जानिए ! कुंडली मे मारकेश कब और कैसे काम करता है ? Yogesh Mishra

किसी भी व्यक्ति की कुण्डली के बारह भावों में बारह राशियों सहित नौ ग्रह विद्यमान होते हैं। सात मुख्य ग्रहों के साथ ही दो छाया ग्रहों, राहु व केतु की व्यक्ति के जीवन में महती भूमिका होती है। अलग-अलग राशि तथा लग्न के जातकों के लिए कारक व मारक ग्रह भी अलग-अलग अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार होते हैं। यहां पर हम केवल किसी जातक की जन्म कुण्डली में किस समय कौन सा ग्रह मारक बनेगा, यह बतलायेंगे ।
इससे पहले हम यह जान लेते हैं कि मारक शब्द का ज्योतिषीय अर्थ क्या है?

ज्योतिष शास्त्र में मारक व मारकेश की खूब चर्चा होती है। सामान्यजन के लिए ये एक भारी चिंता का विषय भी बन जाता है कि कहीं उनकी कुण्डली में कोई खास ग्रह मारक तो नहीं?

जबकि हकीकत जाने बिना एक संशय व डर से पीड़ित रहना कहां की बुद्धिमानी है। तो आइए जानते हैं कुछ बेहद जरूरी तथ्य ताकि आपका भ्रम भी दूर हो सके साथ ही आप कथित ज्योतिष विशेषज्ञों के जाल में फंसने से भी बच सकें।
वस्तुतः प्रत्येक जातक की कुण्डली में स्वयं उसके लिए द्वितीयेश तथा सप्तमेश हमेशा मारक का कार्य करते हैं। हालांकि द्वितीयेश तथा सप्तमेश स्वयं में धनेश तथा विवाह के स्वामी भी होते हैं। किंतु यही ग्रह जब शुभ केंद्रेश होकर त्रिशडायेश स्थानों में अथवा छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर बैठे हों तो महान पापी होकर मृत्यु कारक बन जाते हैं।

वहीं चन्द्रमा, बुध, अथवा सूर्य में सप्तमेश या द्वितीयेश होने के बावजूद भी मारकत्व की क्षमता कम होती है।
ऐसे में आम जातक के मन में ये सवाल जरूर उठेगा कि ये क्या बात हुई कि नैसर्गिक शुभ ग्रहों में मारकत्व की अधिक क्षमता जबकि नैसर्गिक पापी व क्रूर ग्रहों में मारकत्व की कम क्षमता होती है?

वस्तुतः यहां पाराशरी का सामान्य सिद्धांत कार्य करता है, जिसकी पुष्टि वृहत पाराशर होरा शास्त्र सहित स्वयं कालामृतकार भी करते हैं।
किसी भी नैसर्गिक शुभ ग्रह (शुक्र, गुरु, सूर्य से दूर बुध, प्रबल चन्द्र) का केंद्र (1, 4, 7, 10वां भाव) में होना उसे महान दोषी बना देता है। इसके उलट नैसर्गिक पापी यानि क्षीण चन्द्र, सूर्य से करीब बुध, राहु, केतु, मंगल व शनि ग्रह जब केन्द्र में होते हैं तो उन पर केन्द्राधिपत्य दोष नहीं आरोपित होता है।
ऐसे में जब सप्तमेश अथवा द्वितीयेश ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो साथ ही उन पर अशुभ, क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति हो और ये ग्रह पाप मध्यत्व धारण किए हुए हों तब जातक की मृत्यु निश्चित हो जाती है।

किंतु यदि उतने ही या उससे कुछ शुभ ग्रहों की दृष्टि भी ऐसे सप्तमेश-द्वितीयेश पर हो तो जातक की मृत्यु की बजाय उसे शारीरिक-मानसिक कष्ट की स्थिति से गुजरना होता है।

इसके अलावा जातक की मृत्यु कब होगी, इसके निर्धारण में ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि वह अल्पायु, मध्यायु अथवा दीर्घायु में से किस श्रेणी में शामिल है।
यदि कोई जातक लग्न, सूर्य लग्न तथा चन्द्र लग्न से दीर्घायु श्रेणी में आता है तो ऐसे में केन्द्राधिपत्य दोष से पीड़ित शुक्र व गुरु भी उसके प्राण नहीं हर सकते। हां, इतना अवश्य है कि इस तरह की दशा-अंतर्दशा के दौरान जातक को बड़ी शारीरिक क्षति उठानी पड़ सकती है।
सामान्य मान्यता के विपरीत यहां आपने देखा कि नैसर्गिक शुभ ग्रह तो प्रबल मारकेश की स्थिति पैदा करने में सक्षम हैं, जबकि वहीं क्रूर व पापी ग्रहों में मारकेशत्व की क्षमता कम होती है। जबकि कथित ज्योतिर्विदों ने राहु, केतु, मंगल तथा शनि को प्रबल मारकेश बताते हुए जनता को हमेशा ही ठगने का काम किया है।

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter