जानिए कैसे अब धर्म ही हमें बचा सकता है ? Yogesh Mishra

मनुस्मृति अध्याय 8 का 15वां श्लोक है ! “हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।“अर्थात: धर्म का लोप कर देने से वह लोप करने वालों का नाश कर देता है और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी नहीं करना चाहिए, जिससे नष्ट धर्म कभी हमको न समाप्त कर दे !

अर्थात धर्म की रक्षा से ही व्यक्ति की रक्षा होगी ! मतलब जिस समाज में धर्म की रक्षा का समुचित प्रयास नहीं किया जाता है ! वह समाज और व्यक्ति काल के प्रवाह में बिखर कर नष्ट हो जाता है ! भारत का दुर्भाग्य यह है कि भारत में धर्म की सत्ता समाप्त हो गई और भारत के धर्माचार्य व्यवसाई हो गये हैं ! भारत की धार्मिक संस्थान अब धन लूटने के केंद्र के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गये हैं ! यह अब न ही व्यक्ति को दिशा देने में सक्षम हैं और न ही राष्ट्र को !

शंकराचार्य जैसे पदों पर बैठे हुए लोग भी राष्ट्र और धर्म की समस्याओं पर चिंतन तो अवश्य करते हैं ! लेकिन धर्म पर पड़ रहे राजनैतिक प्रभाव के कारण उसका समाधान ढूंढने में अक्षम हैं ! धर्म के नाम पर भारत में हर धर्म का अपना एक निजी धर्मगुरु है ! जो भारत की राजनीति से संचालित होता है ! राष्ट्र का कोई समग्र धर्म नहीं है ! जिस राष्ट्र में राष्ट्र का अपना कोई समग्र धर्म नहीं होता है ! वह राष्ट्र एक आवारा बदचलन बच्चे की तरह अपने भविष्य को नष्ट कर लेता है ! आज भारत में यही हो रहा है !

शासन सत्ता निरंकुश है ! वह जन भावनाओं के विपरीत निरंतर नित्य नई योजनाओं को लेकर आ रही है ! न्यायपालिका के अंदर बैठे हुये न्यायाधीश गण धर्म विरुद्ध होकर सामाजिक संरचना और सिद्धांतों के विपरीत जाकर आदेशों को निर्गत कर रहे हैं ! शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार इस हद तक व्याप्त है कि आम आवाम अपनी पैतृक संपत्ति और सम्मान तक को सुरक्षित नहीं रख पा रहा है ! बेईमान, धूर्त और अवसरवादी लोग धर्म सत्ता के अभाव में निरंतर दूसरों के संपत्ति का हरण करके संपन्न होते जा रहे हैं और सिद्धांत पर चलने वाला ईश्वर में आस्था रखने वाला व्यक्ति, धर्म की मर्यादाओं का पालन करने वाला व्यक्ति, निरंतर अपना सर्वस्व खोता चला जा रहा है !

शिक्षण संस्थायें धर्म विरुद्ध शिक्षा दे रही हैं ! स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने वाले चिकित्सक धर्म विरुद्ध होकर पीड़ित व्यक्तियों का शोषण कर रहे हैं ! लोगों को न्यायपालिका में न्याय नहीं मिल रहा है ! यह पूरी की पूरी सामाजिक संरचना जो आज धर्म च्युत हो गई है ! वह पूरी तरह से बिखरने की कगार पर है !

यदि इसे धर्म के प्रभाव से तत्काल नहीं बंधा गया तो वह समय दूर नहीं ! जब भारत के समाज के अंदर वह सभी विकृतियां होंगी ! जो एक पैश्चिक संस्कृति में विद्यमान हैं ! पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक संस्थायें आदि सभी कुछ बिखर कर समाज को एक निरंकुश समाज में बदल देंगी ! जो स्थिति आने वाली पीढ़ियों के लिये बहुत ही भयावह होंगीं !

लोगों का आपसी विश्वास खत्म हो जायेगा ! निरंकुशता और स्वार्थ के कारण लोगों के पास निर्वाह योग्य धन होने के बाद भी वह उसका उपभोग नहीं कर सकेंगे ! यदि हम इस सबसे बचना चाहते हैं तो हमें सभी क्षेत्रों में धर्म की सत्ता को पुनः स्थापित करना होगा ! यही एकमात्र विकल्प है ! इसके लिये किसी भी धर्मगुरु से कोई परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं है ! बल्कि शास्त्रों में जो धर्म के सिद्धांत वर्णित हैं ! उन्हें हर व्यक्ति को व्यक्तिगत स्तर पर अपने जीवन में ईमानदारी के साथ आत्मसात करना होगा ! तभी हमारी रक्षा होगी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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