जानिए हम अपना भाग्य स्वयं कैसे नष्ट करते हैं?

हम आज भाग्य की विशिष्ट शक्ति के दुरूपयोग पर चिंतन करते हैं जिसके कारण लगभग सभी साधक और साधारण मनुष्य न केवल अपनी हानि करते हैं बल्कि अपना स्वयं का भाग्य भी नष्ट करते हैं ! विषय गंभीर है पर जटिल नहीं है ! कृपया इन शब्दों में छिपे गहन संदेश को समझने का प्रयास करें और आज से ही आपके प्रत्येक कार्य में एक शुभ परिवर्तन आ सकता है !

आपने देखा होगा की कुछ मित्र, साथी, सहकर्मी, परिवार के लोग लगभग कुछ न कुछ नकारात्मक कहते हैं ! चाहे वह किसी तीसरे व्यक्ति के लिए हो या स्वयं अपने लिए हो ! यदि आप दूसरों से सम्पर्क और बातचीत करते हैं, सम्भव है आप भी कुछ न कुछ नकारात्मक बात या शब्द प्रयोग करते हों ! दूसरों से पहले हमें स्वयं के व्यवहार की समीक्षा करनी है ! शब्दों का रहस्य समझना बहुत जटिल है ! आज के युग में, जहाँ लिखित शब्द के अतिरिक्त व्यक्त किये गए शब्द, रेडियो, टीवी में लगातार कहे जाते हैं !

ध्यान लगाएं तो हम देखेंगे के 24 से 40 प्रतिशत विचार हानिकारक, नकारात्मक होते हैं ! शब्दों में असाधारण अद्भुत शक्तियों का वास होता है ! एक सुन्दर सत्य विचार से परिपूर्ण शब्द से कैसे हम पुनर्जीवित हो उठते हैं तो दूसरी और एक मिथ्या भाषी, कटु शब्द को सुनकर आत्मा उदासीन हो जाता है ! विशिष्ट शब्दों से जड़ित मन्त्रों को द्रष्टा ऋषि जन साधारण को जागरूक रखने और उनके भले हेतु लिख देते थे ! मंत्रो में कहे गए या कोई भी शब्दों में एक स्पंदन और कंपन छिपा होता है ! मंत्र से ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती है जो शरीर और आत्मा में प्रविष्ट हो जाती हैं !

मंत्र शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है। मंत्र में साधक जप का प्रयोग करता है मंत्र जप में उपयुक्त उच्चारण, लय व ताल का उचित अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है। उसी प्रकार प्रत्येक उच्चारण किया गया शब्द मंत्रो की ही भांति , शरीर और मन पर तो क्या सम्पूर्ण वातावरण पर भी प्रभाव डालता है ! उसका प्रभाव सूक्ष्म स्तर पर जाना जा सकता है !

कलयुग के प्रभाव में आकर अधिकांश मनुष्य एक अन्धकार जैसी चैतन्यता में रह रहे हैं ! उन्हें झूठे अंधकारपूर्ण प्रवर्ति में रहने की आदत पड़ जाती है और धर्म से दूर जाकर वह अपने आपका नाश भी करते हैं और दूसरों को भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में हानि पहुंचाते हैं ! ऐसा वह मिथ्या, कुविचारों से जटित शब्दों, कलयुगी हिंसात्मक सम्प्रदायों के प्रभाव कारण अदि प्रयोग द्वारा करते हैं !

प्राचीन युगों में भारत वर्ष के ऋषि न केवल द्रष्टा होते थे वह वैज्ञानिक भी थे, आज का विज्ञान तो केवल भौतिक, विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र या रसायनकी के प्रयोग करते हैं वैदिक कालों के सृष्टा सूक्ष्म विज्ञान के प्रयोगों द्वारा शरीर और आत्मा और समस्त ब्रह्माण्ड से उनके जुड़ाव के रहस्य व्यक्त करते थे !

ऋषियों ने पाया के मनुष्य द्वारा कहे गए शब्द और सोचे गए विचार एक स्थान पर संग्रह होते रहते हैं ! उन्हें जल तत्व सूक्ष्मता से अंतर्लीन या सोख लेता है !

इसीलिए आप पूर्ण चंद्र के दिनों में जल के निकट रहें या स्वत्छ जल को पास रखें तो आपको शांति का अनुभव होगा !

जल हमारे भावों और उच्चारित शब्दों को ग्रहण कर अभिलेखित या रिकॉर्ड कर लेता है ! अब आप कह सकते हैं के इससे आपको क्या हानि है !
हमारा शरीर ६२ से ७6 प्रतिशत जल ही है ! शब्दों के कंपन, स्पंदन से उत्पन्न आवर्ती हमारे मन व् शरीर को तत्काल तत्क्षण प्रभाव डाल कर
हमें स्वस्थ भी बना सकते हैं और रुग्ण और बीमार भी। इसके अतिरिक्त हमारा आर्थिक लाभ होने की अपेक्षा हानि होती है !

अब आप सोचें के हम में से कितने ही अज्ञानी लोग प्रतिदिन अपना स्वास्थ्य क्या अपने भाग्य के टुकड़े करते हैं ! अज्ञानतावश वह अपने बुरे समय को किस्मत, दुर्भाग्य का दोष समझते हैं ! आसपास देखें और बिना कुछ बोले शब्दों पर ध्यान दें !

कितने ही लोग बालकों, माँ, पिता, बहिन, भाई, ईश्वर, पुरुष, स्त्री और दूसरों लोगो को और अपने आपको अपशब्द कहते हैं ! कई लोग एक दिन में 10 से 100 बार अपशब्द और कुशब्द कहते हैं ! ओह मेरा भाग्य ही खराब है, गालियां, वह व्यक्ति ऐसा या वैसा है ! हर शब्द का प्रभाव दूसरों पर तो पड़ता ही है अपने आप पर अधिक पड़ता है !

ध्यान अवस्था में केंद्रित कर सूक्ष्म यात्रा द्वारा मै कहीं भी जाता हूँ और जहाँ किसी भी भाषा में अपशब्द कुशब्द प्रयोग हों, क्रोध, नफरत और हिंसा हो, वहां अग्नि जैसे लाल और धूमिल व काले रंग की तीव्र धारा बहकर वातावरण को प्रभावित करती दिखती है ! और जहाँ प्रेम, श्रद्धा,सुन्दर शब्द कहे जा रहे हैं वहां नीले और बैंगनी रंग की धारा बहती दिखती है ! लाल और धूमिल रंग के वातावरण में धुआं और भय जैसा प्रतीत होता है और नील रंग में शान्ति और प्रेम की तरंगे जैसे ठंडी फुहार जैसे द्रवित करती हैं ! ऐसा आप भी देख सकते हैं ! अभी भी विश्वास न हो तो आज ही एक प्रयोग करें !

दो या चार कांच या प्लास्टिक के कलश या जार या बोतल ले लें ! दो में शुद्ध पेय या कोई जिवंत पौधा डाल दें, दूसरे दो में कुछ चावल डाल दें [चावल एक ऐसा अन्न है जिसमे जल की मात्रा अधिक है] ! या केवल चावल ही ले लें, अब एक में ढक्क्न बंद करने से पहले अपशब्द और कुशब्द कहें और बंद कर उस पर एक परचा लगा कर उस पर वही कुशब्द भी लिखें या लिखें, मुझे तुमसे घृणा है ! जाओ मर जायो इत्यादि ! अब दूसरे जार या बोतल को दूर ले जाकर ढक्क्न लगाने से पूर्व, बहुत प्रेम से कुछ कहें, या कोई भजन लगा दें या सुना दें, और एक पर्चे पर लिखें प्रेम ही जीवन है, आभार, धन्यवाद और कुछ भी प्रेम पूर्वक कहे गए शब्द !

2 से 3 सप्ताह में दोनों प्रकार के तत्वों को ध्यान से देखें। सफ़ेद चावल पहले वाले जार में काले होंगे, उनमे जाला लग सकता है या उनका रंग भूरा या धूमिल हो जायेगा ! दूसरे जार वाले ज्यों के त्यों जिवंत रहेंगे ! शब्दों के स्पंदन और उनके अंतर निहित विचार और अभिलाषा, इच्छा का प्रभाव प्रत्येक आर्गेनिक, जिवंत और जैविक तत्व या जीव पर पड़ता है ! इसका प्रयोग अपने ऊपर या मनुष्यों पर नहीं करें !

अपने मन पर नियंत्रण करें ! दृढ़तापूर्वक एवं आत्म बल द्वारा ही मन पर नियंत्रण संभव है, इसीलिए दृढ़ संकल्प और दृढ़-निश्चय का सर्वोपरि महत्त्व है।

आज से ही किसी भी ऐसे शब्द को उच्चारित न करें न ही सुने और दूसरों को प्रेम पूर्वक निवेदन, विनती या अनुरोध करें और उन्हें शब्दों के प्रभाव का अर्थ समझाएं ! आज आपको मै एक जिम्मेदारी देता हूँ के अगले ४२ दिन तक आप अपने शब्दों पर ध्यान लगाएंगे और साथ ही अपने जानने वाले, मित्रो, परिवार और आसपास के लोगों से विनती करें के कैसे अनुचित शब्दों के प्रयोग से उनका स्वस्थ, मन और शरीर रुग्ण, बीमार तो होता ही है उनका भाग्य उनसे रूठ जाता है !

उन्हें कहें के आपके एक मित्र ने कहा है की हर कहा गया शब्द सत्य होता है ! जो भी कहोगे वैसे ही होगा ! एक छोटी सी वैदिक काल की कथा है ! एक यात्री जंगल से गुजरता थक कर एक वृक्ष के नीचे बैठा सोच रहा था के कहीं से जल मिल जाता प्यास से गला सूखा जा रहा है ! उसी समय वहां जल प्रकट होता है ! उसे पीकर यात्री कहता है चमत्कार, जल के लिए धन्यवाद कुछ खाना भी मिल जाता भूख भी बहुत लगी है, कुछ देर में वहां फल और व्यंजन प्रकट हो जाते हैं !

फिर वह कहता है आभारी हूँ काश यहाँ सोने की कोई जगह होती, वहीँ कुछ पल में वहां सेज बिछ जाती है और वह सो जाता है ! उठने पर वह सोचता है कहीं ये कल्प वृक्ष तो नहीं जो हर इच्छा पूर्ण होती है या फिर कोई मायावी नरभक्षी ने जाल तो नहीं फैलाया। ऐसा कहते ही वहां एक राक्षस प्रकट होता है और यात्री को मारकर खा जाता है ! इस जीवन में हम सोच लें की हम एक कल्प वृक्ष की छाया में बैठे हैं और जो शब्द भी बोलेंगे उनका प्रभाव तत्क्षण तत्काल होता है ! जो भी बोलें वह किसी की या अपनी बुराई न हो, किसी को अपशब्द न हो, अपने भाग्य, ईश्वर या स्वयं को या किसी मित्र या परिवार को न कोसें !

ऐसा करने का अर्थ है आपके साथ जो कहा है वही होने वाला है ! कृपया मेरे विनम्र निवेदन को स्वीकार करें और अपने लिए अभिवचन, सु-वचन और सु-शब्दों का प्रयोग करें। इससे आपके जीवन में कोई भी असफलता सफलता में परिवर्तित होगी, आपके मित्र, सम्बन्धी और अनजान लोगों का सहयोग प्राप्त होगा और कोई दुश्मन, विरोधी नहीं रहेगा ! आपको धन, स्वस्थ, सुख और शिक्षा की प्राप्ति होगी। जब आप अपने सभी मित्रों, परिवार जनो को धीरे धीरे समझायेंगे और उन्हें कुशब्दो के प्रयोग के भयंकर परिणाम बताएँगे कैसे सूक्ष्म शक्तियां उन्हें शक्तिहीन बना रही हैं तो वह भी कदाचित अपने जीवन में सुवचन कहेंगे और उन सभी मित्रो के जीवन में भी प्रेम, धन धान्य और सुखों की वर्षा होगी !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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