जानिए तंत्र का पूरा इतिहास और विस्तार : Yogesh Mishra

तंत्र भारतीय उपमहाद्वीप की एक वैविधतापूर्ण एवं सम्पन्न आध्यात्मिक परिपाटी तक ही सीमित नहीं है ! तंत्र के अन्तर्गत सम्पूर्ण विश्व के विविध प्रकार के विचार एवं क्रियाकलाप आ जाते हैं ! “तन्यते विस्तारयते ज्ञानं अनेन् इति तन्त्रम्” अर्थात ईश्वरीय ज्ञान को जिसके द्वारा तानकर विस्तारित किया जाता है, वही तंत्र है !

इसका इतिहास बहुत पुराना है ! समय के साथ यह परिपाटी अनेक परिवर्तनों से होकर गुजरी है और इसमें सम्प्रति अत्यन्त दकियानूसी विचारों से लेकर बहुत ही प्रगत विचारों का सम्मिश्रण है ! तंत्र अपने विभिन्न रूपों में भारत, नेपाल, चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया, कम्बोडिया, म्यांमार, इण्डोनेशिया और मंगोलिया में विद्यमान रहा है ! भारतीय तंत्र साहित्य विशाल और वैचित्र्यमय साहित्य है ! यह प्राचीन भी है तथा व्यापक भी है !

वैदिक वाङ्मय से भी किसी न किसी अंश में इसकी विशालता अधिक है ! चरणाव्यूह नामक ग्रंथ से वैदिक साहित्य का किंचित् परिचय मिलता है, परन्तु तन्त्र साहित्य की तुलना में उपलब्ध वैदिक साहित्य एक प्रकार से साधारण मालूम पड़ता है !

तांत्रिक साहित्य का अति प्राचीन स्वरूप वैष्णव जीवन शैली के प्रभाव में लुप्त हो गया है ! परन्तु उसके विस्तार का जो परिचय मिलता है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में वैदिक साहित्य से भी इसकी विशालता अधिक थी और वैचित्र्य भी अधिक था !

संक्षेप में कहा जा सकता है कि परम अद्वैत विज्ञान का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण और विवरण जैसा तंत्र ग्रंथों में है, वैसा किसी शास्त्र के ग्रंथों में नहीं है ! साथ ही साथ यह भी सच है कि उच्चाटन, वशीकरण, प्रभृति, जैसी क्षुद्र विद्याओं का प्रयोग विषयक विवरण भी तंत्र में मिलता है ! स्पष्टत: वर्तमान हिंदू समाज वैष्णव जीवन शैली के प्रभाव में वेद-आश्रित होने पर भी व्यवहार-भूमि में विशेष रूप से तंत्र द्वारा ही नियंत्रित हो रहा है ! .

हिन्दू तांत्रिक देवता, बौद्ध तान्त्रिक देवता, जैन तान्त्रिक चित्र, कुण्डलिनी चक्र, यंत्र एवं 11वीं शताब्दी का सैछो (तेन्दाई तंत्र परम्परा का संस्थापक तन्त्र आगम ग्रन्थ हैं ! तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है ! तन्त्र-परम्परा एक हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा तो है ही, जैन, सिख, तिब्बत की बोन, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा में भी तंत्र ही पाया जाता है !

भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली का सम्बन्ध कहीं न कहीं तन्त्र से ही है ! हिन्दू परम्परा में तन्त्र मुख्यतः शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से फिर कुछ सीमा तक वैष्णव परम्परा से जुड़ा है ! शैव परम्परा में तन्त्र ग्रन्थों के वक्ता साधारणतयः शिवजी हैं ! बौद्ध धर्म का वज्रयान सम्प्रदाय अपने तन्त्र-सम्बन्धी विचारों, कर्मकाण्डों और साहित्य के लिये प्रसिद्ध है !

तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है – “तनोति त्रायति तन्त्र” ! जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है ! हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं ! यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय “गुह्य या गूढ़ साधनाओं” से किया जाता रहा है ! तन्त्रों को वेदों के काल के पूर्व की रचना माना जाता है जिसका विकास अनादि काल में हुआ था !

साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का भी समावेश होता है ! यह विषयवस्तु की दृष्टि से धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्राचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं !

यूरोपीय विद्वानों ने अपने उपनिवेशवादी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तन्त्र को ‘गूढ़ साधना’ या ‘साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड’ बताकर भटकाने की कोशिश की थी और इस पर विधि बना कर प्रतिबन्ध भी लगाया था ! वैसे तो तन्त्र ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य-मुख्य तन्त्र 64 कहे गये हैं ! तन्त्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है ! इसका प्रमाण हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती आदि धर्मों की तन्त्र-साधना के ग्रन्थ व केन्द्र आज भी उपलब्ध हैं ! भारत में प्राचीन काल से ही बंगाल, बिहार, और राजस्थान तन्त्र के गढ़ रहे हैं ! .

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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