जानिए कैसे राजनीतिक पार्टियों के चुनाव चिन्ह लोकतंत्र के हत्यारे हैं !

राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के संस्थापक प्रताप चंद्रा कहते हैं कि चुनाव चिन्हों के बल पर चुनाव जीतने का जो अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक चलन रहा है, वह समाप्त हो जाएगा और वही प्रत्याशी जीतेगा जिसका चेहरा उसके क्षेत्र में जनप्रिय होगा ! सबसे पहले बिहार चुनाव में ईवीएम पर प्रत्याशियों की तस्वीर लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई ! इस बार विभिन्न राज्यों में हुए और हो रहे विधानसभा चुनावों में यह प्रक्रिया जारी है ! ईवीएम पर अभी प्रत्याशियों की ब्लैक एंड व्हाइट फोटो लग रही है, ईवीएम पर प्रत्याशियों की रंगीन तस्वीर लगाने के लिए आयोग से बातचीत चल रही है !

लोकतंत्र में नागरिक अपना जन-प्रतिनिधि चुनता है और उससे अपेक्षा करता है कि वह जनहित के प्रति जवाबदेह होगा ! लेकिन होता इसका ठीक उल्टा है ! जनता द्वारा चुना गया जन-प्रतिनिधि बाद में दल-प्रतिनिधि बन जाता है और उसकी जवाबदेही जनता के प्रति न होकर दल के प्रति हो जाती है ! जनता का हित देखने के बजाय उसके लिए दल का हित प्राथमिक हो जाता है ! विडंबना यह है कि स्वतंत्र, शुद्ध और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए बना चुनाव आयोग इसे नजरअंदाज करता रहा है !

चुनाव आयोग ने शुद्ध और निष्पक्ष चुनाव कराने के नाम पर प्रत्याशियों के लिए चुनाव-चिन्हों का निर्धारण और आरक्षण कर दिया ! इससे चुनाव की पूरी प्रक्रिया अशुद्ध और पक्षपातपूर्ण बन गई ! संविधान द्वारा प्रदत्त अवसर की समानता के अधिकार का खुला हनन होता रहा और भारतीय लोकतंत्र चुनाव-चिन्हों का गुलाम होकर रह गया ! आरक्षित-चुनाव-चिन्ह की सत्ता पर नियंत्रण की सुनिश्चितता के कारण ही

कॉरपोरेट घराना, पूंजीपति और औद्योगिक जगत इनका संरक्षण करने लगा, आर्थिक मदद देने लगा और संसाधन मुहैया कराने लगा ! इसके एवज में उसने अपने लाभ के लिए आर्थिक नीतियों को प्रभावित किया, भ्रष्टाचार और अनियमितता के बूते राजनीतिक दल पर दबाव बनाकर लाभ कमाया ! यही वजह है कि अंग्रेजों के जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के बजाय राजनीतिक पार्टियां कंपनियों की तरह देश पर राज करने लगीं ! कभी कांग्रेस की सरकार के रूप में तो कभी भाजपा की सरकार के रूप में !

कभी सपा सरकार तो कभी बसपा सरकार के रूप में ! भारतीय लोकतंत्र की विडंबना यही है कि कोई भी सरकार सम्पूर्ण भारत की सरकार आज तक नहीं बन सकी ! आरक्षित चुनाव-चिन्हों पर जीतने वाले प्रतिनिधियों की गिनती के आधार पर जो ज्यादा हुए, उनकी पार्टी ने सरकार बना ली ! फिर बचे लोगों ने खुद को विपक्ष मान लिया और इसी तरह राजकाज चलता रहा ! कभी यह सत्ता में तो कभी वह ! दलों के आरक्षित चुनाव चिन्ह ही टिकट के रूप में नीलाम होते रहे और राजनीति देश में भ्रष्टाचार को पालती-पोसती रही !

चुनाव लड़ने की योग्यता संविधान के अनुच्छेद-84 में निर्धारित है ! संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार वही व्यक्ति चुनाव लड़ेगा जो भारत का नागरिक हो, मतदाता हो और बालिग हो ! स्पष्ट है कि कोई दल, निकाय या गुट इस निर्धारण की परिभाषा के दायरे में नहीं आता ! यही वजह है कि दलों का नाम ईवीएम पर नहीं छपता है !

फिर ईवीएम पर चुनाव चिन्ह कैसे और क्यों छपने लगे? यह एक गंभीर सवाल है ! भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75 में सरकार बनाने की व्यवस्था दी गई है ! इस अनुच्छेद में यह कहीं नहीं कहा गया है कि जिस समूह के पास प्रतिनिधि ज्यादा होंगे उसे सरकार बनाने के लिए बुलाया जाएगा ! बल्कि यह कहा गया है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करेंगे और प्रधानमंत्री अपना मंत्रिमंडल चुनेगा !

बहरहाल, प्रताप चंद्रा कहते हैं कि समानता और अवसर की समता के लिए पिछले कई साल से सतत्‌ संघर्ष के बाद इस मुकाम तक पहुंचा कि भारी जन-दबाव में चुनाव आयोग ने यह फैसला किया कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में इलेक्ट्र्रॉनिक वोटिंग मशीन पर सभी प्रत्याशियों की फोटो लगाई जाएगी ! संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक भविष्य में ईवीएम पर पार्टी के चुनाव चिन्ह के बजाय केवल प्रत्याशी की फोटो लगने की उम्मीद है ! इससे यह फायदा होगा कि प्रत्याशी अपने क्षेत्र के मतदाताओं से अपनी फोटो को ही अपना चुनाव-चिन्ह बताकर प्रचार कर सकेंगे और जनता के बीच परिचित चेहरे को ही स्वीकार्यता मिल सकेगी !

ईवीएम पर चिन्ह (आकृति) लगाने के पीछे अशिक्षित मतदाताओं को सुविधा प्रदान करने का तर्क था ! इस तर्क को भी आगे बढ़ाएं तो ईवीएम पर प्रत्याशी की फोटो अशिक्षित मतदाताओं के लिए अधिक सुविधाजनक हो जाएगी ! हालांकि देश में अब निरक्षरता का प्रतिशत भी काफी कम रह गया है ! ईवीएम पर प्रत्याशी की फोटो लगने से चुनाव चिन्ह की भूमिका समाप्त होने की दिशा में है ! चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के लिए जनता के बीच रहकर काम करना जरूरी हो जाएगा ! ईवीएम से चुनाव चिन्ह हटते ही जनता द्वारा संवैधानिक सरकार बन पाएगी और जनहित में काम हो सकेगा !

प्रताप चंद्रा कहते हैं कि प्रधान के चुनाव में चुनाव चिन्ह नहीं लगाया जाता, ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि बिना चुनाव चिन्ह का कोई व्यक्ति प्रधान तो बन सकता है लेकिन प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकता ! उन्होंने कहा कि ईवीएम से चुनाव चिन्ह हटाने और प्रत्याशी का चेहरा लगाए जाने का अभियान एक व्यापक आंदोलन की शक्ल में तब्दील हुआ ! यही वजह है कि राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के बैनर से शुरू हुए अभियान को लोकतंत्र मुक्ति आंदोलन से जोड़ा गया !

राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता योगेश कुमार मिश्र कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां न चुनाव लड़ती हैं और न लड़ सकती हैं ! इसीलिए पार्टियों का नाम कभी वोटिंग मशीन पर नहीं होता ! फिर भी सरकार बनाने के लिए पार्टियां ही आगे आ जाती हैं और जन प्रतिनिधि काफी पीछे छूट जाता है ! चुनाव आयोग ने पार्टियों के लिए चुनाव चिन्ह आरक्षित कर और उसे ईवीएम पर लगा कर लोकतंत्र का काफी नुकसान किया है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter