राष्ट्र और धर्म अलग-अलग नहीं हो सकते हैं ! Yogesh Mishra

धर्म के तीन उद्देश्य हैं ! पहला समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाना ! दूसरा राष्ट्र की सुरक्षा करना और तीसरा उद्देश्य है आने वाली पीढ़ियों का उत्तरोत्तर विकास करना ! जो भी धर्म इन कार्यों में सफल है, इसको ही धर्म कहा जाएगा ! शेष सभी विचारधारा हो सकती है या फिर अधर्म ही होगा !

भगवान श्री कृष्ण ने इन्हीं तीन उद्देश्यों की स्थापना के लिए महाभारत करवाया था और उनका विचार था कि महाभारत के माध्यम से जितने भी राष्ट्र को क्षति पहुंचाने वाली विचारधारा के लोग हैं, उनको इस युद्ध में नष्ट कर दिया जायेगा और शेष बचे हुए लोग धर्म अनुसार एक नये समाज की स्थापना करेंगे !

ऐसा युग युगांतर से होता रहा है ! सदैव कुछ समय के बाद समाज में विकृतियां बढ़ती रहती हैं और उन्हें समाप्त करने के लिये समय-समय पर ईश्वरीय व्यवस्था के तहत युगपुरुष इस पृथ्वी पर आते रहते हैं ! फिर चाहे उन्हें आदि गुरु शंकराचार्य कहा जाये, गुरु नानक कहा जाये या फिर पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य कहा जाये !

इन सभी युग पुरुषों का एकमात्र उद्देश्य होता है कि काल के प्रवाह में समाज में जो विकृतियाँ पैदा हुई हैं, उन्हें समाप्त किया जाये और जन सामान्य को धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिये प्रेरित किया जाये !

इन्हीं युग पुरुषों की ओट में कुछ धर्म के व्यवसायी भी इस देश में अपने धर्म की दुकान चलाते हैं ! समाज शुरू में तो उन्हें नहीं समझ पाता है लेकिन कुछ समय बाद समाज को पता चल जाता है कि यह व्यक्ति धर्म के नाम पर जो कर रहा है वह समाज के हित में नहीं है और न ही राष्ट्र हित में ! ऐसी स्थिति में समाज उस धर्म की दुकान चलाने वाले व्यक्ति को अस्वीकार कर देता है !

कमोवेश यही स्थिती राजनीति में भी है ! भारत में लोकतंत्र है ! भारत के नागरिकों द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधि ही भारत की सत्ता चलाते हैं ! हो सकता है कि धूर्त जनप्रतिनिधि अपने कुछ समय के लिये जानकारी के अभाव के कारण कुछ काल के लिये सत्ता का भोग कर ले लेकिन बहुत ही कम समय में जब नागरिकों को पता चलता है कि हमारा शासक वैसा नहीं है जैसा हमने उसको समझा था, तो भारतीय लोकतंत्र की यह व्यवस्था है कि भारत का आम जनमानस ऐसे धूर्त शासकों को सत्ता से नीचे उतार देता है !

लेकिन इन प्रयोगों के काल में राष्ट्र का बहुत नुकसान होता है ! हम नित नये लोगों पर नये-नये प्रयोग करते रहते हैं और राष्ट्र विनाश की तरफ बढ़ता रहता है ! कहने को तो हम लोकतंत्र में प्रजातांत्रिक तरीके से अपने शासक का निर्धारण करते हैं ! लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारे ऊपर शासन करने वाला व्यक्ति जिसे हम निर्वाचित करके सत्ता में भेजते हैं, वह विदेशी षडयंत्र कारियों के इशारे पर देश की सत्ता को चलाता है !

कालांतर से राजनीति के परीक्षण के बाद यह कहने में आज मुझे कोई संकोच नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र अब विदेशी इशारों पर चल रहा है ! यदि इस व्यवस्था को तत्काल न संभाला गया तो राष्ट्र और धर्म का विनाश सुनिश्चित है ! चारों तरफ धर्मांतरण का बोलबाला है ! आरक्षण और अल्पसंख्यक की सुविधा उठाने वाले निरंतर राष्ट्र के बुद्धिजीवी और बहुसंख्यक लोगों का अधिकार छीन रहे हैं ! इसका परिणाम राष्ट्र का सर्वनाश ही होगा !

ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि धर्म के पुनर्स्थापना के लिए नये सिरे से राष्ट्रहित में प्रयास किया जाना चाहिए ! क्योंकि धर्म के मूल सिद्धांतों को किनारे रखकर जो वर्तमान में देश की राजनीति चल रही है वह न तो तत्काल ही लाभप्रद है और न ही इस राजनीति से हमारी आने वाली पीड़ियाँ ही सुरक्षित रहेंगी !

निश्चित रूप से ईश्वर किसी धर्मवीर युगपुरुष को पृथ्वी पर भेजेगा ! जो धर्म की पुन: स्थापना करेगा लेकिन उस युगपुरुष के आगमन के पूर्व यह हमारा कर्तव्य है कि हम राष्ट्र की रक्षा अपने पूर्वजों के द्वारा बताये गये धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप करें और राजनीतिज्ञों को देश का विनाश करने से रोकें !

इसलिए धर्मनिरपेक्षता की ओट में राष्ट्र के विनाश की रणनीति बनाने वालों का कड़ा विरोध होना चाहिये और जिस धर्म ने हजारों साल से इस राष्ट्र की रक्षा की है ! उस धर्म को धर्मनिरपेक्षता शब्द के कारण नहीं त्यागा जाना चाहिये ! इसके लिये कितना भी बड़ा बलिदान क्यों न देना पड़े ! क्योंकि धर्म का त्याग कर देने के उपरांत राष्ट्र और व्यक्ति का ही नहीं आने वाली पीढ़ियों का भी विनाश हो जाता है !

जब अन्य जगहों पर विकसित धर्म को मानने वाले हमारे राष्ट्र में आकर अपने धर्म के सिद्धांतों का परित्याग नहीं करते हैं ! तो मात्र धर्मनिरपेक्षता के कारण हम पीढ़ी दर पीढ़ी से अनुकरण करने वाले अपने धर्म का परित्याग कैसे कर सकते हैं ! जो धर्म सदियों से हमारी रक्षा करता चला आ रहा है वही धर्म आगे भी हमारी रक्षा करेगा ! इसलिए यदि राष्ट्र और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखना है तो कभी भी किसी के भी कहने पर अपने स्वधर्म का परित्याग मत करो !

क्योंकि राष्ट्र और धर्म अलग-अलग नहीं बल्कि एक दूसरे के रक्षक और पूरक हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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