मात्र विद्या से विनय नहीं बल्कि अहंकार आता है : Yogesh Mishra

एक सूक्ति है “विद्या ददाति विनयम” अर्थात “विद्या से विनय की प्राप्ति होती है ! लेकिन यह सूक्ति गलत है ! विद्या से विनय की प्राप्ति नहीं होती है विद्या से अहंकार की प्राप्ति होती है !

जब व्यक्ति विद्या अर्थात सूचनाओं को संग्रहित कर लेता है, तो सदैव अपने से कम सूचना रखने वाले व्यक्ति को नाकारा और अयोग्य मान लेता है !

इसके विपरीत जब व्यक्ति विद्या अर्थात प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, तब उसका अहंकार लुप्त हो जाता है क्योंकि उसे पता चलता है कि हर तरह की विद्या अधूरी है !

निःसंदेह इस संसार में विद्या कुछ सफलताओं को प्राप्त करने में सहायक तो हो सकती है, लेकिन व्यक्ति को पूर्ण नहीं बनाती है, और जब कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है ! तब तक वह कभी भी विनय से भरा हुआ नहीं हो सकता है !

विनय से अपूर्ण व्यक्ति सदैव विद्या प्राप्त करने के बाद अहंकारी हो जाता है क्योंकि विद्या प्राप्त करने से व्यक्ति में के पास सांसारिक व्यवस्था के तहत कुछ सामर्थ्य इकट्ठे हो जाते हैं ! जो प्रशासन को चलाने के लिए परम आवश्यक हैं !

लेकिन इन्हीं सामर्थ्य को प्रयोग करने के लिए जिस विवेक की आवश्यकता होती है, उस विवेक के अभाव में विद्या और सामर्थ्य दोनों मिलकर सदैव समाज के लिए उस व्यक्ति द्वारा ऐसे घातक निर्णय या कार्य करवा लेते हैं, जिससे किसी भी व्यक्ति या समाज का भला नहीं होता बल्कि व्यक्ति और समाज का सर्वनाश हो जाता है !

याद रखिए कि यदि विद्या और सामर्थ्य के सहयोग से कोई व्यक्ति किसी दूसरे का सर्वनाश करता है तो उस व्यक्ति का भी सर्वनाश सुनिश्चित होता है !

मनुष्य मूलतः भयभीत और लोभी प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है और जब किसी भी भयभीत और लोभी प्रवृत्ति के व्यक्ति को विद्या और सामर्थ्य दोनों मिल जाता है, तो वह व्यक्ति सदैव समाज के लिए समस्या बन जाता है ! यही समस्या आज पूरे देश में व्याप्त है !

आज समाज चार हिस्से में बंटा है ! एक वह व्यक्ति जिसके पास बस सिर्फ विद्या है ! दूसरा वह व्यक्ति जिसके पास विद्या और सामर्थ्य दोनों है ! क्योंकि उसके पास विद्या और सामर्थ्य दोनों हैं इसलिए वह धनवान भी है और तीसरा व्यक्ति जिसके पास न विद्या है और न सामर्थ्य है ! क्योंकि उसके पास विद्या और सामर्थ्य नहीं है अतः वह मजदूर है जो शारीरिक श्रम करके अपना जीवन यापन करता है !

लेकिन इन 3 के अलावा गिने-चुने वर्ग में एक चौथा समूह भी है ! जिसके पास विद्या भी है, सांसारिक सामर्थ्य भी है और लोभ से मुक्त होकर निर्भीक चिंतन भी करता है !

यही व्यक्ति समाज को कुछ दे पाते हैं !अर्थात समाज को कुछ देने के लिए मात्र नॉलेज और पावर पर्याप्त नहीं है बल्कि व्यक्ति के पास विजडम अर्थात विवेक पूर्ण कार्य करने का तरीका भी होना चाहिए !

सूचना से विवेक जागृत होता है, विवेक से दर्शन जागृत होता है, दर्शन से चेतना जागृत होती है और चेतना से व्यक्ति संसार के रहस्य को समझ कर मुक्ति के मार्ग को प्राप्त कर पाता है और मुक्ति के मार्ग पर चलने वाला साधक वैरागी हो जाता है और बैरागी व्यक्ति ही संसार के प्रपंच से बाहर बैठकर स्वयं को इस अपूर्ण संसार अर्थात माया से मुक्त कर पाता है और माया से मुक्त व्यक्ति ही परम चेतना में पुनः विलीन होने का अधिकारी होता है !

इसलिए मात्र विद्या प्राप्त कर लेने से आप कोई विशेष व्यक्ति बन जाएंगे ! यह आपका भ्रम है ! विद्या मुक्ति का प्रथम चरण है. जिसके द्वारा आप चेतना को प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं और चेतना प्राप्त व्यक्ति ही चिंतन करके मुक्ति के मार्ग पर जा सकता है और मुक्त व्यक्ति ही उस परम सत्ता में विलीन हो सकता है ! यही एकमात्र मनुष्य के जीव के उद्धार का रास्ता है !जिसका आरंभ तो विद्या से होता है लेकिन मुक्ति तक पहुंचने के लिये बहुत सी सीढ़ियों को चढ़ना होता है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter