“पुरुषार्थ” की मायावी पूजा ! : Yogesh Mishra

“पुरुषार्थ” शब्द को देखकर ऐसा लगता है कि इस शब्द पर मात्र पुरुषों का ही अधिकार है ! लेकिन ऐसा है नहीं बल्कि ऐसा लगता है कि प्राचीन काल में जब गृह कार्य की जिम्मेदारी स्त्रियों के पास होती थी और घर के बाहर के कार्य की सारी जिम्मेदारी पुरुषों के पास होती थी ! जिसमें कृषि करना, पशु चराना, व्यापार-उद्योग करना आदि आदि शामिल था ! तब संसाधन विहीन अवस्था में विपरीत परिस्थितियों में कार्य करने के लिये पुरुष को प्रेरित करने हेतु उसके समानांतर शब्द “पुरुषार्थ” की खोज हुई होगी !

जिसका मतलब यह रहा होगा कि पुरुष होने का अर्थ ही क्या है यदि तुम विपरीत परिस्थितियों में कार्य न कर सको !

किंतु देश, काल, परिस्थिति के बदलने के साथ-साथ स्त्रियां भी घरेलू कार्य से आगे बढ़कर पुरुष के साथ बाहरी कार्यों में भी सहयोग करने लगी ! इसलिये संसार के बाहरी कार्यों की जो नकारात्मक परिस्थितियां थीं ! उनका सामना स्त्रियों को भी करना पड़ा ! जिन विपरीत परिस्थितियों में पुरुष कार्य करता था ! उन्हीं विपरीत परिस्थितियों में जब स्त्रियां भी कार्य करने लगी तब उनके लिये किसी नये शब्द की खोज नहीं की गई बल्कि पुरुषों के लिये निर्मित “पुरुषार्थ” शब्द का ही प्रयोग स्त्रियों के संदर्भ में किया जाने लगा !

अतः मेरे कहने का तात्पर्य है कि पुरुषार्थ शब्द भले ही पुरुषोचित हो ! किंतु इस शब्द पर पुरुषों के समान ही बराबर का अधिकार स्त्रियों का भी है ! अर्थात समाज के अंदर जब कभी भी किसी भी विपरीत परिस्थिति में किसी निर्णय या संघर्ष की आवश्यकता होती है ! तब वहां पर व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों को ही पुरुषार्थ शब्द संघर्ष के लिये प्रेरित करता है !

इसलिये किसी भी पलायनवादी दृष्टिकोण के रहते हुये यह मान लेना कि “पुरुषार्थ” शब्द बस पुरुषों के लिये है और स्त्रियां तो अबला, निर्बल, पराश्रित, पराधीन हैं ! वह विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष नहीं कर सकती हैं ! ऐसी सोच रखना ही समाज को अपंग बना देता है !

उदाहरण के लिये रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी देवी, लक्ष्मी सहगल, कनकलता बरुआ, दुर्गा भाभी, विजय लक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू जैसे हजारों उदाहरण मिल जायेंगे ! जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में पुरुषों से भी ज्यादा श्रेष्ठ कार्य करके देख लाया है !

यह उदाहरण यह सिद्ध करता है कि पुरुषार्थ शब्द पर मात्र पुरुषों का ही अधिकार नहीं है ! बल्कि इस पर स्त्रियों का भी समान अधिकार है ! आज बड़े-बड़े कार्यालय, फैक्ट्री, धार्मिक संस्थान, सामाजिक कार्य, न्यायालय, सेना आदि में स्त्रियां बढ़-चढ़कर अपने पुरुषार्थ का प्रदर्शन कर रही हैं !

इसलिये इस भ्रम में मत रहिये कि पुरुषार्थ शब्द मात्र पुरुषों के लिये है क्योंकि यह एक ऐसा मायावी शब्द है जिस पर स्त्री ही नहीं देवी, देवता, यक्ष, किन्नर, राक्षस, असुर, दैत्य, दानव आदि सभी का सबका समान अधिकार है ! यह शब्द हर देश, धर्म और जाति में अलग-अलग नामों से पूजा जाता है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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