लोकतंत्र के बौद्धिक लठैत | अंधभक्तों पर विशेष | Yogesh Mishra

एडोल्फ हिटलर ने जब जर्मन में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए जन सभाओं का दौर शुरू किया तब उसने कुछ गुण्डे टाईप के लठैतों को पाल रखे थे ! इन लठैतों का कार्य यह था कि जब हिटलर जन सभाओं में भाषण दे रहा हो और कोई भी व्यक्ति हिटलर के राजनैतिक महत्वाकांक्षा के विरूद्ध आवाज उठाये तो यह लठैत उस व्यक्ति को जनसभा से घसीटते हुए बाहर ले जाते थे और उन्हें बुरी तरह से पीटा करते थे ! जिससे धीरे-धीरे जर्मन के नागरिकों के मन में एक भय व्याप्त हो गया और आम आदमियों ने हिटलर के विरुद्ध बोलना बंद कर दिया और यह संदेश पूरे जर्मन में फैल गया कि जो व्यक्ति हिटलर के विरुद्ध बोलेगा वह राष्ट्रद्रोही है ! इसी का परिणाम था कि 60 लाख यहूदी नागरिकों को सरेआम जर्मन में मार डाला गया और हिटलर के खिलाफ़ जर्मन में कोई भी आवाज नहीं उठी !

कमोवेश यही स्थिति आज भारत की है ! भारत में राष्ट्रवाद का नारा लगाने वाले राजनैतिक दल ने भी बौद्धिक लठैत पाल रखे हैं ! जिन्हें वह आई.टी. सेल का सदस्य कहते हैं ! इन बौद्धिक लठैतों का कार्य है कि कोई भी जन सामान्य व्यक्ति यदि राष्ट्रवादी राजनीतिक दल के मुखिया के विरुद्ध राष्ट्रहित में कोई भी बात कहता है तो यह बौद्धिक लठैत सोशल मीडिया, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सएप टी.वी. चैनल आदि पर उस व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने लगते हैं और इनकी तादाद कितनी ज्यादा है कि धीरे-धीरे समाज का बुद्धिजीवी तबका अब सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तथाकथित राष्ट्रवादी राजनीतिक दल के मुखिया के विरुद्ध अपने विचार रखने में भय महसूस करने लगा है !

इसका परिणाम यह है कि राष्ट्र की राजनीति में एक पक्षीय विचारधारा का बोलबाला है और उस एक पक्षीय विचारधारा के दुष्परिणाम राष्ट्र को भविष्य में निश्चित रूप से झेलने पड़ेंगे ! जब विचारधारा का दूसरा पक्ष समाज के सामने आ ही नहीं पा रहा है तो समाज का आम व्यक्ति सही और गलत के बीच निर्णय कैसे करेगा !

यह स्थिति लोकतंत्र में बड़ी भयावह है क्योंकि लोकतंत्र की पहचान ही यही है कि मतदाता के समक्ष राजनेताओं के दृष्टिकोण के दोनों पक्ष होने चाहिये, जिससे वह यह निर्णय ले सकें कि उसे किस राजनेता को चुनना है ! किंतु जब देश के अंदर स्थिति यह हो जाये कि “जो हमारा राजनेता कह रहा है वही सत्य है और उसके अलावा उसके विरुद्ध कोई भी मत बोलो !” और यदि कोई भी व्यक्ति उस राजनेता के विरुद्ध विचार रखेगा तो वह राष्ट्रद्रोही है, पप्पू समर्थक है आदि आदि और उसे अपमानित करके सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाएगा ! जो हमारे राजनेता कह रहे हैं, उसे वैसा ही स्वीकार कर लो वरना …. !

यह सीधे-सीधे लोकतंत्र की हत्या है ! आज हमारे देश में यही हो रहा है और इसी का परिणाम है कि आज भारत में राजनीतिक शून्यता व्याप्त हो गई है ! वर्तमान सत्ताधारी राजनीतिक दल के विरुद्ध जनता को कोई भी विकल्प नजर नहीं आ रहा है ! यह वैचारिक तानाशाही का सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण है !

यह मान लीजिये कि यह वैचारिक तानाशाही यदि अगले 10 वर्ष तक इस देश में चलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब या तो देश में बौद्धिक राष्ट्रवादी विचारक पूरी तरह निष्क्रिय हो जाएंगे या फिर वह राष्ट्र से पलायन कर जाएंगे और यह दोनों ही स्थिति भारतीय लोकतंत्र और भारतवर्ष दोनों के लिये ही घातक है ! इसलिए इन बौद्धिक लठैतों से देश को बचाना चाहिये ! जिससे लोकतंत्र जिन्दा रहे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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