कला कन्या वेश्याओं की करुण यात्रा : Yogesh Mishra

वैदिक काल की अप्सराएँ और गणिकाएँ मध्ययुग में देवदासियाँ और नगरवधुएँ तथा मुस्लिम काल में वारांगनाएँ और वेश्यायें बन गई ! प्रारंभ में यह धर्म से संबद्ध थीं और चौसठों कलाओं में निपुण मानी जाती थीं ! मध्युग में सामंतवाद की प्रगति के साथ इनका पृथक् वर्ग बनता गया और कलाप्रियता के साथ कामवासना संबद्ध हो गई, पर यौनसंबंध सीमित और संयत था !

कालांतर में नृत्यकला, संगीतकला एवं सीमित यौनसंबंध द्वारा जीविकोपार्जन में असमर्थ वेश्याओं को बाध्य होकर अपनी जीविका हेतु लज्जा तथा संकोच को त्याग कर अश्लीलता के उस स्तर पर उतरना पड़ा जहाँ पशुता प्रबल है !

कौटिल्य अर्थशास्त्र ने इन्हें राजतंत्र का अविच्छिन्न अंग माना गया है तथा एक सहस्र पण वार्षिक शुल्क पर प्रधान गणिका की नियुक्ति का आदेश दिया जाता था ! महानिर्वाणतंत्र में तो तीर्थ स्थानों में भी देवचक्र के समारंभ में शक्तिस्वरूपा वेश्याओं को सिद्धि के लिए आवश्यक माना जाता है ! वह राजवेश्या, नागरीवेश्या, गुप्तवेश्या, ब्रह्मवेश्या तथा देववेश्या के रूप में पंचवेश्या स्वरुप में उल्लेख मिलता हैं !

तंत्रों एवं गुह्य साधनाओं की शक्ति स्थानीया रूपसी कामिनियाँ, उत्सव विशेष की शोभायात्रा में आगे-आगे अपना प्रदर्शन करती हुई नर्तकियाँ, गणिकाऐ, वेश्यायें और किन्नरों किसी न किसी रूप में प्राचीन भारतीय समाज में सदैव अपना सम्मानित स्थान प्राप्त करती आ रही है ! धार्मिक ग्रंथो, तंत्र शास्त्रों आदि ग्रंथों में स्त्रीयों का अतिरंजित वर्णन मिलता है !

शास्त्रों में दीर्घतमा ऋषि, पुराणों की अप्सराएँ, आर्ष काव्यों, रामायण एवं महाभारत की शताधिक उपकथाएँ मनु, याज्ञवल्क्य, नारद आदि स्मृतियों का आदिष्ट कथन, तंत्रों एवं गुह्य साधनाओं की शक्तिस्थानीया रूपसी कामिनियाँ, उत्सवविशेष की शोभायात्रा में आगे-आगे अपना प्रदर्शन करती हुई नर्तकियाँ किसी न किसी रूप में प्राचीन भारतीय समाज में सदैव अपना सम्मानित स्थान प्राप्त करती रही है !

दशकुमारचरित, कालिदास की रचनाएँ, समयमातृका, दामोदर गुप्त का कुट्टनीमतम् आदि ग्रंथों में वीरांगनाओं का अतिरंजित वर्णन मिलता है ! कौटिल्य अर्थशास्त्र ने इन्हें राजतंत्र का अविच्छिन्न अंग माना है तथा एक सहस्र पण वार्षिक शुल्क पर प्रधान गणिका की नियुक्ति का आदेश दिया है ! महानिर्वाणतंत्र में तो तीर्थस्थानों में भी देवचक्र के समारंभ में शक्तिस्वरूपा वेश्यायें को सिद्धि के लिए आवश्यक माना है !

वह राजवेश्या, नागरीवेश्या, गुप्तवेश्या, ब्रह्मवेश्या तथा देववेश्या के रूप में पंचवेश्या स्वरुप में उल्लेख मिलता हैं ! स्पष्ट है कि समाज का कोई अंग एवं इतिहास का कोई काल इनसे विहीन नहीं था! इनके विकास का इतिहास समाजविकास का इतिहास है! त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ, काम) की सिद्धि में यह सदैव उपस्थित रही हैं !

समाज का कोई भी अंग एवं इतिहास का कोई काल इनसे विहीन नहीं था ! इन कि शक्तिका प्रधाननता को उस काल में भी स्विकार कीया गया था ! इनके विकास का इतिहास समाज विकास का इतिहास है ! यह त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ, काम) की सिद्धि में यह सदैव अग्र स्थान में उपस्थित रहती हैं ! वैदिक काल की अप्सराएँ और गणिकाएँ मध्ययुग में देवदासियाँ और नगरवधुयें तथा मुस्लिम काल में वारांगनायें और वेश्यें बन गई ! प्रारंभ समय में यह धर्म से संबद्ध थीं और चौसठों कलाओं में निपुण मानी जाती थीं !

मध्युग में सामंतवाद की प्रगति के साथ इनका पृथक् वर्ग बनता गया और कलाप्रियता के साथ कामवासना संबद्ध हो गई ! पर यौनसंबंध सीमित और संयत होता था ! कालांतर में नृत्यकला, संगीतकला एवं सीमित यौनसंबंध द्वारा जीविकोपार्जन में असमर्थ वेश्यायें को बाध्य होकर अपनी जीविका हेतु लज्जा तथा संकोच को त्याग कर अश्लीलता के उस स्तर पर उतरना पड़ा जहाँ पशुता प्रबल है ! वेश्या के रुप में अपने आपको प्रस्तुत करना पडा और समाज में खुले रुप से यौन सम्बन्ध का व्यापार करने लगी ! आदि काल कि वही पुज्या नारी कालानंतर में भोग्या बन गयी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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