सत्ता की जिद्द से पैदा होता है “नक्सलवाद” Yogesh Mishra

राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए साठ लाख लोगों का बलिदान देने के बाद देश का दुर्भाग्य यह रहा कि देश को आधी-अधूरी आजादी जो मिली वह भी उन लोगों के हाथ में चली गई जो न तो राष्ट्र के प्रति जरा भी संवेदनशील थे और न ही उन्हें भारत के मूल संस्कृति की कोई समझ थी ! उनका यह मानना था कि भारत का विकास पश्चिमी उद्योग जगत के सहयोग से ही संभव है !

आज से 300 साल पहले जब बिना किसी औद्योगिक क्रांति के भारत “आध्यात्मिक सनातन जीवन शैली” को अपनाते हुए विश्व में “विश्व गुरू” ही नहीं “सोने की चिड़िया” भी कहलाता था ! उस समय विश्व में आज के “विकसित देशों” के लोग भूखे और नंगे घूमा करते थे ! भारत के अंदर लूट और डकैती डालकर भारत के अकूत धन को लूट कर आज पश्चिमी देश अपने को विकसित मानता है ! जहाँ आज भी कोई सामाजिक संरचना नहीं है !

वहां पर न तो कोई “आध्यात्मिक सनातन जीवन शैली” है और न ही इस तरह संवेदनशील सामाजिक व्यवस्था होने की कोई उम्मीद है ! वहां पर संपन्न होने के लिए लोगों ने खुल कर प्रकृति का दोहन ही नहीं बल्कि प्रकृति का शोषण और अत्याचार भी किये हैं ! धन और साम्राज्यवाद की हवस में नए-नए विनाशकारी उद्योग धंधे स्थापित किये हैं ! उनमें भी गला काट प्रतिस्पर्धा है !

हमारे देश में आजादी के समय के तत्कालीन नेताओं ने जिन्हें अपनी सनातन संस्कृति का कुछ भी ज्ञान नहीं था ! उन्हें पश्चिम के देशों द्वारा यह समझाया गया कि यदि विकास की दौड़ में भारत को भी विश्व के साथ चलना है तो भारत में भी “औद्योगिक क्रांति” लानी पड़ेगी जबकि ऐसा समझाने के पीछे पश्चिम जगत का उद्देश्य मात्र भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना था !

किंतु हमारे देश के तत्कालीन नेताओं ने सत्ता की लालच में पश्चिम जगत की इस चालाकी को समझते हुए भी देश को “औद्योगिक क्रांति” के नाम पर कानून बनाकर गिरवी रखना शुरू कर दिया ! परिणाम यह हुआ कि भारत के जल, जंगल और जमीन भारतीयों के हाथ से छीन कर “विदेशी उद्योगपतियों” के हाथ नीलाम किये जाने लगे !

भारत के तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवीयों को तो इसमें कोई बुराई नहीं दिखाई दी लेकिन दूरदराज जहां पर अभी भी “सनातन भारतीय संस्कृति” जीवित थी और उन भारतीयों पर “विकृत शिक्षा पद्धति” का कुप्रभाव नहीं पड़ा था ! उन्हें शासन सत्ता में बैठे हुए नेताओं की समझी हुई “न समझी” और चालाकी स्पष्ट रूप से समझ में आने लगी !

उन राष्ट्रप्रेमी भारतीयों ने सत्ता की इन गुलामी की विनाशकारी नीतियों का विरोध करना आरंभ कर दिया, जिस विरोध को दबाने के लिए क्षेत्रीय प्रशासन ने “सत्ता की जिद्द” पर लाठी-डंडे, गोली और जेल का सहारा लिया ! जिस अत्याचार से वहां की क्षेत्रीय जनता ने त्रस्त होकर अपने बचाव के लिए हथियार उठा लिये और उन्हें सर्व शक्तिमान सत्ताधीशों द्वारा “नक्सलवादी” राष्ट्रद्रोही अपराधी घोषित कर दिया गया !

जिसे सत्ताधीशों के इशारे पर मिडिया और समाचार पत्रों ने भी खूब हवा दी जिससे यह लोग समाज की मुख्य धारा से कट गये ! अब इनकी बात सुनाने वाला न तो कोई सदन में था और न ही न्यायालय में ! इनके अलग-थलग पड़ने पर इन्हें कुचलने के लिये भयंकर पुलिस बल का प्रयोग किया गया ! खुले आम सत्ता के इशारे पर सत्ता के नुमाइन्दों ने इनके साथ हत्या, डकैती, लूट, बलात्कार सभी कुछ किया और इनकी कहीं न सुनी गई ! आज “बलूचिस्तान” का नारा लगाने वाले राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने भी इन अत्याचारों पर कोई टिप्पणी नहीं की !

इस तरह पूरा का पूरा “नक्सलवाद” संवेदना विहीन सत्ता और अयोग्य प्रशासन की देन है ! आज यही भारतीय जो अपने देश के जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष कर रहे हैं, जिन्हें सत्ता की निगाह में राष्ट्रद्रोही “नक्सलवादी” कहा जाता है ! अगर सत्ता में बैठे हुए लोग वास्तव में राष्ट्र के प्रति वफादार होकर इन राष्ट्रप्रेमी भारतीयों की ईमानदारी के साथ समस्या का समाधान करना चाहें तो यह “नक्सलवाद” आज भी खत्म किया जा सकता है किंतु उद्योगीकरण के नाम पर पश्चिम के “विदेशी व्यवसायियों” का हमारी सत्ता पर इतना प्रभाव और दबाव है कि सत्ता में बैठे हुए लोग सब कुछ जानते हुए भी इस तरह का कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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