अनादि ग्रन्थ वेदों में ज्योतिष का ज्ञान : Yogesh Mishra

वैदिक दर्शन के परिचय के लिये यह वेदान्गी भूत ज्योतिष दर्शन सूर्य के समान प्रकाश देने का काम करता है,अतएव इसे वेद पुरुष या ब्रह्मपुरुष का चक्षु: (सूर्य) भी कहा गया है ! ज्योतिषामयनं चक्षु: सूर्यो अजायत,इत्यादि आगम वचनों के आधार से त्रिस्कंध ज्योतिष शास्त्र के के प्रधान प्रमुख सर्वोपादेय ग्रह गणित ग्रन्थ का नाम तक सूर्य सिद्धान्त या चक्षुसिद्धान्त कहा गया है !

अथवा अनन्त आकाशीय ग्रह नक्षत्र आकाश गंगा नीहारिका सम्पन्न जो स्वयं अनन्त है,उस ब्रह्म दर्शक चक्षु रूप शास्त्र का नाम ज्योतिष शास्त्र कहा गया है !

लगध का वेदांग ज्योतिष एक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ है ! इसका काल 13,500 ई पू माना जाता है ! अतः यह संसार का ही सर्वप्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ माना जा सकता है ! यह ज्योतिष का आधार ग्रन्थ है !

वेदांगज्योतिष कालविज्ञापक शास्त्र है ! माना जाता है कि ठीक तिथि नक्षत्र पर किये गये यज्ञादि कार्य फल देते हैं अन्यथा नहीं ! कहा गया है कि-
वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः !
तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्येतिषं वेद स वेद यज्ञान् ॥ (आर्चज्यौतिषम् 36, याजुषज्योतिषम् 3)

चारो वेदों के पृथक् पृथक् ज्योतिषशास्त्र थे ! उनमें से सामवेद का ज्यौतिषशास्त्र अप्राप्य है, शेष तीन वेदों के ज्यौतिषात्र प्राप्त होते हैं !

(1) ऋग्वेद का ज्यौतिष शास्त्र – आर्चज्योतिषम् : इसमें 36 ऋचायें हैं !
(2) यजुर्वेद का ज्यौतिष शास्त्र – याजुषज्योतिषम् : इसमें 44 ऋचायें हैं !
(3) अथर्ववेद ज्यौतिष शास्त्र – आथर्वणज्योतिषम् : इसमें 162 ऋचायें हैं !

वेद स्वरूप ज्योतिष ब्रह्मरूप ज्योति या ज्योतिष है,जिसका द्वतीय नाम संवत्सर ब्रह्म या महाकाल (महारुद्र) है जो अक्षर ब्रह्म से भी उच्चारित किया जाता है,ब्रह्मसृष्टि के मूल बीजाक्षरो या मूल अनन्त कलाओं को एक एक कर जानना,वैदिक दार्शनिक ज्योतिष या अव्यक्त ज्योतिष कहा जाता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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