चौंसठ योगिनी मंदिर का रहस्य : Yogesh Mishra

वैसे तो चौंसठ योगिनी मंदिर भारत में कई जगह है किन्तु आज जबलपुर के मंदिर की चर्चा करता हूँ ! यह जबलपुर के ऐतिहासिक संपन्नता में एक और अध्याय जोड़ता है ! प्रसिद्ध संगमरमर चट्टान के पास स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों की प्रतिमा है ! इस मंदिर की विषेशता इसके बीच में स्थापित भागवान शिव की प्रतिमा है, जो कि 64 देवियों की प्रतिमा से घिरा हुआ है ! इस मंदिर का निर्माण सन् 1000 के आसपास “कलीचुरी वंश” ने करवाया था !

यह मंदिर जबलपुर का सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेड़ाघाट व धुआंधार जलप्रपात के नजदीक एक ऊंची पहाड़ी के शिखर पर स्थापित है ! पहाड़ी के शिखर पर होने के कारण यहां से काफ़ी बड़े भू-भाग व बलखाती नर्मदा नदी को निहारा जा सकता है ! इस मंदिर को दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने मां दुर्गा के रूप में स्थापित किया था ! लोगों का मानना है कि यह स्थली महर्षि भृगु की जन्मस्थली है, जहां उनके प्रताप से प्रभावित होकर तत्कालीन कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया !

मंदिर के सैनटोरियम में रानी दुर्गावती की मंदिर की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी देखा जा सकता है ! यहां एक सुरंग भी है जो मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है ! यह मंदिर एक विशाल परिसर में फैला हुआ है और इसके हर एक कोने से भव्यता झलकती है ! बेशक, अगर आप जबलपुर जा रहे हैं तो यह मंदिर जरूर जायें !

वर्तमान में मंदिर के अंदर भगवान शिव व मां पार्वती की नंदी पर वैवाहिक वेशभूषा में बैठे हुए पत्थर की प्रतिमा स्थापित है ! मंदिर के चारों तरफ़ करीब 10 फुट ऊंची गोलाई में चारदीवारी बनाई गई है, जो पत्थरों की बनी है तथा मंदिर में प्रवेश के लिए केवल एक तंग द्वार बनाया गया है ! चारदीवारी के अंदर खुला प्रांगण है, जिसके बीचों-बीच करीब 2-3 फुट ऊंचा और करीब 80-100 फुट लंबा एक चबूतरा बनाया गया है ! चारदीवारी के साथ दक्षिणी भाग में मंदिर का निर्माण किया गया है ! मंदिर का एक कक्ष जो सबसे पीछे है, उसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित है ! इसके आगे एक बड़ा-सा बरामदा है, जो खुला है ! बरामदे के सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है, जहां पर भक्तजन पूजा-पाठ करवाते हैं !

मंदिर की चारदीवारी जो गोल है, उसके ऊपर मंदिर के अंदर के भाग पर चौंसठ योगिनियों की विभिन्न मुद्राओं में पत्थर को तराश कर मूर्तियां स्थापित की गई हैं ! लोगों का मानना है कि ये सभी चौंसठ योगिनी बहनें थीं तथा तपस्विनियां थीं, जिन्हें महाराक्षसों ने मौत के घाट उतारा था ! राक्षसों का संहार करने के लिए यहां स्वयं दुर्गा को आना पड़ा था ! इसलिए यहां पर सर्वप्रथम मां दुर्गा की प्रतिमा कलचुरी के शासकों द्वारा स्थापित कर दुर्गा मंदिर बनाया गया था तथा उन सभी चौंसठ योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण भी मंदिर प्रांगण की चारदीवारी पर किया गया ! कालांतर में मां दुर्गा की मूर्ति की जगह भगवान शिव व मां पार्वती की मूर्ति स्थापित की गई है, ऐसा प्रतीत होता है !

जब भाग्यवश काफी प्रयासों के बाद भी कोई काम नहीं बन रहा है या प्रबल शत्रुओं के वश में होकर जीवन की आशा छोड़ दी हो तो इस साधना से इन सभी कष्टों से सहज ही मुक्ति पाई जा सकती है। इस साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष बड़ी आसाना से दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है। परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिये ! अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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