सामूहिक स्तम्भन तंत्र कभी राजनीति का अंश रहा है !! :Yogesh Mishra

स्तम्भन का अर्थ है किसी भी वस्तु या व्यक्ति को किसी विशेष कार्य या उद्देश्य के लिये रोक देना या किसी को मानसिक रूप से बंधन में बांध देना ! तन्त्र में स्तम्भन क्रिया समझने से पहले हमें सृष्टि में स्तम्भन किस प्रकार से विद्यमान है ! इसको समझना होगा !

मानव मस्तिष्क के अंदर विचार उसके संस्कार के प्रभाव से न्यूरॉन के कंपन के शक्ल में संचालित होते हैं यह न्यूरॉन्स का कंपन ही मानव मस्तिष्क के अंदर नए विचार पैदा करता है विचार कीजिए यदि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई पदार्थ दे दिया जाए कि उसके मस्तिष्क के अंदर होने वाला न्यूरॉन्स का कंपन कम हो जाये या बंद हो जाये तो उस स्थिति में उसका मस्तिष्क विचार करना भी बंद कर देगा ! यही स्तम्भन है ! इस स्थिति में जब तंत्र द्वारा न्यूरॉन्स के कंपन को रोक कर जब मानव मस्तिष्क में विचार करने की क्षमता खत्म कर दी जाती है या कम कर दी जाती है तो उसे तंत्र द्वारा स्तंभन क्रिया कहते हैं !

प्राचीन काल में जब विज्ञान पूर्ण विकसित था तब अपने शत्रुओं के मस्तिष्क को इसी स्तंभन क्रिया द्वारा बांध दिया जाता था ! उस वजह से शासक जैसा चाहता था ! वैसा ही उसका शत्रु या आम जनमानस सोचता था ! यह एक पूर्ण तांत्रिक क्रिया है ! जिसका वर्णन शैव ग्रंथों के साथ-साथ वैष्णव पुराणों में भी मिलता है ! इस क्रिया की साधना करने वाले जब अपनी इस तांत्रिक विधान का उपयोग करते हैं ! तब शत्रु के समक्ष युद्ध को जीतने के सभी संसाधन होते हैं किंतु शत्रु के मस्तिष्क को यह एहसास दिलाया जाता है कि वह युद्ध जीत सकने में सक्षम नहीं है और वह उस तंत्र द्वारा प्रेषित विचार को सच मान लेता था और अपने संसाधनों का उपयोग किये बिना ही हार मान लेता था !

इसी तरह सामूहिक स्तंभन शक्ति का दुरुपयोग प्राचीन काल में सत्ताधीश अपनी जनता को नियंत्रित करने के लिये भी किया करते थे ! जो आज आधुनिक युग में व्यक्तिगत स्तर पर किसी के शुभ कार्य या जीवन की उन्नति और परिवारिक विकास को बाधित करने के लिये किया जाता है ! अनेकों तांत्रिक कुछ रुपयों के लिये या किसी अन्य लालच के लिये या अहंकारवश इस शक्ति का दुरुपयोग करते हैं !

इस शक्ति का दुरुपयोग होने से मानसिक शांति भंग होना या फिर अचानक चलता चलता काम रुक जाना और या फिर आपके महत्वपूर्ण कार्यों में रुकावट आ जाना होता है ! बहुत पहले ज्यादातर स्तम्भन शक्ति का दुरुपयोग राज सत्ताधारी अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये किया करते थे ! जिसके कारण आम समाज एक वर्तुल में फस कर उसी शासक के इर्द गिर्द चक्कर लगाता रहता था !

आज के वैज्ञानिक युग में यही कार्य प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या सोशल मीडिया कर रहा है शासक वर्ग जैसा चाहते हैं आज इस मीडिया के माध्यम से सूचना तंत्र का हमला करके आम जनमानस को वैसा ही सोचने के लिए बाध्य कर दिया जाता है और जो थोड़े मोटे लोग इस सूचना तंत्र के हमले के प्रभाव में नहीं आते हैं उन्हें बहुसंख्यक लोग उनका उपहास करके उन्हें समाज में प्रभावहीन कर देते हैं !

इसका परिणाम यह होता है की सत्ता धीश देश को जिस दिशा में ले जाना चाहते हैं देश का आम आवाम आंख बंद करके उसी दिशा की तरफ चलना शुरू कर देता है चाहे वह दिशा राष्ट्र के सर्वनाश की ही क्यों ना हो समय बीतने के साथ जब इतिहास को पलटा जाता है तो पता चलता है उस समय आम आवाम ने जो गलत निर्णय लिए वह शायद किसी गलत आकर्षण के प्रभाव में लिए होंगे लेकिन इस तरह के स्तंभन पैदा करने वाले गलत आकर्षण का कोई लिखित सबूत नहीं होता और यदि कोई लिखता भी है तो काल के प्रवाह में उसे नष्ट कर दिया जाता है

रावण संहिता, अग्नि पुराण, कामतंत्र रत्नम, उड्डीश तंत्र, वाराही तंत्र, शैवसिद्धान्त, तंत्र कौमुदी, गुप्तवती टीका’ आदि जैसे अनेक ग्रंथों में स्तंभन प्रक्रिया का वर्णन मिलता है यह मात्र हिंदू धर्म में ही नहीं इसके प्रमाण बौद्ध, जैन, यहूदी, तिब्बती आदि धर्मों के तन्त्र-साधना के ग्रन्थों में भी मिलते हैं ! भारत में प्राचीन काल में उत्तर भारत अर्थात बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान आदि तन्त्र के गढ़ रहे हैं।

स्तंभन शक्ति का दुरुपयोग अत्यधिक रूप में किसी के शुभ कार्य , जीवन की उन्नति और परिवारिक विकास को बाधित करने के लिए किया जाता है अनेकों तांत्रिक कुछ रुपयों के लिए या किसी अन्य लालच के लिए या अहंकारवश इस शक्ति का दुरुपयोग करते हैं !

इस शक्ति का दुरुपयोग होने से मानसिक शांति भंग होना या फिर अचानक चलता चलता काम रुक जाना और या फिर आपके महत्वपूर्ण कार्यों में रुकावट आ जाना होता है ! बहुत पहले ज्यादातर स्तम्भन शक्ति का दुरुपयोग राज सत्ताधारी अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये किया करते थे ! जिसके कारण आम समाज एक वर्तुल में फस कर उसी शासक के इर्द गिर्द चक्कर लगाता रहता था !

इसके लिये जनता द्वारा सामूहिक रूप से देवी अनुष्ठान, रुद्राभिषेक, छालर वादन, नगाड़ा वादन, वीणा वादन, शंख वादन, दीप प्रज्वलन, सामूहिक व्रत, हवन आदि आदि करवाया जाता था ! जिसका तंत्र के बड़े बड़े आचार्यों ने अपने अविस्मर्णीय ग्रंथों में वर्णन किया है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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