भारत के सर्वनाश का कारण और निवारण : Yogesh Mishra

जब किसी भी समाज में धन और सुविधाएं मनुष्य के ज्ञान और विवेक से अधिक हो जाती हैं, तो वह समाज विकृति की ओर बढ़ने लगता है ! भारतीय समाज ने भी यह दौर देखा है !

चोल वंश के शासनकाल से लेकर गुप्त वंश तक जब भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था ! तब भारत का व्यापार उद्योग आदि अति विकसित थे ! लेकिन यहां के आम नागरिकों का बौद्धिक स्तर अपनी संपन्नता के अनुरूप विकसित न होने के कारण भारत का आम आदमी भोगी विलासी हो गया !

और इसी भोग विलास की प्रवृत्ति के कारण भारतीय लालची हो गये और विदेशी आक्रांताओं से मिलकर अपने ही देश के खिलाफ षड्यंत्र रचने लगे !

और ऐसे लोगों की तात्कालिक सफलता को देखते हुए, धीरे-धीरे इस राष्ट्र के नागरिकों का मूल चरित्र ही विश्वासघाती, चरित्रहीन और लोभी हो गया !

धीरे-धीरे भारत में ऐसे नागरिकों की संख्या समाज में बढ़ती चली गई और इस तरह भारत संपन्न होने के बाद भी नैतिक रूप से पतित हो जाने के कारण गुलामी की जंजीरों में जकड़ का चला गया !

जिससे मुक्त कराने के लिए भारत के कुछ दार्शनिक और विचारक व्यक्तियों ने भारत की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाने के लिए कुछ धार्मिक विद्वानों की मदद से भक्ति योग का आन्दोलन चलाया !

जिसे कालांतर में भक्ति काल कहा गया ! इसमें मुख्य रूप से भक्ति दर्शन के चार मार्ग हुए शैव, वैष्णव, शाक्त और ज्ञान मार्ग । और धीरे-धीरे पूरा भारत भक्ति काल में इन्हीं चार मार्गों में बाँट गया !

और इस तरह समाज में दो वर्ग हो गए ! पहला वर्ग जो भक्ति द्वारा समाज सुधार में लग गया और दूसरा वर्ग संपन्नता की तलाश में लग गया !

जो वर्ग समाज सुधार में लगा ! उन्हें समाज ने आदर्श तो माना लेकिन अपनी गलत पृवृत्ति के कारण समाज ने उन्हें आदर्श के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया, और दूसरी ओर जो वर्ग समाज को लूटने में लग गया था, उसे समाज ने आदर्श तो नहीं माना लेकिन आदर्श के रूप में सम्मानित अवश्य किया !

इस तरह व्यक्ति के दोगले व्यक्तित्व का निर्माण हुआ ! जिसकी वजह भारत के आम नागरिकों का अल्प ज्ञान और अपना ही स्वार्थ था !

इसी समाज के दोहरे व्यक्तित्व ने कालांतर में ज्ञानमार्गियों को हाशिए पर ढकेल कर उन्हें मठ, मंदिर, तीर्थ आदि तक सीमित कर दिया और दूसरी तरफ जो समाज के स्वार्थी लोग थे ! उन्हें देश का कर्णधार बना दिया ! ऐसे लोगों को भारत के राजनीति में स्वीकृति दे दी गयी !

इस तरह समाज में एक वर्ग मठ, मंदिर, तीर्थों तक सीमित था और दूसरा वर्ग जो भारत की राजनीति में सक्रिय था ! यह दोनों एक दूसरे के पूरक होते हुये भी दुनियां को दिखने के लिये एक दूसरे से दूर होते चले गए !

और एक दिन वह आया जब राजनीतिज्ञों के शक्ति के कारण उन्हें प्राप्त सफलता को देखते हुए मठ, मंदिर, तीर्थों में बैठे हुये पीढ़ी दर पीढ़ी से ज्ञानमार्गी भी धन की तलाश में धर्म का मार्ग छोड़ कर अपने मूल चरित्र से गिरकर बेईमान हो गये और राजनीति में रूचि लेने लगे !

अब आज भारतीयों के पास न तो धर्म का मार्ग बचा है और न ही कुशल राजनीति का ! क्योंकि अब दोनों ही समूह भ्रष्ट होकर सामूहिक रूप से समाज का शोषण करने में लगे हुये हैं !

इसलिए यह अब परम आवश्यक है कि समाज को अपने मूल की ओर वापस लौटना होगा ! क्योंकि यदि यह समाज अपने मूल की तरफ नहीं लौटेगा तो निश्चित रूप से वर्तमान का धर्म और राजनीति यह दोनों सदा सदा के लिए सनातन संस्कृति को नष्ट कर देगी !

इसीलिए सनातन ज्ञान पीठ ने जीवन के मौलिक सिद्धांतों को लेकर वर्तमान में एक सामाजिक आंदोलन की दिशा में कार्य करना आरम्भ किया है !

जिसमें विकृत धर्म के संशोधित स्वरूप के साथ-साथ राजनीति के भी विकसित स्वरूप पर चर्चा की जा रही है ! इसलिये आप भी सनातन ज्ञान पीठ के इस शैव ग्राम आंदोलन से जुड़िये ! जिससे आपकी आने वाली पीढ़ियां चरित्रवान और संपन्न दोनों ही हो सकें !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter