जानिये क्या ईश्वर दुखियों की उत्पत्ति है ! Yogesh Mishra

आखिर दुखियों को ही क्यों मिलता है भगवान !! या दूसरे शब्दों में सुख की कमाना ही व्यक्ति को भक्त बनती है !!

सुख प्राप्त करना हर व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता है ! वह सुख चाहे शरीर के संबंध में हो, धन के संबंध में हो, कुल-वंश प्रतिष्ठा के संबंध में हो या किसी भी तरह का कोई भी सुख हो हर व्यक्ति उसे प्राप्त करना चाहता है !

लेकिन हर व्यक्ति को सभी तरह के सारे सुख जीवन में प्राप्त नहीं होते हैं ! तब कुछ व्यक्ति जिन्हें कुछ छोटे-छोटे विशेष तरह के सुख प्राप्त होता हैं ! तो प्राय: वह व्यक्ति उस छोटे से सुख में ही संतुष्ट होकर अपना जीवन यापन करने लगता है !

किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जिन्हें जीवन में इतना भी सुख प्राप्त नहीं होता है कि वह सुख के छोटे से अंश में ही अपना जीवन यापन कर सकें ! परिणाम उस समय वह अपने सुख की लालसा के लिए काल्पनिक दुनिया का सहारा लेना शुरू कर देता है !

और विश्व के सभी धर्म ग्रंथ व्यक्ति में काल्पनिक सुख की आशा जागते हैं और व्यक्ति सुख की काल्पनिक आशा में धर्म ग्रंथों का अनुकरण करना शुरू कर देता है !

धर्म ग्रंथों में प्राय: वह कहानियां होती हैं जो व्यक्ति को एक गहरी आस्था के साथ काल्पनिक सुख देती हैं ! यह कहानियां कभी भी वास्तविक रूप में घटित नहीं हो सकती हैं ! जैसे अचानक कारावास के सारे कर्मचारी गहरी नींद में सो गये और व्यक्ति उसका लाभ उठाकर कारावास के बाहर निकल गया !

या न्यायालय में जब कोई भी व्यक्ति उसका साथ नहीं दे रहा था, तभी अचानक एक अजनबी व्यक्ति प्रकट हुआ और उसने उस व्यक्ति के पक्ष में न्यायालय में इस तरह की गवाही दी कि वह व्यक्ति दोषमुक्त हो गया !

या फिर जब सारे डॉक्टर किसी व्यक्ति के रोग का इलाज नहीं कर पा रहे थे ! तभी अचानक एक ऐसा डॉक्टर आया जिसको पहले कभी किसी ने नहीं देखा था और उस डॉक्टर के दर्शन या स्पर्श मात्र से वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया आदि आदि ! इस तरह की बहुत सी कल्पना में सुख देने वाली काल्पनिक कहानियों का वर्णन प्राय: विश्व के सभी धर्म ग्रंथों में मिलते हैं !

जब व्यक्ति सुख प्राप्त करने के लिए बार-बार इन धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता है और अपने मस्तिष्क में एक ऐसे व्यक्ति या ऊर्जा की प्रबल कल्पना कर लेता है जो उसके उसको सुख देने वाली होती है तो व्यक्ति को अपने आप में बहुत बड़ी राहत मिलती है और व्यक्ति यह मान लेता है कि उस पर ईश्वर की कृपा होने लगी है !

आपने कभी विचार किया कि सभी भक्त पूर्व में किसी न किसी अत्यंत मानसिक कष्ट के दौर से जरुर क्यों गुजते हैं ! किसी की मां मर गई होती है, किसी का बेटा मर गया होता है, किसी का पति मर गया होता है या किसी की कोई समस्त संपत्ति किसी अन्य ने हड़प ली है या कोई बहुत गहरी बीमारी से उठा होता है, तो कोई भयंकर दुर्घटना का शिकार हो चुका होता है या कोई कभी पूर्व में आशा के विपरीत कारावास आदि दुखों को भोग चुका होता है आदि आदि !

अब प्रश्न यह है के सारे के सारे भक्त पूर्व में किसी न किसी गहन मानसिक प्रताड़ना के शिकार क्यों हुये होते हैं ! उत्तर स्पष्ट है कि जब व्यक्ति गहने मानसिक प्रताड़ना का शिकार होता है तो मानव मस्तिष्क अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए मस्तिष्क के अंदर ही एक ऐसी काल्पनिक दुनिया का निर्माण कर लेता है ! जिस काल्पनिक दुनिया के सुख से मानव मस्तिष्क अपने आप को सुरक्षित कर लेता है और मनुष्य सुख की लालसा में इस काल्पनिक दुनिया से बाहर नहीं आना चाहता है ! यही से भक्ति का आरंभ होता है !

समस्त सृष्टि कार्य और कारण व्यवस्था से चलती है ! आज जो भी कार्य सकारात्मक या नकारात्मक आपके साथ हो रहे हैं, उनके पीछे अवश्य कोई न कोई कारण होता है ! यदि कारण से अलग हटकर कार्य के परिणाम बदलने लगे तो प्रकृति की पूरी की पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी !

भगवान श्री कृष्ण इस बात को जानते थे इसीलिए उन्होंने कभी भी अभिमन्यु को “दीर्घायु” होने का आशीर्वाद नहीं दिया ! यदि भगवान श्री कृष्ण कार्य कारण की व्यवस्था के परे कोई भी कार्य करने में विश्वास रखते तो सबसे पहले अपने सबसे प्रिय भांजे अभिमन्यु को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देते !

इसी तरह रावण से बड़ा ज्योतिषी और तांत्रिक कोई नहीं हुआ है ! कहा जाता है कि रावण ने सारे ग्रह नक्षत्रों को अपनी अपने तपोबल से नियंत्रित कर रखा था ! लेकिन इसके बाद भी जब राम के साथ निर्णायक युद्ध हुआ तो ज्योतिष, तंत्र और अध्यात्म के प्रकांड ज्ञाता के सामने उसके संपूर्ण वंश का विनाश हो गया और वह कुछ नहीं कर पाया !

भगवान राम पर जब कार्य और कारण व्यवस्था की गति आरंभ हुई तो उन्हें भी राजकीय सुख छोड़कर 14 वर्ष तक जंगलों में भटकना पड़ा ! इसी बीच उनके पिता का देहांत हो गया और पत्नी का अपहरण हो गया !

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि समस्त सृष्टि कार्य और कारण व्यवस्था के तहत चलती है ! हम ईश्वर की आराधना से मात्र अल्पकालीन एक काल्पनिक सुख प्राप्त कर लेते हैं ! इसके अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं !

इसलिए व्यक्ति को प्रकृति की कार्य कारण व्यवस्था को समझते हुए अपने सुख के लिए सही समय पर सही प्रक्रिया से पुरुषार्थ करना चाहिये ! प्रारब्ध वश कार्य कारण की व्यवस्था के तहत यदि कुछ प्राप्त हो जाये तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर अपना संपूर्ण पुरुषार्थ का त्याग ईश्वर के भरोसे नहीं छोड़ देना किसी भी द्रष्टिकोण से उचित नहीं है !

दूसरे शब्दों में कहा जाये तो आज तक जिनको भी हमने परम भक्त माना है वह पूर्व में किसी न किसी कष्ट के कारण अपना मानसिक संतुलन खो चुके थे और उस असहनीय कष्ट से बाहर निकलने के लिये उन्होंने ईश्वर की आराधना की !

उन्होंने ईश्वर को अपने मस्तिष्क में अपनी कल्पना शक्ति के अनुसार विकसित किया और यही विकसित ईश्वर उनका आराध्य बन गया !! ऐसा मनोविशेषज्ञों का कहना है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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