जानिये ब्रह्मास्मि क्रिया योग साधना के चमत्कार | Yogesh Mishra

अहं ब्रह्मास्मि – यजुर्वेदः की व्याख्या करने वाले बृहदारण्यकोपनिषत् अध्याय 1 ब्राह्मणम् के 4 मंत्र 10 में इस महावाक्य का रहस्य बतलाया गया है ! जिसका सारांश है- अहं ब्रह्मास्मि अर्थात ‘मैं ही ब्रह्म हूं !’

यहाँ ‘अस्मि’ शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है ! क्योंकि जीव की आत्मा उसी परमात्मा का अंश है ! जब जीव यह अनुभव कर लेता है, तब वह उसी परमात्मा जैसा बनने के मार्ग पर निकल पड़ता है और एक समय तक साधना करते-करते वह जीव अपने अन्दर ब्रह्म तत्व को प्रगट कर लेता है !

वहीँ से उसके जीवन में चमत्कार घटने लगता है ! कालान्तर में जीव और ब्रह्म दोनों के मध्य का द्वैत भाव नष्ट हो जाता है और जीव अपने ब्रह्म स्वरूप को जानकर ‘अहं ब्रह्मास्मि’ कह उठता है !

इस ब्रह्म बोध के अनुभूति की यात्रा ही “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” साधना है ! इस प्रक्रिया की उत्पत्ति ब्रह्म दृष्टा महर्षिओं ने की थी किंतु इस प्रक्रिया का प्रसार आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था ! जो की गुरु शिष्य परंपरा के तहत बहुत लंबे समय तक हमारे सनातन धर्मी मठों में प्रयोग की जाती रही है किंतु कालांतर में समाज में साधना न करने के कारण यह साधना प्रक्रिया विलुप्त हो गई !

सनातन ज्ञान पीठ ने इस प्रभावशाली साधना प्रक्रिया पर अनेक शोध किये हैं और इसके आश्चर्यजनक परिणाम से प्रभावित होकर इसे पुनः समाज में प्रचारित करने के उद्देश्य से इस प्रक्रिया का प्रचार प्रसार कर रही है !

यह साधना प्रक्रिया व्यक्ति को सभी कुछ जो इस संसार में सम्मान के साथ जीने के लिए आवश्यक है, वह प्रकृति से उपलब्ध करवाती है ! अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति इस साधना प्रक्रिया को अपनाता है उसे संसार में किसी भी पदार्थ की कमी नहीं होती है ! व्यक्ति अपनी आकांक्षा और कामना के अनुरूप प्रकृति के सहयोग से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जो वह चाहता है !

यह साधना प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं है ! अतः इसे समाज का हर व्यक्ति कर सकता है और किसी भी वर्ग के लिए यह निषेध नहीं है ! परिणामत: मनुष्य ही नहीं अन्य कोई भी जीव-जंतु वृक्ष-पौधे आदि भी इस साधना प्रक्रिया से लाभान्वित हो सकते हैं ! देखा गया है कि यदि गौशाला में इस साधना प्रक्रिया को किया जाता है तो गाय अधिक दूध देने लगती है और यदि बाग बगीचों में इस साधना प्रक्रिया को क्रियान्वित किया जाता है तो जहां तक साधक की ऊर्जा का प्रभाव होता है ! वहां तक के वृक्ष अधिक फल देने लगते हैं और उन फलों की गुणवत्ता में अन्य वृक्षों के फलों की गुणवत्ता के मुकाबले बहुत सुधार होता है !

इससे यह सिद्ध होता है कि “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” मनुष्य ही नहीं जीव-जंतु और पेड़-पौधों पर भी प्रभावी है ! मैंने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि जिन जगहों पर नियमित रूप से साधक एक वर्ष तक इस “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” की साधना करते हैं ! वह स्थान स्वयं में जागृत हो जाता है और उस स्थान पर जाते ही चंचल से चंचल मन भी शांत हो जाता है !

निश्चित रूप से यह एक प्रभावशाली क्रिया है अतः जो भी व्यक्ति अपने प्रारब्ध की शक्ति की कमजोरी के कारण जीवन में परेशान हैं ! उन्हें निश्चित रूप से इस साधना प्रक्रिया को अपनाना चाहिये ! जिससे वह अपने सांसारिक जीवन को आनंद के साथ बिता सकें और जीवन पूर्ण होने पर उस परम तत्व में विलीन हो सकेंगे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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