आयुर्वेद एलोपैथी से क्यों पिछड़ा : Yogesh Mishra

सोलहवीं सदी तक एशिया और यूरोप में चेचक, खसरा या प्लेग (काली मौत) जैसी बीमारियाँ आम हो चुकी थी ! इसकी पहली विस्तृत खेप में बड़ी जनसंख्या खत्म हुई और धीरे धीरे कुछ समय बाद लोगों में इन्हें लेकर प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई !

रोग की पहचान भी होने लगी, और इसे छूत की बीमारी मान कर अलग रखा जाने लगा ! लेकिन यह बीमारी अमरीका तक संभवतः नहीं पहुँच सकी थी, क्योंकि अमरीका का दुनियां की अन्य मुख्य भूमि से संपर्क ही नहीं था !

उस समय स्पैनीज उपनिवेशवादी पूरी ताकत से अमेरिका पर कब्जा करना चाह रहे थे ! स्पैनीज अमेरिका के मूल निवासियों से अनेकों युद्ध हार चुके थे ! स्पैनीज के सभी तरह के प्रलोभन व्यर्थ हो चुके थे ! तब एक फर व्यापारी विलियम ट्रेंट को इस युद्ध की कमान दी गयी !

23 जून, 1763 को एक डायरी में विलियम ट्रेंट लिखते हैं कि “जब मूल अमरीकियों से हमारी वार्ता असफल रही, तो हमने उन्हें कुछ तोहफ़ों के साथ दो कंबल और एक रूमाल देकर विदा किया ! जो कि कंबल चेचक वार्ड के एक बेड से मंगवाये गये थे ! कुछ ही समय बाद इसका वांछित प्रभाव हमें देखने को मिला !”

“इससे पुरे अमेरिका में भयंकर चेचक फैल गया ! अमेरिका के हर कोने में लोग मर रहे थे ! उनके चेहरे, छाती और पेट पर बड़े बड़े फोड़े होने लगे ! सर से पाँव तक अति पीड़ादायक फोड़े ही फोड़े होते थे ! यह इतनी भयानक बीमारी थी कि लोगों का चलना तो दूर बिस्तर से हिलना भी दूभर हो गया था !

लोग जिंदा लाशों की तरह बिखरे पड़े थे ! वह करवट लेने का प्रयास करते और फोड़े के दर्द से कराह उठते ! करोड़ों लोग इस महामारी से मर गये ! उनकी देखभाल करने के लिए अगर कोई जाता, तो वह भी उसी रोग से पीड़ित होकर मर जाता और जो बचे वह भय से अकर्मण्य होकर भूख से मर गये !”

इस तरह स्पैनीज जिस अमेरिका को युद्ध से नहीं जीत पाये उसे मात्र दो कंबल और एक रूमाल से जीत लिया और आज अमेरिका का मूल निवासी या तो मर गया या विस्थापित है ! और पूरे अमेरिका पर योरोपियन का कब्ज़ा है !
इस तरह जैविक हथियार दुनिया के सबसे प्रभावी और घातक हथियार हो सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि इसके प्रभाव का अनुमान लगाना कठिन है ! जैसे एक गोली एक व्यक्ति को लगी और वह मर गया ! लेकिन एक जीवाणु का क्या प्रभाव होगा ? कितनी देर में होगा, किस स्तर का होगा ? यह कहना मुश्किल है !

लेकिन इस घटना से दो चीजें स्पष्ट थीं कि वैश्विक दवा उपनिवेशवादियों को यह समझ आ गया था कि जैविक हथियार सामान्य हथियार से अधिक खतरनाक और प्रभावशाली है ! जो उन्हें जैविक हथियार से बचाव के लिये मास्क, दस्ताना. पी.पी. किट. आक्सीजन सप्लाई आदि से अपार सम्पदा दे सकये हैं !

और दूसरी बात कि यह एलोपैथी दवा बनाने वाली कंपनियों के लिये इनकी दवा बना कर बेचना कमाई का अच्छा साधन भी है ! इन दोनों सोच ने ही एलोपैथी दवा उद्योग जगत में पूंजीपतियों को प्रवेश करवाया ! जो आज भी कायम है !
आज विश्व के 150 से अधिक देशों में मेडिकल बजट इन्हीं पूंजीपतियों के प्रभाव से निर्धारित होते हैं ! जो पैसा सीधा सीधा इन वैश्विक दवा माफियाओं को मिलता है !
इसीलिये विश्व के किसी भी देश में आयुर्वेद और होमियोपैथी आज तक एकाधिकार नहीं बना पायी !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766

Newsletter Updates

Enter your email address below and subscribe to our newsletter