पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही मानवता के लिये खतरा हैं ! : Yogesh Mishra

आज से 3000 साल पहले जब पश्चिम जगत के लोगों ने सनातन जीवन शैली का परित्याग कर दिया ! तो उसका परिणाम यह हुआ कि मात्र 500 साल के अंदर ही वहां की पूरी की पूरी सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई और गरीबी का आलम यह हुआ कि इंसान ही इंसान को मारकर खाने लगा !

सभ्य समाज डकैतों और हत्यारों में बदल गया ! पारिवारिक व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो गई ! संताने वर्णसंकर हो गई और समाज में अज्ञानता उस पराकाष्ठा तक चली गई कि वह भूल ही गये कि उनके पूर्वज कभी सभ्य और शिक्षित हुआ करते थे !

परिणाम यह हुआ कि समाज के कुछ अवसरवादी लोगों ने एक नये धर्म की स्थापना की ! जो बाद में अनेक गैर सनातनी धर्मों की उत्पत्ति का आधार बना और उन धर्मों के मुखिया ने अपने धर्मों के विस्तार के लिये डकैतों और हत्यारों को अपना शिष्य बनाना शुरू कर दिया ! उन्हीं डकैतों और हत्यारों के सहयोग से वह पूरी दुनिया में अपने धर्म का विस्तार करने लगे ! आज विश्व में जिन जिन स्थानों पर उन धर्मों का विस्तार हुआ ! उनका इतिहास हत्या, डकैती, बलात्कार, लूट और ज्ञानी लोगों की फांसी से भरा हुआ है !

कालांतर में जब अर्थ का प्रभाव बढ़ने लगा और अति समपन्नता के लिये पूंजीवाद का जन्म हुआ ! तो उस समय भी पूंजीवादी लोगों के संस्कार क्योंकि आभाव से विकसित हुए थे ! अत: उन्होंने अपने कल कारखानों में मजदूरों का भयंकर शोषण करना शुरू कर दिया !

जिसका प्रभाव कालांतर में रूस के पूंजीपतियों पर भी पड़ा ! तब रूस के चिंतक कालमार्क्स ने मजदूरों के इस भयंकर शोषण का राजनीतिक लाभ लेने के लिये एक रणनीति बनाई ! जिसे कम्युनिज्म अर्थात साम्यवाद कहा गया ! जिस विचारधारा को लेनिन लेकर आगे चले ! इस तरह संपूर्ण सनातनी विश्व के लोग दो हिस्सों में बाँट गये ! एक पूंजीवाद और दूसरा साम्यवाद !

दोनों ही विचारधारा अपराध और राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर टिकी हुई थी ! इसमें कहीं भी मानवता का कोई स्थान नहीं था और न ही यह सत्य सनातन हिंदू जीवन शैली के निकट ही था ! उसी का परिणाम है कि विश्व को दो महायुद्ध झेलने पड़े !

अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य है यह है कि विश्व में मानवता को संरक्षित और पोषित करने का सामर्थ्य न तो पूंजीवाद में है और न ही साम्यवाद में ! इसलिये यदि मनुष्य को अपना भविष्य सुरक्षित रखना है तो उसे पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों का ही परित्याग करके सनातन जीवन शैली पर वापस आना होगा और यदि व्यक्ति सनातन जीवनशैली को नहीं अपनायेगा तो मनुष्य बहुत ही अल्प समय में स्वत: समाप्त हो जायेगा !

क्योंकि सनातन जीवन शैली ही मनुष्य को मनुष्य के निकट बिना किसी स्वार्थ के लाती है और मनुष्य ही नहीं सभी जीव जंतु, पेड़ पौधे और प्रकृति भी सनातन जीवन शैली से ही पोषित और संरक्षित हो सकते हैं ! अन्य कोई भी व्यवस्था ऐसी नहीं है जो मनुष्य और प्रकृति दोनों का पोषण एक साथ कर सके !

सच्चाई तो यह है कि मनुष्य प्रकृति पर आश्रित है और यदि पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों की व्यवस्था के तहत निरंतर प्रकृति का शोषण होता रहेगा तो कुछ ही समय बाद मनुष्य स्वत: समाप्त हो जायेगा ! जैसे आजकल कुछ विशेष प्रजाति के पशु पक्षी प्रकृति के अत्यंत शोषण के कारण स्वत: समाप्त हो रहे हैं !

इसलिये बेहतर है कि समय रहते मनुष्य इस आने वाली भयानक त्रासदी को समझे और वापस सनातन जीवन शैली की ओर लौट कर स्वयं अपना ही नहीं प्रकृति का भी पोषण करे ! क्योंकि प्रकृति की रक्षा से ही मनुष्य की रक्षा संभव है ! मात्र सत्ता या धन से नहीं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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