कामिल मस्जिद ही ‘सरस्वतीकण्ठभरण मंदिर’ है ! : Yogesh Mishra

राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया ! राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में ‘सरस्वतीकण्ठभरण’ नामक भवन बनवाये थे जिसमें धार में ‘सरस्वती मंदिर’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ! एक अंग्रेज अधिकारी सीई लुआर्ड ने 1908 के गजट में धार के सरस्वती मंदिर का नाम ‘भोजशाला’ लिखा था ! पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी ! मुगलकाल में मंदिर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है !

महारजा भोज माँ सरस्वती के वरदपुत्र थे ! उनकी तपोभूमि धारा नगरी में उनकी तपस्या और साधना से प्रसन्न हो कर माँ सरस्वती ने स्वयं प्रकट हो कर दर्शन दिए ! माँ से साक्षात्कार के पश्चात उसी दिव्य स्वरूप को माँ वाग्देवी की प्रतिमा के रूप में अवतरित कर भोजशाला में स्थापित करवाया जहाँ पर माँ सरस्वती की कृपा से महराजा भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त की ! उनकी अध्यात्मिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक अभिरुचि, व्यापक और सूक्ष्म दृष्टी, प्रगतिशील सोच उनको दूरदर्शी तथा महानतम बनाती है !

महाराजा भोज ने माँ सरस्वती के जिस दिव्य स्वरूप के साक्षात् दर्शन किये थे उसी स्वरूप को महान मूर्तिकार मंथल ने निर्माण किया ! भूरे रंग के स्फटिक से निर्मित यह प्रतिमा अत्यन्त ही चमत्कारिक, मनोमोहक एव शांत मुद्रा वाली है, जिसमें माँ का अपूर्व सोंदर्य चित्ताकर्षक है ! ध्यानस्थ अवस्था में वाग्देवी कि यह प्रतिमा विश्व की सबसे सुन्दर कलाकृतियों में से एक मानी जाती है !

माँ सरस्वती का प्राकट्य स्थल भोजशाला हिन्दू जीवन दर्शन का सबसे बड़ा अध्यन एवं प्रचार प्रसार का केंद्र भी था जहाँ देश विदेश के लाखों विद्यार्थियों ने 1400 प्रकाण्ड विद्वान आचार्यो के सानिध्य आलोकिक ज्ञान प्राप्त किया ! इन आचार्यो में भवभूति, माघ, बाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट्ट, धनपाल, बौद्ध संत बन्स्वाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात है ! महाराजा भोज के पश्चात अध्यन अध्यापन का कार्य 200 वर्षो तक निरन्तर जारी रहा !

माँ के प्रगट्य स्थल पर सेकड़ो वर्षो से अविरत आराधना, यज्ञ, हवन, पूजन एवं तपस्वियों की साधना से भोजशाला सम्पूर्ण विश्व में सिद्ध पीठ के रूप में आस्था और श्रद्धा का केंद्र है ! 1269 इसवी से ही इस्लामी आक्रंताओ ने अलग अलग तरीको से योजना पूर्वक भारत वर्ष के इस अध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान बिंदु भोजशाला पर आक्रमण किया जिसे तत्कालीन हिन्दू राजाओ ने विफल कर दिया !

राजा भोज ने इस नगरी में देश के सबसे बड़े तालाब का निर्माण कराया था ! राजा भोज ने ही भोजपर में विशाल सरोवर का निर्माण कराया था ! उन्होंने ही भोजपुर में विश्वप्रसिद्ध शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था ! लेकिन पिछले वर्ष ही भोपाल और भोजपुर के बारे में एक रहस्य का खुलासा हुआ है ! यह खुलासा सैटेलाइट के चित्र को देखने के बाद हुआ ! हालांकि यह रहस्य अभी भी बरकरार है !

शोधकर्ताओं के अनुसार भोपाल के पास एक ओम वैली है जिसके केंद्र में भोजपुर बसा हुआ है ! भोपाल से लगभग 30 किमी दूर रायसेन जिले में स्थित है भोजपुर ! इसी ओम वैली के एक सिरे पर भोपाल, दूसरे पर दौलतपुर और कालापानी बसा हुआ है जबकि इसी ओम वैली के अन्य हिस्सों पर बंछोद, चिकलोड, आशापुरी, गौहरगंज, तमोट आदि कस्बे बसे हुए हैं !

गुगल अर्थ या गुगल मैप में जाकर भोजपुर सर्च करें और फिर इसके आसपास बसी पहाड़ियों को देखेंगे तो आपको ओम की आकृति नजर आएगी ! कहते हैं कि मानसून में जब चारों और हरियाली छा जाती है, जलाशाय पानी से भर जाते हैं, तभी यह ओम स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आता कहते हैं कि मध्यप्रदेश में ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के पास भी ऐसी ही प्राकृतिक ओम वैली दूर आसमान से दिखाई देती है !

वैज्ञानिकों की नजर में यह ओम वैली है ! इसके सैटेलाइट डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन का काम मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद को मिला है ! परिषद की ताजा सैटेलाइट इमेज से ‘ॐ’ वैली के आसपास पुराने भोपाल की बसाहट और एकदम केंद्र में भोजपुर के मंदिर की स्थिति स्पष्ट देखी जा सकती है ! परिषद के वैज्ञानिक डॉ. जीडी बैरागी अनुसार डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन के लिये हमें ठीक उस वक्त ओम वैली का ग्राउंड डाटा लेना होता है, जिस समय सैटेलाइट शहर के ऊपर से गुजरे ! यह सैटेलाइट 24 दिनों के अंतराल पर भोपाल के ऊपर से गुजरता है ! इससे गेहूं की खेती वाली जमीन की तस्वीरें ली जाती हैं !

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के लिये भोजपुर मंदिर का इंटरप्रेटेशन सेंटर तैयार करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना के अनुसार ओम की संरचना और शिव मंदिर का रिश्ता पुराना है ! देश में जहां कहीं भी शिव मंदिर बने हैं, उनके आसपास के ओम की संरचना जरूरी होती है ! इसका उदहारण है ओंकारेश्वर का शिव मंदिर ! परमार राजा भोज के समय में ग्राउंड मैपिंग किस तरह से होती थी इसके अभी तक कोई लिखित साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन यह शोध का विषय जरूर है !

मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं !

राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिये भी पहचाने जाते हैं ! आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के कंजर्व वाटर का लाभ आम लोगों को मिल रहा है ! भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है ! भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था ! यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया !

उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया ! उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं !

सन 1305 मे इस्लामी आक्रान्ता अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया तथा भोजशाला को के कुछ भाग को भी ध्वस्त किया ! 1200 आचार्यो की हत्या कर यज्ञ कुण्ड में डाल दिया ! राजा मेदनीराय ने वनवासी धर्मयोधाओ को साथ ले कर मुस्लिम आक्रान्ताऔ को मार भगाया गया ! तत्पश्चात 1902 में से वाग्देवी की प्रतिमा को मेजर किनकैड अपने साथ इंग्लेंड ले गया, जो, आज भी लन्दन संग्रहालय में कैद है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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