नक्सलवाद राजनीतिक जिद्द से नहीं संवाद से समाप्त होगा !! Yogesh Mishra

देश में नक्सलवाद का सिलसिला पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में साठ के दशक में शुरू हुआ ! प्रारम्भ में नक्सलवाद को इस तर्क के साथ आगे बढ़ाया गया कि अत्यंत पिछड़े इलाकों के गरीब-वंचित वर्ग और विशेषतः आदिवासी समाज को कथित सामन्तवादी शासन द्वारा उसके हक से वंचित किया जा रहा है ! नक्सलवाद की सोच को आगे बढ़ाने वाले लोगों ने भारतीय संविधान को मानने से इंकार कर दिया ! सबकुछ बंदूक के बल पर हासिल करने का इरादा रखने वाले नक्सलियों ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए भोले भाले आदिवासियों को शासन-प्रशासन के खिलाफ़ भड़काना शुरू किया ! धीरे-धीरे उन्होंने आधुनिक हथियारों और एक वर्ग के वैचारिक समर्थन के बल पर इस हद तक अपनी ताकत बढ़ा ली कि वे सुरक्षा बलों को गंभीर चुनौती देने लगे !

आज नक्सलवाद आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है ! नक्सलवाद की जड़े उन क्षेत्रों में सबसे अधिक गहरी हैं, जहाँ विकास या तो पहुंच नहीं सका है अथवा उसकी रफ्तार बहुत धीमी है ! ऐसे क्षेत्रों में तेज विकास के ज़रिए ही नक्सलवाद की कमर तोड़ी जा सकती है ! दुर्भाग्यवश, नक्सली भी यह बात जानते हैं और इसीलिए वे विकास के कार्यों में अड़ंगा लगाने का काम कर रहे हैं ! पिछले कई दशकों से लगभग हर साल, दो-तीन महीने के अंतराल में, सीआरपीएफ अथवा पुलिस पर हमले हो जाते हैं, सड़क, पुल आदि के निर्माण में लगे लोगों को निशाना बनाया जाता है, और कभी कभी वे पुलिस से मुखबिर होने के आरोप में आम नागरिकों को भी मार देते हैं ! नक्सली इस बात से भयभीत हैं कि अगर विकास की रफ्तार तेज़ हो गयी तो उनकी रही-सही पकड़ भी समाप्त हो जाएगी !

एक समय नक़्सली संगठनों ने देश के करीब एक दर्जन राज्यों के आदिवासी बहुल वन क्षेत्रों में अपने ठिकाने बना रखे थे ! सुरक्षा बलों की सख्ती और विकास के बल पर ऐसे तमाम ठिकाने खत्म किये जा चुके हैं, लेकिन छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड के कुछ इलाकों में नक़्सली अभी भी अपनी जड़ें जमाये है ! छत्तीसगढ़ के बस्तर के इलका उनका सबसे मजबूत गढ़ है ! ऐसा नहीं है कि नक्सली जिन इलाकों में सक्रिय हैं वे इतने दुर्गम हैं कि वहाँ तक पहुंचा नहीं जा सकता ! राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता चाहें तो ऐसे क्षेत्रों में नक्सल समर्थकों को समझा-बुझाकर उन्हें मुख्यधारा में ला सकते हैं, लेकिन या तो वे ऐसा करना नही चाहते या फिर उनकी भी नक्सलियों से सांठगांठ है !

कई सरकारी विभागों के कर्मचारियों के बारे में तो यही माना जाता है कि असुरक्षा के कारण वे नक्सलियों से हाथ मिलाने में ही अपनी भलाई समझते हैं ! शायद यही कारण है कि नक्सली रह-रहकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में समर्थ हैं जो सुरक्षा बलों को हतोत्साहित कर देने वाली होती हैं ! जब भी इस तरह की कोई वारदात होती है तो केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े हो जाते हैं !

नकसलियों की हर बड़ी वारदात के बाद वही घिसी-पिटी बातें सुनने को मिलती हैं कि सुरक्षा बलों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, इलाके बहुत दुर्गम हैं, सरकार के स्तर पर नीतिगत स्पष्टता का अभाव है और ख़ुफ़िया तंत्र ठीक नहीं ! यह भी कहा जाता है कि नक्सलियों पर दोष सिद्ध हो जाने के बाद उनकी सज़ा इतनी कठोर नहीं होती कि अन्य लोगों को नक्सलवाद की ओर जाने से रोका जा सके !

सवाल यह कि आखिर अब तक इन समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया जा सका है ? नक्सलवाद जैसी गंभीर चुनौती का सामना करने में शासन-प्रशासन के स्तर पर तो किसी भी प्रकार की ढिलाई की कोई गुंजाइश ही नहीं होनी चाहिए ! अक्सर यह सुनने को मिलता है दुर्गम इलाकों में तैनाती के कारण सुरक्षा बलों के जवान थक जाते हैं ! कहा तो यहाँ तक जाता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती कश्मीर घाटी से भी अधिक खतरनाक है ! सैन्य बलों को इसपर ध्यान देना चाहिये कि क्या लंबी तैनाती और थकान के कारण जवानों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चौकसी बरतने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है ? यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या उनके पास आधुनिक हथियारों अथवा अन्य किसी संसाधन का अभाव तो नहीं ?

यह अत्यधिक चिंता की बात है कि माओ की हिंसक विचारधारा से प्रेरित नक्सली आख़िर देश के बिल्कुल बीचो बीच आधुनिक हथियार और अन्य संसाधन जुटाने में कैसे कामयाब हो रहे हैं? सुरक्षा बल एवं खुफिया एजेंसियां उन लोगों तक क्यों नहीं पहुँच पा रहीं जो नक्सलियों को हर तरह की सहायता उपलब्ध करा रहे हैं? एक अर्से से यह कहा जा रहा है कि पुलिस को पर्याप्त सक्षम बनाने की ज़रूरत है ताकि वे सीआरपीएफ जवानों की सही तरह मदद कर सकें ! यह काम अभी भी नही हो पाया है !

छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में पुलिस के हज़ारों पद रिक्त हैं ! इन राज्यों में पुलिस का ख़ुफ़िया तंत्र भी बहुत कमज़ोर है ! चूँकि बाहर से आये सीआरपीएफ जवान नक्सल प्रभावित इलाकों के भौगोलिक हालात और सामाजिक परिवेश से अंजान होते हैं इसीलिए उनके साथ पुलिस की सक्षम टुकड़ी होना आवश्यक है ! नक्सली गुर्रीला युद्ध में सक्षम हैं ! सीआरपीएफ ऐसी लड़ाई के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं हैं ! आखिर उसे जंगली इलाकों में छापामार शैली की लड़ाई में प्रशिक्षित करने में क्या कठिनाई है ?

यह समझने की ज़रूरत है कि नक्सलियों द्वारा बार-बार किये जा रहे हमले और उनमें सुरक्षा बलों के जवानों की क्षति आंतरिक सुरक्षा की रीढ़ को कमज़ोर करने के साथ ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित करती है ! नक्सली गतिविधियों और खासतौर पर सुरक्षा बलों पर उनके हमलों को तत्काल प्रभाव से रोकने की ज़रूरत है ! इसके लिए केंद्र और नक्सलवाद प्रभावित राज्यों को ठोस पहल करनी होगी ! नक्सलवाद से निपटने के लिए नक्सलवाद राजनीतिक जिद्द से नहीं संवाद से समाप्त होगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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