जानिए । ज्योतिष में सूर्य का महत्त्व और भूमिका । Yogesh Mishra

ज्योतिष में सूर्य का महत्त्व

भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य को समस्त ग्रहों का राजा माना जाता है और इसे समस्त प्राणी जगत को जीवन प्रदान करने वाली उर्जा का केंद्र भी माना जाता है। सूर्य को ज्योतिष की गणनाओं के लिए पुरुष ग्रह माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में सूर्य को आम तौर पर उसके पिता का प्रतिनिधि माना जाता है जो उस व्यक्ति के इस प्राणी जगत में जन्म लेने का प्रत्यक्ष कारक होता है ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य को इस प्राणी जगत को चलाने वाले प्रत्यक्ष देवता का रुप माना जाता है।

कुंडली में सूर्य को कुंडली धारक के पूर्वजों का प्रतिनिधि भी माना जाता है क्योंकि वे कुंडली धारक के पिता के इस संसार में आने का प्रत्यक्ष कारक होते हैं। इस कारण से सूर्य पर किसी भी कुंडली में एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर उस कुंडली में पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जो कुंडली धारक के जीवन में विभिन्न प्रकार की मुसीबतें तथा समस्याएं पैदा करने में सक्षम होता है।

पिता तथा पूर्वजों के अतिरिक्त सूर्य को राजाओं, राज्यों, प्रदेशों तथा देशों के प्रमुखों, उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों, सरकार, ताकतवर राजनीतिज्ञों तथा पुलिस अधिकारीयों, चिकित्सकों तथा ऐसे कई अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रतिनिधि भी माना जाता है। सूर्य को प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का, जीवन दायिनी शक्ति का, इच्छा शक्ति का, रोगों से लड़ने की शक्ति का, आँखों की रोशनी का, संतान पैदा करने की शक्ति का तथा विशेष रूप से नर संतान पैदा करने की शक्ति का, नेतृत्व करने की क्षमता का तथा अधिकार एवम नियंत्रण की शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।

व्यक्ति के शरीर में सूर्य पित्त प्रवृति का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि सूर्य ग्रह के स्वभाव तथा अधिकार में अग्नि तत्व होता है। बारह राशियों में सूर्य अग्नि राशियों ( मेष, सिंह तथा धनु ) में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान हो जाते हैं तथा मेष राशि में स्थित होने से सूर्य को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है और इसी कारण इस राशि में सूर्य को उच्च का माना जाता है। मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली हो जाते हैं जो कि सूर्य की अपनी राशि है तथा इसके अतिरिक्त सूर्य धनु राशि में भी बलवान होते हैं जिसके स्वामी गुरू हैं।

जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित होकर स्थित होते हैं ऐसे कुंडली धारक आम तौर पर जीवन भर सवस्थ रहते हैं क्योंकि सूर्य को सीधे तौर पर व्यक्ति के निरोग रहने की क्षमता का प्रतीक माना जाता है। कुंडली में सूर्य बलवान होने से कुंडली धारक की रोग निरोधक क्षमता सामान्य से अधिक होती है तथा इसी कारण उसे आसानी से कोई रोग परेशान नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्तियों का हृदय बहुत अच्छी तरह से काम करता है जिससे इनके शरीर में रक्त का सचार बड़े सुचारू रूप से होता है। ऐसे लोग शारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होते हैं तथा आम तौर पर इनके शरीर का वज़न भी सामान्य से बहुत अधिक या बहुत कम नहीं होता हालांकि इनमें से कुछ तथ्य कुंडली में दूसरे ग्रहों की शुभ या अशुभ स्थिति के साथ बदल भी सकते हैं।

कुंडली में सूर्य के बलवान होने पर कुंडली धारक सामान्यतया समाज में विशेष प्रभाव रखने वाला होता है तथा अपनी संवेदनाओं और भावनाओं पर भली भांति अंकुश लगाने में सक्षम होता है। इस प्रकार के लोग आम तौर पर अपने जीवन के अधिकतर निर्णय तथ्यों के आधार पर ही लेते हैं न कि भावनाओं के आधार पर। ऐसे लोग सामान्यतया अपने निर्णय पर अड़िग रहते हैं तथा इस कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें कई बार अभिमानी भी समझ लेते हैं जो कि ये कई बार हो भी सकते हैं किन्तु अधिकतर मौकों पर ऐसे लोग तर्क के आधार पर लिए गए सही निर्णय की पालना ही कर रहे होते हैं तथा इनके अधिक कठोर लगने के कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें अभिमानी समझ लेते हैं। अपने इन गुणों के कारण ऐसे लोगों में बहुत अच्छे नेता, राजा तथा न्यायाधीश बनने की क्षमता होती है।

पुरुषों की कुंडली में सूर्य का बलवान होना तथा किसी बुरे ग्रह से रहित होना उन्हें सवस्थ तथा बुद्धिमान संतान पैदा करने की क्षमता प्रदान करता है तथा विशेष रुप से नर संतान पैदा करनी की क्षमता। बलवान सूर्य वाले कुंडली धारक आम तौर पर बहुत सी जिम्मेदारियों को उठाने वाले तथा उन्हें निभाने वाले होते हैं जिसके कारण आवश्यकता से अधिक काम करने के कारण कई बार इन्हें शारीरिक अथवा मानसिक तनाव का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे लोग आम तौर पर पेट में वायु विकार जैसी समस्याओं तथा त्वचा के रोगों से पीड़ित हो सकते हैं जिसका कारण सूर्य का अग्नि स्वभाव होता है जिससे पेट में कुछ विशेष प्रकार के विकार तथा रक्त में अग्नि तत्व की मात्रा बढ़ जाने से त्वचा से संबधित रोग भी हो सकते हैं।

बारह राशियों में से कुछ राशियों में सूर्य का बल सामान्य से कम हो जाता है तथा यह बल सूर्य के तुला राशि में स्थित होने पर सबसे कम हो जाता है। इसी कारण सूर्य को तुला राशि में स्थित होने पर नीच माना जाता है क्योंकि तुला राशि में स्थित होने पर सूर्य अति बलहीन हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य कुंडली में अपनी स्थिति के कारण तथा एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों के प्रभाव में आने के कारण भी बलहीन हो जाते हैं तथा इनमें से अंतिम प्रकार की बलहीनता कुंडली धारक के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक होती है। किसी कुंडली में यदि सूर्य तुला राशि में स्थित हों तथा तुला राशि में ही स्थित अशुभ शनि के प्रभाव में हों तो ऐसी हालत में सूर्य को भारी दोष लगता है क्योंकि तुला राशि में स्थित होने के कारण सूर्य पहले ही बलहीन हो जाते हैं तथा दूसरी तरफ तुला राशि में स्थित होने पर शनि को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है क्योंकि तुला राशि में स्थित शनि उच्च के हो जाते हैं। ऐसी हालत में पहले से ही बलहीन सूर्य पर पूर्ण रूप से बली शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव सूर्य को बुरी तरह से दूषित तथा बलहीन कर देता है जिससे कुंडली में भयंकर पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जिसके कारण कुंडली धारक के जीवन में सूर्य के प्रतिनिधित्व में आने वाले सामान्य तथा विशेष, सभी क्षेत्रों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन करते समय कुंडली में सूर्य की स्थिति, बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक है।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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