कैसे होता है अग्निपुराण पुराण में ‘मरण तंत्र’ का प्रयोग ! Yogesh Mishra

‘मरण तंत्र’ का प्रयोग राजनीती में होता ही रहता है !

सनातन साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण पुराणों का अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है ! इन पुराणों में ‘अग्निपुराण’ विशेष है ! इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह ‘अग्निपुराण’ कहलाता है ! आधुनिक उपलब्ध अग्निपुराण के कई संस्करणों में 11,475 श्लोक एवं 383 अध्याय हैं जबकि नारदपुराण के अनुसार इसमें 15 हजार श्लोकों तथा मत्स्यपुराण के अनुसार 16 हजार श्लोकों का संग्रह बतलाया गया है !

अग्निपुराण में तंत्र के षट् कर्म विधान का वर्णन मिलता है ! तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं ! इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:- मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं !

उक्त सभी को करने के लिए अन्य कई तरह के देवी-देवताओं की साधना की जाती है ! अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं ! बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचिनी साधना, यक्षिणी साधा या रुद्र साधना करते हैं !

हालांकि इसका एक निम्न स्तर भी है ! जैसे इस विद्या के माध्यम से नजर लगना, उन्माद भूतोन्माद, ग्रहों का अनिष्ट, बुरे दिन, किसी के द्वारा प्रेरित अभिचार, मानसिक उद्वेग आदि को शांत करना भी होता है ! शारीरिक रोगों के निवारण, सर्प, बिच्छू आदि का दर्शन एवं विषैले फोड़ों का समाधान भी तंत्र द्वारा किए जाने का दावा किया जाता है !

वैसे तो तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है ! इसके लिए अंतर्मुखी होकर साधनाएं की जाती हैं ! तांत्रिक साधना को साधारणतया 3 मार्ग- वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग और मध्यम मार्ग कहा गया है !

अग्निपुराण के अनुसार षट् कर्मों में “मरण तंत्र” नेष्ठ कर्म में गिना जाता है ! क्योंकि “मारण कर्म” किसी को मृत्यु देना या तुल्य कष्ट देना कहलाता है ! इसमें वायु तत्व को बढ़ा कर यादाशत नष्ट कर देना, कानों में सनसनाहट, नसों व हड्डी में पीड़ा या विकार देना ! पित्त तत्व को बढ़ा कर पाचन शक्ति विकृत कर देना या फोड़ा, गैंग्रीन, कैंसर आदि पैदा करना ! कफ तत्व बढ़ा कर अस्थमा, ब्रोनाक्रटीस, दमा आदि रोगों को पैदा करना आदि क्रिया “मरण तंत्र” के अंतर्गत आता है !

इस तरह ‘अग्निपुराण’ में मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के कितने ही प्रयोग मिलते हैं ! शत्रु-नाश के लिए मारण प्रयोगों को काम में लाया जाता है ! मारण कितने ही प्रकार का होता है ! एक तो ऐसा है जिससे किसी मनुष्य की तुरन्त मृत्यु हो जाय ! ऐसा प्रयोगों में ‘‘घात’’ या ‘‘कृत्या’’ प्रसिद्ध है ! वह एक शक्तिशाली तांत्रिक अग्नि अस्त्र है जो प्रत्यक्षतः दिखाई नहीं पड़ता तो भी बन्दूक की गोली की तरह निशाने पर पहुंचता है और शत्रु को गिरा देता है ! दूसरे प्रकार के मारण मन्द मारण कहे जाते हैं, इनके प्रयोग से किसी व्यक्ति को रोगी बनाया जा सकता है ! ज्वर, दस्त, दर्द, लकवा, उन्माद, मतिभ्रम आदि रोगों का आक्रमण किसी व्यक्ति पर उसी प्रकार हो सकता है जिस प्रकार कीटाणु बमों से प्लेग, हैजा आदि महामारियों को फैलाया जाता है !

इस प्रकार के प्रयोग नैतिक दृष्टि से उचित हैं या अनुचित ? यह प्रश्न दूसरा है पर इतना निश्चित है कि यह असंभव नहीं, संभव है ! जिस प्रकार विष खिलाकर या शस्त्र चलाकर किसी मनुष्य को मार डाला जा सकता है वैसे ही ऐसे अदृश्य उपकरण भी हो सकते हैं जिनको प्रेरित करने से प्रकृति के घातक परमाणु एकत्रित होकर अभीष्ट लक्ष की ओर दौड़ पड़ते हैं और उस पर भयंकर आक्रमण करके उस पर चढ़ बैठते हैं और परास्त करके प्राण संकट में डाल देते हैं ! इसी प्रकार प्रकृति के गर्भ में विचरण करते हुए किसी रोग विशेष के कीटाणुओं को किसी व्यक्ति विशेष की ओर विशेष रूप से प्रेरित किया जा सकता है !

‘मृत्यु किरण’ आज का ऐसा ही वैज्ञानिक आविष्कार है ! किसी प्राणी पर इन किरणों को डाला जाय तो उसकी मृत्यु हो जाती है ! प्रत्यक्ष देखने में उस व्यक्ति को किसी प्रकार का घाव आदि नहीं होता पर अदृश्य मार्ग से उसके भीतरी अवयवों पर ऐसा सूक्ष्म आघात होता है कि उस प्रहार से उसका प्राणान्त हो जाता है ! यदि वह आघात हलके दर्जे का हुआ तो उससे मृत्यु तो नहीं होती, पर मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाले या घुला-घुलाकर मार डालने वाले रोग पैदा हो जाते हैं !

शाप देने की विद्या प्राचीन काल में अनेक लोगों को मालूम थी ! जिसे शाप दिया था उसका बड़ा अनिष्ट होता था ! शाप देने वाला अपनी आत्मिक शक्तियों को एकत्रित करके एक विशेष विधि-व्यवस्था के साथ जिसके ऊपर उनका प्रहार करता था, उसका वैसा ही अनिष्ट हो जाता था जैसा कि शाप देने वाला चाहता था !

तान्त्रिक अभिचारों द्वारा भी इसी प्रकार से दूसरों का अनिष्ट हो सकता है ! परन्तु ध्यान रखने की बात यह है कि इस प्रकार के प्रयोगों में प्रयोगकर्ता की शक्ति भी कम नष्ट नहीं होती ! बालक प्रसव करने के उपरान्त माता बिलकुल निर्बल, निःसत्व हो जाती है, किसी को काटने के बाद सांप निस्तेज, हतवीर्य और शक्ति रहित हो जाता है ! मारण, उच्चाटन के अभिचार करने वाले लोगों की शक्तियां भी भारी परिणाम में व्यय हो जाती हैं और उसकी क्षति-पूर्ति के लिए उन्हें असाधारण प्रयोग करने होते हैं !

जिस प्रकार तन्त्र द्वारा दूसरों का मारण, मोहन, उच्चाटन आदि अनिष्ट हो सकता है उसी प्रकार कोई कुशल तांत्रिक इस प्रकार के अभिचारों को रोक भी सकता है ! उन प्रयोगों को निष्फल भी कर सकता है ! यहां तक कि उस आक्रमण को इस प्रकार उलट सकता है कि वह प्रयोगकर्त्ता पर उलटा पड़े और उसी का अनिष्ट कर दे ! घात, कृत्या, चौकी आदि को कोई भिन्न तांत्रिक उलट दे तो उसके प्रेरिक प्रयोक्ता पर विपत्ति का पहाड़ टूटा हुआ ही समझिए !

उपरोक्त अनिष्टकर प्रयोग अक्सर होते हैं—तन्त्र विद्या द्वारा हो सकते हैं ! पर नीति, धर्म, मनुष्यता और ईश्वरीय विधान की सुस्थिरता की दृष्टि से ऐसे प्रयोगों का किया जाना नितान्त अनुचित और अवांछनीय है ! यदि इस प्रकार की गुप्त हत्याओं का तांता चल पड़े तो उससे लोक-व्यवस्था में भारी गड़बड़ी उपस्थित हो जाय और परस्पर के सद्भाव एवं विश्वास का नाश हो जाय ! हर व्यक्ति दूसरों को आशंका, संदेह एवं अविश्वास की दृष्टि से देखने लगे ! इसलिए तन्त्र विद्या के भारतीय तांत्रिकों ने इन क्रियाओं को निषिद्ध घोषित करके उन विधियों को गोपनीय रखा है !

जैसे आजकल परमाणु बम बनाने के रहस्यों को बड़ी सावधानी से गुप्त रखा जा रहा है ताकि उनकी जानकारी सर्व सुलभ हो जाने से कहीं उसका दुरुपयोग न होने लगे ! उसी प्रकार इन अभिचारों को भी सर्वथा गोपनीय रखने का ही नियम बनाया गया है ! यदि किसी को लगता है कि उसके ऊपर मारण तंत्र का प्रयोग हुआ है तो उसे तत्काल किसी योग्य तांत्रिक से संपर्क करना चाहिये !

मारण तंत्र प्रयोग के लक्षण :

(1) नाड़ी की गति सामान्य से अधिक हो जाती है: जब भी शरीर पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का हमला होता है तो हमारा शरीर उसका प्रतिरोध करता है जिसके फलस्वरूप हमारी धड़कन सामान्य से तेज हो जाती है ! जितना घातक अटैक होगा, नाड़ी की गति उतनी ही ज्यादा तेज हो जाएगी !

(2) श्वास की गति बढ़ जाती है: तांत्रिक हमला होते ही सांस की गति भी बहुत तेज हो जाती है ! घातक हमले की हालत में श्वास की गति इतनी अधिक हो सकती है जितनी की भागदौड़ के बाद भी नहीं होती !

(3) अचानक ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करना: तांत्रिक हमले या साईकिक अटैक में नकारात्मक शक्तियां व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को काबू में करने का प्रयास करती है जिसके चलते व्यक्ति अपनी शक्ति काम नहीं ले पाता और वह अंदर ही अंदर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करने लगता है !

(4) रात को डरावने सपने आते हैं: तांत्रिक हमले के दौरान रात को सोते समय भयावह और डरावने सपने आने लगते हैं ! कई बार ऎसा लगता है जैसे कि आप पर किसी जानवर ने हमला कर दिया या आप कहीं बहुत ऊंचाई से गिर गए हैं !

(5) पलंग के पास पानी रखने से भी पता चलता है: रात को सोते समय पलंग के पास पानी का एक गिलास रख दें और सोते समय मन में सोचे कि आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा उस पानी में जा रही है ! सुबह उस पानी को किसी छोटे पौधे में डाल दें ! ऎसा लगातार आठ दिन तक करें ! आठ दिन में वह पौधा मुरझा जाएगा ! यदि हमला बहुत तेज हुआ तो पौधा 2-3 दिन में ही कुम्हला जाएगा !

(6) तकिए के नीचे नींबू रखें: फल तथा सब्जियां भी नकारात्मक ऊर्जा से अत्यधिक प्रभावित होते हैं ! आप रात को सोते समय एक नींबू अपने तकिए के नीचे रख दें और अपने मन में सोचे कि आपके आस-पास कोई भी नकारात्मक ऊर्जा है तो वह इस नींबू में आ जाएं ! तांत्रिक हमला होने की दशा में सुबह आप उस नींबू को मुरझा हुआ पाएंगे ! उसका रंग भी काला पड़ जाएगा !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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-090 444 14408
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