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मनुष्य को नये जीवन दर्शन की आवश्यकता क्यों है : Yogesh Mishra

मानवता सतत विकासशील रही है ! इसी वजह से मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं के मुकाबले क्रमशः आधुनिक और विकसित होता चला गया ! जब किसी प्रजाति में निरंतर विकास होगा, तो स्वाभाविक है कि उस प्रजाति की जीवनशैली भी निरंतर परिवर्तित…

अपने आनंद को कहां ढूंढ़े : Yogesh Mishra

व्यक्ति सुख, संतुष्टि और आनंद के लिए पूरे जीवन इधर-उधर भटकता रहता है ! कोई धन कमाने में आनंद ढूंढता है, तो कोई शारीरिक वासना की पूर्ति में ! कोई व्यक्ति यश में आनंद ढूंढता है तो कोई भक्ति में…

क्या संसार से सभी धर्मों को विदा कर देना चाहिये : Yogesh Mishra

धर्म का निर्माण समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए हुआ था, किन्तु कालांतर में धर्म के मुखिया लोगों की विलासिता को देखकर लोगों ने धर्म की ओट में धन कमाने के निर्णय लिया ! धीरे धीरे समाज का…

मोक्ष्य का वास्तविक मार्ग : Yogesh Mishra

बंधन का कारण पूंछने पर अष्टावक्र ने अपने पहले प्रवचन में ही राजा जनक से कहा कि “हे राजा आप तो पहले से ही मुक्त हैं ! आपने तो मात्र इस संसार को पकड़ रखा है !” यह एक वाक्य…

काम और यौन-आनन्द में अंतर : Yogesh Mishra

काम और यौन आनंद दोनों अलग अलग विषय हैं किन्तु ज्ञान के अभाव में समाज ने अज्ञानता वश यौन आनंद को ही काम ऊर्जा मान लिया है ! यहीं से सारे विकार और विकृतियां समाज में फैलती चली गई !…

काम को लेकर गलत दृष्टिकोण : Yogesh Mishra

शैव जीवन शैली में काम और क्रोध को एक ऊर्जा माना गया है जबकि वैष्णव जीवन शैली में काम और क्रोध को एक विकार माना गया है और काम को लेकर सारी गलती यही से शुरू हुई ! अपने को…

क्रोध ही आध्यात्मिक व्यक्ति की पहचान है : Yogesh Mishra

क्रोध और आध्यात्मिक व्यक्ति के मध्य चोली दामन का साथ होता है ! अर्थात कहने का तात्पर्य है कि यदि आध्यात्मिक व्यक्ति यदि क्रोधी नहीं है तो इसका तात्पर्य यह है कि उसके आध्यात्मिक व्यक्ति ने अभी पूर्णता को प्राप्त…

ग्रंथों में सत्य कहाँ है : Yogesh Mishra

सत्य और सिद्धांत सदैव सापेक्ष होते हैं ! इनका कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता है ! एक काल में कहा गया वाक्य सत्य हो सकता है किंतु दूसरे काल में वही वाक्य असत्य हो जाता है ! इसी तरह कर्म…

जानिए गुरु का अर्थ : Yogesh Mishra

हर व्यक्ति अनादि काल से किसी न किसी योग्य गुरु का शिष्य बनना चाहता है ! पर अब तो उलटी गंगा बह रही है ! अब व्यक्ति शिष्य बनना चाहे या न चाहे गुरु ही यह दावा करते हैं कि…

स्व का बोध : Yogesh Mishra

जिसके अंदर कोई गहराई नहीं, उसे ही बाहर अपने विस्तार हेतु आडंबर की आवश्यकता है ! आडंबर भी विस्तार का ही एक रूप है ! दुनिया में सबसे कठिन का “यथास्थित” में स्थिर हो जाना है ! इसी को सहज…