जानिये मुहर्रम,ताजिया का इतिहास कैसे एक बीमार लँगड़े ने की थी इसकी शुरुवात । जरूर पढ़ें ।

मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्‌ का पहला महीना है। पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों व घरों में इबादत की जाती है। भारत में ताजियादारी एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।

भारत में ताजिए की शुरुआत बरसों पहले शिया मुसलमान तैमूर लंग ने की थी । तैमूर बरला वंश का तुर्की योद्धा था इसके पिता ने शिया इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था | यह दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु था लेकिन इसका सपना था कि यह भी सिकन्दर की तरह विश्व विजयता बने, जबकि सिकंदर की तरह तैमूरलंग राजपरिवार में पैदा नहीं हुआ था, बल्कि उनका जन्म एक आम परिवार में हुआ था | तैमूरलंग एक मामूली चोर था, जो मध्य एशिया के मैदानों और पहाड़ियों से भेड़ों की चोरी करता था | चंगेज़ ख़ान की तरह तैमूरलंग के पास कोई सेना भी नहीं थी लेकिन उसने आम झगड़ालू चोरों की मदद से एक बेहतरीन सेना बना ली थी जो किसी चमत्कार से कम नहीं था |

इसका जन्म सन्‌ 1336 ई में समरकंद के नजदीक केश गांव ट्रांस ऑक्सानिया (अब उज्बेकिस्तान-उजबेकिस्तान) में हुआ था | इसे क्रूर तनाशाह चंगेज खां के पुत्र चुगताई ने युद्ध के लिये प्रशिक्षित किया था | जन्म के समय उनका नाम तैमूर रखा गया था. तैमूर का मतलब लोहा होता है | पर युवावस्था में प्रशिक्षण के दौरान उनके शरीर का दाहिना हिस्सा बुरी तरह घायल हो गया और वह दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु हो गया | इसके बाद इसे लोग तैमूर लंग कहने लगे | तैमूर लंग तुर्की शब्द है, जिसका अर्थ तैमूर लंगड़ा होता है ।

लेकिन अपाहिज होने के बाद भी वह आम झगड़ालू चोरों की मदद से बनी सेना से फारस, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया और रूस के कुछ भागों को जीतते हुए सन् 1398 में 98000 सैनिक के साथ भारत पहुंचा । उस समय दिल्ली के शासक मेहमूद तुगलक से युद्ध कर उन्हें हरा कर दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया और उसने स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया ।

तैमूर लंगड़ा शिया मुसलमान था और वह मुहर्रम माह में हर साल इराक कर्बला में बने इमाम हुसैन के रोजे (कब्र) पर जरूर जाता था, लेकिन बीमारी के कारण एक साल नहीं जा पाया। 68 वर्षीय तैमूर लंगड़ा हृदय रोग, मधुमेह,उच्च रक्तचाप का रोगी था, इसलिए हकीमों ने उसे सफर के लिए मना किया था।

तैमूर लंगड़े को खुश करने के लिए दरबारियों ने उस जमाने के कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन के मज़ार (कब्र) की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया। कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से इमाम हुसैन की ‘कब्र’ का ढांचा तैयार किया। इसे तरह-तरह के फूलों से सजाया गया। इसी को ताजिया नाम दिया गया। इस ताजिए को पहली बार 801 हिजरी में तैमूर लंग के महल परिसर में रखा गया।

यह तैमूर लंगड़े को बहुत ही पसन्द आया जल्द ही उसने पूरे राज्य में इसे बनाने व मनाने का आदेश जारी किया | तैमूर लंगड़े को खुश करने के लिए राज्य की अन्य रियासतों में भी इस परंपरा की सख्ती के साथ शुरुआत हो गई। खासतौर पर दिल्ली के आसपास के जो शिया संप्रदाय के नवाब थे, उन्होंने तुरंत इस परंपरा पर कठोरता से अमल शुरू कर दिया। इस तरह तैमूर लंगड़े के ताजिए की धूम बहुत जल्द ही पूरे राज्य में मच गई। जो श्रद्धालु जनता इराक कर्बला नहीं जा सकते थे वह इन ताजियों की जियारत (दर्शन) के लिए पहुंचने लगे।

तैमूर अपनी शुरू की गई ताजियों की परंपरा को ज्यादा देख नहीं पाया और गंभीर बीमारी के कारण 1404 में वह समरकंद लौट गया और 19 फरवरी 1405 को ओटरार चिमकेंट के पास (अब शिमकेंट, कजाकिस्तान) में तैमूर का इंतकाल (निधन) हो गया। लेकिन तैमूर के जाने के बाद भी भारत में यह परंपरा शिया मुसलमान नवाबों ने जारी रखी।
तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को अखण्ड भारत (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार)) में मनाया जा रहा है। जबकि खुद तैमूर लंगड़े के देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान में या शिया बहुल देश ईरान में ताजियों की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। लेकिन तब से भारत के मुसलमान और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों की परंपरा को मानते आ रहे हैं।

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter