शंकराचार्य नहीं कुमारिल भट्ट ने उखाड़ फेंका था भारत से बौद्ध धर्म : Yogesh Mishra

कुमारिल भट्ट का जन्म जयमंगल नामक गाँव में पं. यज्ञेश्वर भट्ट तथा माता चंद्र्कना ( यजुर्वेदी ब्राह्मण) के यहाँ हुआ था ! बालक ने योग्य गुरु के यहाँ वेद , वेदांग तथा अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया था ! उनकी धर्म परायणता तथा विद्वता के कारण उन्हें “भट्ट पाद” तथा सुब्रहमन्य भी कहा गया है ! उनके पास दूर दूर से अनेक शिष्य विद्या अध्ययन के लिये आया करते थे ! जिनमें विश्वरूप, प्रभाकर,पार्थसारथी तथा मंडन मिश्र आदि मुख्य थे ! कुमारिल भट्ट का यश हर्षवर्धन के अंतिम काल में समस्त अखण्ड भारत में अच्छी तरह फैल चुका था !

कुमारिल भट्ट वैदिक धर्म के अनन्य पोषक थे ! उस समय बौद्ध मत राजाओं के सहयोग से पूर्ण पराकाष्ठा पर था ! वैदिक ज्ञान की दशा निरंतर गिर रही थी तथा वेदों का उपहास उड़ाया जा रहा था ! जिससे कुमारिल भट्ट अत्यंत दुखी रहा करते थे ! उन्होंने बौद्ध मत के खंडन का निश्चय किया ! किन्तु इस के लिये उन्हें बौद्ध मत से सम्बंधित ग्रंथों का अध्ययन करना था और उस काल में छपा प्रेस न होने के कारण समस्त बौद्ध ग्रन्थ सहज उपलब्ध नहीं थे !

अत: अपने निश्चय को कार्यान्वित करने के लिये उन्होंने श्रीनिकेतन नामक एक बौद्ध धर्माचार्य के पास शिष्य रूप में जाकर बौद्ध मत की शिक्षा लेना आरंभ किया ! एक दिन गुरु श्रीनिकेतन ने कक्षा में वेदों की खूब निंदा की ! जो कुमारिल भट्ट को पसन्द नहीं आया अत: उनके चेहरे के भाव और आँखों से अविरल बह रहे आंसुओं को देख आपके सहपाठी समझ गये कि वह वेद धर्म अनुगामी हैं ! बस यही से ही कुमारिल भट्ट के विरोधी आप की ह्त्या की योजना बनने लगी ! एक दिन कुमारिल भट्ट एक मंदिर की ऊँची दीवार पर बैठे थे कि उनकी ह्त्या के उद्देश्य से उनके सहपाठियों ने कुमारिल भट्ट को धक्का दे दिया !

किन्तु कुमारिल भट्ट बच गये और उनका वेदों पर विश्वास दृढ और हो गया ! अब कुमारिल भट्ट जी वैदिक कर्मवाद का प्रचार पूरी ताकत से करने लगे ! ऐसा करते हुये आप एक दिन वह चंपा नगरी जा पहुंचे ! इस नगरी का राजा सुधन्वा भी बौध धर्मनुगामी था, जबकि उसकी पत्नी सच्चे अर्थों में वेदानुरागी थी ! इस नगरी में घूम – घूम कर कुमारिल भट्ट ने सब परिस्थितियों का अध्ययन किया और इसी दौरान उनकी भेंट राज्य के माली से हुई ! जहाँ से उन्हें राजवंश की सब स्थिति पता की तथा यह भी ज्ञान हुआ कि राजरानी वेदानुरागी है !

रानी विष्णु भगवान की उपासक हैं तथा माली उसके ही लिये रोज फल-फूल पहुंचता है ! भट्ट जी ने उस माली के माध्यम से रानी जी को अपना परिचय भेज दिया ! जिसे सुन रानी को अत्यधिक प्रसन्नता हुयी ! एक दिन उन्होंने कुमारिल भट्ट को अपने राजभवन बुलवाया !

और अपनी व्यथा कथा सुनायी ! कुमारिल भट्ट को मिलकर रानी को बहुत संतोष हुआ तथा रानी को कुमारिल भट्ट से बौद्ध मत की अनेक कमियों का भी पता चला ! तब उन्हें कहा कि मैं अवसर व प्रसंग देखकर राजा के सामने आपकी पीड़ा रखूंगी ! ताकि धीरे धीरे राजा को बौद्ध धर्म की सत्यता का पता चले और उनके मन से बौद्ध मत के प्रति घृणा के भाव पैदा हों ! विद्वान रानी ने ऐसा ही किया ! धीरे धीरे राजा का ह्रदय बदलने लगा तथा वेद धर्म के प्रति उनका अनुराग बढ़ने लगा और वह वेदों को सम्मान देने लगे !

तब राजा सुधन्वा ने कुमारिल भट्ट को शास्त्रार्थ के लिये आमंत्रित किया ! एक विशाल सभा का आयोजन हुआ ! तथा बड़े धुरंधर बौद्ध विद्वानों को बुला गया ! शास्त्रार्थ हुआ और सभी बौद्ध विद्वान् कुमारिल भट्ट से हार गये !

राजा इस शास्त्रार्थ से अत्यंत प्रसन्न और संतुष्ट हुये और राजा स्वयं कुमारिल भट्ट के शिष्य हो गये ! अब राजा के सहयोग से पुन: वैदिक धर्म का प्रचार शुरू हो गया ! इस मध्य ही कुमारिल भट्ट ने बौद्ध मत के खंडन के लिये सात ग्रंथों की रचना कर डाली ! इतना ही नहीं बौद्धों का सामना करने के लिये कुमारिल भट्ट ने अपने शिष्यों की एक विशाल मंडली भी तैयार कर ली ! अब कुमारिल भट्ट अपने शिष्यों के साथ बौद्ध मठों के विनाश के लिये गाँव-गाँव और जंगल-जंगल जाकर आदिवासियों की एक बड़ी “नागा सेना” का निर्माण करने लगे और इन्हीं नागा सेना को यह वचन दिया कि यदि “मैं भारत की भूमि से बौद्ध धर्म को नहीं उखाड़ पाया तो मैं अग्नि समाधि ले लूँगा !”

साथ ही कुमारिल भट्ट ने राजा के सहयोग से भारत के पांच कोने पर पांच वैदिक पीठ की स्थापना की तैयारी होने लगी ! इस तरह पूरे देश में कुमारिल भट्ट का “वेद का मंडन, बौद्ध खंडन” का आन्दोलन चल पड़ा ! कुमारिल भट्ट के शिष्य जगह-जगह शास्त्रार्थ करते और बौद्ध अनुयायियों को वेद अनुयाई बनाते ! बौद्ध धर्म के गुरु उनके नाम से ही घबराने लगे !

अब उन्होंने एक षडयंत्र रचा और कुमारिल भट्ट पर आरोप लगाया कि वह तो गुरुद्रोही हैं ! उन्होंने अपने बौद्ध गुरु के साथ झूठ बोलने का विश्वासघात किया है और आज मात्र वैदिक षडयंत्रकारियों की इच्छा पर राजनैतिक कारणों से अपने बौद्ध गुरु के सिद्धांतों का विरोध कर रहे हैं ! जिससे कुमारिल भट्ट के शिष्यों को जगह-जगह अपमानित किया जाने लगा !

बौद्ध धर्म षड्यंत्रकारियों के अत्यधिक विरोध के बढ़ने पर कुमारिल भट्ट को जब अपना लक्ष्य प्राप्त होता नहीं दिखा तो उन्होंने अपने संकल्प के अनुसार अग्नि समाधि लेने का निर्णय लिया ! जिसे बाद में बौद्ध धर्म अनुयायियों ने यह कहकर प्रचारित किया कि कुमारिल भट्ट ने गुरुद्रोह के प्राश्चित में अग्नि समाधि ले ली !

किन्तु कुमारिल भट्ट की अग्निसमाधि से ठीक पहले शंकराचार्य अपना लिखा भाष्य ब्रह्म सूत्र पर शास्त्रार्थ करने पहुँच गये ! तब कुमारिल भट्ट ने शंकराचार्य लिखित भाष्य को देखा और बहुत प्रसन्न हुये ! किन्तु उन्होंने कहा “मै तो शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हूँ क्योंकि मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार निश्चित नक्षत्र में अग्नि समाधि लेने जा रहा हूँ ! अत: आप मेरे प्रधान शिष्य मंडन मिश्र से मिलिये ! यह कह कर कुछ ही समय बाद कुमारिल भट्ट शान्त चित्त से अग्नि में प्रवेश कर गये !

फिर जब शंकराचार्य की भेंट मंडन मिश्र से हुई ! और मंडन मिश्र को पत्नी सहित शास्त्रार्थ में हराया तब शंकराचार्य को बौद्ध षडयंत्रकारिरों के षडयंत्र का पता चला ! तब उन्होंने राजा सुधन्वा से भेंट की और कुमारिल भट्ट द्वारा निर्मित योजना के अनुसार उनके शिष्यों तथा आदिवासी नागा अखाड़ों के सहयोग से भारत के पांचों पीठों के मध्य से बौद्ध धर्म के सभी बौद्ध विहारों को उखाड़ फेंक कर कुमारिल भट्ट के संकल्प को पूरा किया!

और सत्य सनातन हिन्दू धर्म की पुनः स्थापना की ! और राजा सुधन्वा के सहयोग से कुमारिल भट्ट के अधूरे कार्य को अंतिम सफल रूप दिया !

ऐसे अद्भुत थे ! हमारे जगत आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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