गुरु का कर्तव्य मात्र समाधान देना नहीं है, बल्कि नये प्रश्न खड़ा करना भी है ! Yogesh Mishra

सामान्य अवधारणा है कि गुरु का कर्तव्य शिष्य की शंकाओं का समाधान करना है !इसीलिए शिष्य की शंकाओं के समाधान हेतु तरह-तरह के उपनिषदों का निष्पादन हुआ ! किंतु यह विचारधारा मेरे दृष्टिकोण से शिष्य के विकास में सबसे बड़ी अवरोधक है ! क्योंकि यदि शिष्य अपनी सभी शंकाओं के समाधान के लिए गुरू पर निर्भर हो जाएगा तो उसके अपने विश्लेषण करने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी !

और जब शिष्य में विश्लेषण करने की क्षमता नहीं रह जायेगी, तो ऐसा शिष्य न तो समाज के लिए उपयोगी होगा और न ही अपने गुरु को यश दिला सकेगा ! इसलिए यह सर्वथा उचित और आवश्यक है कि शिष्य की जिज्ञासा को देखते हुए उसकी बौद्धिक क्षमता के अनुसार गुरु उसके शंकाओं का समाधान करें ! इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि गुरु उसके अंदर विश्लेषणात्मक बुद्धि के विकास के लिए नये प्रश्न भी खड़े करे !

मतलब मेरे कहने का तात्पर्य है यह है कि हर गुरु जानता है कि उसके शिष्य के अंदर कितनी विश्लेषणात्मक बुद्धि है ! अतः गुरु का यह कर्तव्य है कि वह अपने शिष्य के शंकाओं का समाधान करने के साथ-साथ यदि वह अपने शिष्य को समाज के लिए उपयोगी बनाना चाहता है तो उस शिष्य की बौद्धिक क्षमता के अनुसार उसके मस्तिष्क नये प्रश्न अवश्य खड़ा करें !

इससे शिष्य में उत्तर प्राप्ति के लिये जिज्ञासा पैदा होगी और जब शिष्य में जिज्ञासा पैदा होगी तब वह नये अध्ययन की तरफ उन्मुख होगा और जब वह नये अध्ययन की ओर उन्मुख होगा तो उससे उसके बुद्धि का विकास होगा और विकसित बुद्धि का व्यक्ति निश्चित रूप सबके लिये हितकारी होगा !

अतः गुरु को यदि अपने शिष्य को संपन्न, यशस्वी और समाज में सम्मानित बनाना है तो उसके समक्ष शंका समाधान के साथ-साथ नये प्रश्न भी खड़े करना चाहिए ! यही सच्चे गुरु का कर्तव्य है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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