कैसे करें ? आँखों मे होने वाले 94 प्रकार के रोगो का उपचार ? जरूर पढ़ें ।

मित्रो भारत के महाऋषि श्री वागभट्टाचार्य द्वारा रचित रसायन शास्त्र के प्रमुख आयुर्वेदिक ग्रंथ ”रसरत्नसमुच्चय” के 23 वें अध्याय में नेत्र रोगों की संख्या का वर्णन किया गया है ।

जिसके अनुसार

नेत्र के कृष्ण पटल पर 5,

नेत्र की संधियों में 9,

नेत्र के संपूर्ण श्वेत पटल पर 13,

मध्य वत्म्र प्रदेश में 16,

दृष्टि मंडल में 24,

और नेत्र के शेष भाग में 27

प्रकार के रोगों के होने का वर्णन दिया गया है इस प्रकार आंखों में कुल 94 प्रकार के रोग होते हैं इन रोगों के होने के मुख्य कारण का वर्णन आयुर्वेद के दूसरे ग्रंथ सुश्रुत संहिता में दिया गया है |

उत्तरतंत्र के प्रथम अध्याय के 25 से 27 श्लोक के मध्य किया गया है इसका अर्थ यह है कि धूप या गर्मी से व्याकुल होकर सहसा शीतल जल में प्रवेश करना या नहाना, दूरस्थ वस्तुओं को अधिक समय तक निरंतर देखने से, दिन में सोने से, रात्रि में अधिक जागने से, निरंतर रुदन, क्रोध, शोक, क्लेश, चोट लगने पर या अति स्त्री संपर्क के कारण नेत्र के रोग उत्पन्न होते है |

इसके अतिरिक्त सिरका, कांजी आदि अम्लीय पदार्थ, कुलथी और उड़द जैसे गरिष्ठ पदार्थ का निरंतर सेवन करने से आंखों का रोग होता है | मल – मूत्र को रोकना, आंसुओं के आगे को रोकना, अधिक पसीना, अधिक धूम्रपान करना उल्टी के वेग को रोकना या बहुत अधिक उल्टी करना, बहुत बारीक वस्तु को देखने का प्रयास करना, वात पित्त कफ के असंतुलन के कारण नेत्रों के जटिल रोग हो जाते हैं |

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नेत्र रोग का ग्रहीय कारण लग्नेश यदि बुध अर्थात ३-६मंगल १-८ की राशी में विराजमान है या अष्टमेश व् लग्नेश जब एक साथ छटे भाव में विराजमान होते हैं तो हमारी बाई आँख में बीमारी हो जाती है. और छटे या आठवें में शुक्र के विराजमान होने से दायीं आँख में बीमारी होने की संभावना रहती है | दसवें और छटे भावों के स्वामी द्वितीयेश के लग्न के होने से व्यक्ति अपनी द्रष्टि खो देता है तथा मंगल के द्वादश भाव में स्थापित होने से बांयी आँख में चोट लगती है और जब शनि द्वितीय भाव में स्थापित हो तो दांये आँख में चोट लगती है.

समान्यता त्रिकोण में पाप ग्रहों में जब सूर्य स्थापित होता है तो व्यक्ति की आँखों में बीमारी हो जाती है और व्यक्ति को कम दिखाई देने लगता है अर्थात व्यक्ति की नजर कमजोर हो जाती है. हर तरह के नेत्र रोग का विशेष उपचार है |

समान्यतः उपचार के तौर पर आयुर्वेदिक ग्रंथ में बतलाया गया है कि कपूर, लोंग, लाल चंदन, दारूहल्दी, रसोत, हल्दी, लोध्र’, मुलेठी, देवदार, वच, नीम पत्र, धमासा, गोरखमुंडी, बबूल के पत्ते, कचूर, कमल इन 16 वस्तुओं को बराबर मात्रा में लेकर सुखाकर पीसकर पाउडर बनाएं नियमित रूप से 50 ग्राम सामान्य हवन सामाग्री में 25 ग्राम चूर्ण मिला कर सूर्य गायत्री मंत्र से 90 दिन तक एक माला रोज हवन करें तथा सवा 8 रत्ती का क्षत्रिय वर्ण का माणिक सोने अथवा चांदी में धारण करें साथ ही नियमित रूप से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का एक बार पाठ करने से नेत्र से संबंधित समस्त रोग ठीक हो जाते हैं |

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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