरी दुनिया में अपने साम्राज्य के प्रमुख पदाधिकारियों से संवाद स्थापित करता था !

कुंभकर्ण ने वैष्णव आक्रांताओं से लंका की रक्षा के लिए “रडार” का भी आविष्कार किया था ! जिसकी संचालिका को रामायण में “सुरसा” कहा गया है ! जो “सुरक्षा” शब्द का ही विकृत उच्चारण है !

अर्थात कुंभकर्ण ने हीं ऐसे रडार का निर्माण किया था जो कि लंका की ओर आने वाले किसी भी यान या व्यक्ति से संवाद स्थापित कर सकता था और यदि वह व्यक्ति शत्रु होता था तो उसे मिसाइल हमले द्वारा लंका पहुंचने के पहले ही वह रडार नष्ट कर देता था !

हनुमान जी क्योंकि रावण की बहन सुपनखा जिसका वास्तविक नाम चंद्रनखा था ! उसकी बेटी अनंगकुसुमा के पति थे अर्थात हनुमान जी रावण की बहन की लड़की अनंगकुसुमा का बेटा मकरध्वज के पिता थे !

इसीलिए सुरसा ने हनुमान को रावण राज्य में आने की आज्ञा प्रदान की थी ! जिसका लाभ उठाकर हनुमान ने लंका में प्रवेश किया था और सीता से संवाद किया फिर रावण के निजी हवाई अड्डे को जलाकर नष्ट कर दिया और भाग गये ! इसके भी अपने राजनीतिक कारण थे ! जिनका वर्णन मैंने अन्य लेखों में किया है !

कुंभकर्ण की प्रयोगशाला वर्तमान लंका के दक्षिण भाग जहां पर वर्तमान में हिंद महासागर है ! वहां पर स्थित भूखंड जिसका नाम “कुमारी कंदम” था ! उस भूखंड पर भूमध्य रेखा पर स्थापित था ! जिस भूखंड का एक हिस्सा वर्तमान ऑस्ट्रेलिया और दूसरा हिस्सा वर्तमान अफ्रीका से जुड़ा हुआ था !

जिसे राम रावण युद्ध के समय राम द्वारा घातक हथियारों का प्रयोग करके 49 टुकड़ों में नष्ट कर पूरी तरह से वर्तमान हिंद महासागर में डुबो दिया था ! जिसके अवशेष आज भी हिंद महासागर के अंदर वैज्ञानिकों को प्राप्त हो रहे हैं !

इस तरह कुंभकर्ण मात्र सोते रहने वाला एक आलसी व्यक्ति नहीं बल्कि अपने युग का एक अति महान वैज्ञानिक था ! विज्ञान में अत्यंत रुचि होने के कारण उसने कभी भी अपने बड़े भाई के राजकीय कार्यों में रुचि नहीं ली और न ही वह रावण के राज दरबारियों की सूची में शामिल था !

वह निरंतर अपने प्रयोगशाला पर अपने परिवार सहित ही रहता था ! वर्ष में दो बार अपने भाई से मिलने भूमध्य रेखा से वर्तमान लंका तक आता था ! जिस कारण कहा जाता है कि कुंभकर्ण छ: महीने सोता था और जब जागता था तो वह अपने भाई से मिलने वर्तमान लंका आया करता था ! जबकि वह एक महान वैज्ञानिक था जिसने संचार विज्ञान तथा अंतरिक्ष विज्ञान पर अद्भुत अनुसंधान किये थे !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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