कलयुग में तंत्र विद्या के विशेष लाभ : Yogesh Mishra

तंत्रशास्त्र के सिद्धांतानुसार कलियुग में वैदिक मंत्रों, जपों और यज्ञों आदि का फल नहीं होता इस युग में सब प्रकार के कार्यों की सिद्धि के लिए तंत्रशास्त्र में वर्णिक मंत्रों और उपायों आदि से ही सफलता मिलती है !

तंत्र (संस्कृत शब्द, अर्थात् तंतु) कुछ हिंदू, बौद्ध या जैन संप्रदायों के रहस्यमय आचरणों से संबंधित कई ग्रंथों में से एक है ! हिंदू धार्मिक साहित्य के परंपरागत वर्गीकरण में पुराणों (पौराणिक कथाओं, अनुश्रुतियों और अन्य विषयों के मध्य कालीन अतिव्यापक संकलन) की तरह उत्तर वैदिक संस्कृत ग्रंथों के एक वर्ग को तंत्र कहा जाता है ! इस प्रयोग में तंत्र सैद्धांतिक रूप से धर्मशास्त्र, मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण तथा धार्मिक आचरण के प्रतिपादक हैं, किंतु वास्तव में जादू-टोना, अनुष्ठानों और प्रतीकों जैसे हिंदू धर्म के लोकप्रिय पहलुओं से संबद्ध हैं ! हिंदू सांप्रदायिक सारणी के अनुरूप वे शैव आगमों, वैष्णव संहिताओं और शाक्त तंत्रों में विभक्त हैं !

तंत्रशास्त्र के सिद्धांत बहुत गुप्त रखे जाते है ! और इसकी शिक्षा लेने के लिए मनुष्य को पहले दीक्षित होना पड़ता है, आजकल प्राय: मारण, उच्चाटन, वशीकरण आदि के लिए तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों के लिए तंत्रोक्त मंत्रों और क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है ! तंत्रशास्त्र प्रधानत: शाक्तों (देवी-उपासकों) का है और इसके मंत्र प्राय: अर्थहीन और एकाक्षरी हुआ करते है ! जैसे- ह्नीं,क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं आदि ! तांत्रिकों का पच्च मकार सेवन (मद्य, मांस, मत्स्य आदि) तथा चक्र-पूजा का विधान स्वतंत्र होता है !

अथर्ववेद में भी मारण, मोहन, उच्चाटन और वशीकरण आदि का विधान है, परंतु कहते हैं कि वैदिक क्रियाओं और तंत्र-मंत्रादि विधियों को महादेव जी ने कीलित कर दिया है और भगवती उमा के आग्रह से ही कलियुग के लिए तंत्रों की रचना की है ! बौद्धमत में भी तंत्रशास्त्र एक ग्रंथ है ! उनका प्रचार चीन और तिब्बत में है ! हिन्दू तांत्रिक उन्हें उपतंत्र कहते हैं ! तंत्रशास्त्र की उत्पत्ति कब से हुई इसका निर्णय नहीं हो सकता !

प्राचीन स्मृतियों में चौदह विद्याओं का उल्लेख है किंतु उनमें तंत्र गृहीत नहीं हुआ है ! इनके सिवा किसी महापुराण में भी तंत्रशास्त्र का उल्लेख नहीं है ! इसी तरह के कारणों से तंत्रशास्त्र को प्राचीन काल में विकसित शास्त्र नहीं माना जा सकता !

अथर्ववेदीय नृसिंहतापनीयोपनिषद में सबसे पहले तंत्र का लक्षण देखने में आता है ! इस उपनिषद में मंत्रराज नरसिंह- अनुष्टुप प्रसंग में तांत्रिक महामंत्र का स्पष्ट आभास सूचित हुआ है !

शंकराचार्य ने भी जब उक्त उपनिषद के भाष्य की रचना की है तब निस्सन्देह वह 8वीं शताब्दी से पहले की है ! हिन्दुओं के अनुकरण से बौद्ध तंत्रों की रचना हुई है ! 10वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के भीतर बहुत से बौद्ध तंत्रों का तिब्बतीय भाषा में अनुवाद हुआ था ! ऐसी दशा में मूल बौद्ध तंत्र 8वीं शताब्दी के पहले और उनके आदर्श हिन्दू तंत्र बौद्ध तंत्रों से भी पहले प्रकटिक हुए हैं, इसमें सन्देह नहीं !

तंत्रों के मत से सबसे पहले दीक्षा ग्रहण करके तांत्रिक कार्यों में हाथ डालना चाहिए ! बिना दीक्षा के तांत्रिक कार्य में अधिकार नहीं है ! तांत्रिक गण पाँच प्रकार के आचारों में विभक्त हैं, ये श्रेष्ठता के क्रम से निम्नोक्त हैं वेदाचार, वैष्णवाचार, शैवाचार, दक्षिणाचार, वामाचार, सिद्धांताचार एवं कौलाचार ! ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ माने जाते हैं !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter